*निश्चय ही 'चंद्रमा' का मानव-जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है लेकिन केवल महिला वर्ग पर ही उसे क्यूँ लागू किया जाता है?
*चूंकि चंद्रमा सूर्यास्त के बाद ही प्रभावी हो पाता है अतः सूर्यास्त के बाद 'जल' का सेवन कम किया जाना चाहिए। लेकिन पोंगापंथी ढोंगवादचंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद भोजन करने का गलत विधान पेश करता है।
*वस्तुतः कोई भी उपवास शाम के वक्त ही किया जाना चाहिए न कि दिन के समय। भोजन के बाद प्यास अधिक लगती है और जल अधिक लेना पड़ता है अतः गलत निष्कर्षों को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने के कारण ठुकराया जाना चाहिए और 'करवा-चौथ' जैसे शोषणकारी ढोंगों को समाप्त किया जाना चाहिए।
(विजय राजबली माथुर )
Sanjiv Verma 'salil'
अंध श्रद्धा और अंध आलोचना के शिकंजे में भारतीय फलित विद्याएँ:
भारतीय फलित विद्याओं (ज्योतषशास्त्र, सामुद्रिकी, हस्तरेखा विज्ञान, अंक ज्योतिष आदि) तथा धार्मिक अनुष्ठानों (व्रत, कथा, हवन, जाप, यज्ञ आदि) के औचित्य, उपादेयता तथा प्रामाणिकता पर प्रायः प्रश्नचिन्ह लगाये जाते हैं. इनपर अंधश्रद्धा रखनेवाले और इनकी अंध आलोचना रखनेवाले दोनों हीं विषयों के व्यवस्थित अध्ययन, अन्वेषणों तथा उन्नयन में बाधक हैं. शासन और प्रशासन में भी इन दो वर्गों के ही लोग हैं. फलतः इन विषयों के प्रति तटस्थ-संतुलित दृष्टि रखकर शोध को प्रोत्साहित न किये जाने के कारण इनका भविष्य खतरे में है.
हमारे साथ दुहरी विडम्बना है:
१. हमारे ग्रंथागार और विद्वान सदियों तक नष्ट किये गए. बचे हुए कभी एक साथ मिल कर खोये को दुबारा पाने की कोशिश न कर सके. बचे ग्रंथों को जन्मना ब्राम्हण होने के कारण जिन्होंने पढ़ा वे विद्वान न होने के कारण वर्णित के वैज्ञानिक आधार नहीं समझ सके और उसे ईश्वरीय चमत्कार बताकर पेट पालते रहे. उन्होंने ग्रन्थ तो बचाये पर विद्या के प्रति अन्धविश्वास को बढ़ाया। फलतः अंधविरोध पैदा हुआ जो अब भी विषयों के व्यवस्थित अध्ययन में बाधक है.
२. हमारे ग्रंथों को विदेशों में ले जाकर उनके अनुवाद कर उन्हें समझ गया और उस आधार पर लगातार प्रयोग कर विज्ञान का विकास कर पूरा श्रेय विदेशी ले गये. अब पश्चिमी शिक्षा प्रणाली से पढ़े और उस का अनुसरण कर रहे हमारे देशवासियों को पश्चिम का सब सही और पूर्व का सब गलत लगता है. लार्ड मैकाले ने ब्रिटेन की संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन पर हुई बहस में जो अपन लक्ष्य बताया था, वह पूर्ण हुआ है.
इन दोनों विडम्बनाओं के बीच भारतीय पद्धति से किसी भी विषय का अध्ययन, उसमें परिवर्तन, परिणामों की जाँच और परिवर्धन असीम धैर्य, समय, धन लगाने से ही संभव है.
अब आवश्यक है दृष्टि सिर्फ अपने विषय पर केंद्रित रहे, न प्रशंसा से फूलकर कुप्पा हों, न अंध आलोचना से घबरा या क्रुद्ध होकर उत्तर दें. इनमें शक्ति का अपव्यय करने के स्थान पर सिर्फ और सिर्फ विषय पर केंद्रित हों.
संभव हो तो राष्ट्रीय महत्व के बिन्दुओं जैसे घुसपैठ, सुरक्षा, प्राकृतिक आपदा (भूकंप, तूफान. अकाल, महत्वपूर्ण प्रयोगों की सफलता-असफलता) आदि पर पर्याप्त समयपूर्व अनुमान दें तो उनके सत्य प्रमाणित होने पर आशंकाओं का समाधान होगा। ऐसे अनुमान और उनकी सत्यता पर शीर्ष नेताओं, अधिकारियों-वैज्ञानिकों-विद्वानों को व्यक्तिगत रूप से अवगत करायें तो इस विद्या के विधिवत अध्ययन हेतु व्यवस्था की मांग की जा सकेगी।
साभार :
https://www.facebook.com/sanjiv.salil/posts/10203046678030084
१. हमारे ग्रंथागार और विद्वान सदियों तक नष्ट किये गए. बचे हुए कभी एक साथ मिल कर खोये को दुबारा पाने की कोशिश न कर सके. बचे ग्रंथों को जन्मना ब्राम्हण होने के कारण जिन्होंने पढ़ा वे विद्वान न होने के कारण वर्णित के वैज्ञानिक आधार नहीं समझ सके और उसे ईश्वरीय चमत्कार बताकर पेट पालते रहे. उन्होंने ग्रन्थ तो बचाये पर विद्या के प्रति अन्धविश्वास को बढ़ाया। फलतः अंधविरोध पैदा हुआ जो अब भी विषयों के व्यवस्थित अध्ययन में बाधक है.
२. हमारे ग्रंथों को विदेशों में ले जाकर उनके अनुवाद कर उन्हें समझ गया और उस आधार पर लगातार प्रयोग कर विज्ञान का विकास कर पूरा श्रेय विदेशी ले गये. अब पश्चिमी शिक्षा प्रणाली से पढ़े और उस का अनुसरण कर रहे हमारे देशवासियों को पश्चिम का सब सही और पूर्व का सब गलत लगता है. लार्ड मैकाले ने ब्रिटेन की संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन पर हुई बहस में जो अपन लक्ष्य बताया था, वह पूर्ण हुआ है.
इन दोनों विडम्बनाओं के बीच भारतीय पद्धति से किसी भी विषय का अध्ययन, उसमें परिवर्तन, परिणामों की जाँच और परिवर्धन असीम धैर्य, समय, धन लगाने से ही संभव है.
अब आवश्यक है दृष्टि सिर्फ अपने विषय पर केंद्रित रहे, न प्रशंसा से फूलकर कुप्पा हों, न अंध आलोचना से घबरा या क्रुद्ध होकर उत्तर दें. इनमें शक्ति का अपव्यय करने के स्थान पर सिर्फ और सिर्फ विषय पर केंद्रित हों.
संभव हो तो राष्ट्रीय महत्व के बिन्दुओं जैसे घुसपैठ, सुरक्षा, प्राकृतिक आपदा (भूकंप, तूफान. अकाल, महत्वपूर्ण प्रयोगों की सफलता-असफलता) आदि पर पर्याप्त समयपूर्व अनुमान दें तो उनके सत्य प्रमाणित होने पर आशंकाओं का समाधान होगा। ऐसे अनुमान और उनकी सत्यता पर शीर्ष नेताओं, अधिकारियों-वैज्ञानिकों-विद्वानों को व्यक्तिगत रूप से अवगत करायें तो इस विद्या के विधिवत अध्ययन हेतु व्यवस्था की मांग की जा सकेगी।
साभार :
https://www.facebook.com/sanjiv.salil/posts/10203046678030084
मंगली दोष-ऐश्वर्या राय :
*ढ़ोंगी पंडितों के परामर्श पर अमिताभ बच्चन,अनिल अंबानी व अमर सिंह ने 50-50-50 लाख रुपए एक मंदिर में दान दिये थे और मान लिया था कि 'मंगली दोष' समाप्त हो गया है। यदि ऐसा हुआ तब 20 अप्रैल 2014 के हिंदुस्तान में 'मतभेद' की खबरें कैसे छ्प गईं?
*वस्तुतः 'मंगली दोष' का निवारण मंदिरों में दान देने से नहीं होता है वह तो महज़ एक पाखंड के सिवा कुछ नहीं है। इसके लिए 'वर' और 'कन्या' दोनों के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति के अनुसार 'मंगली योग' होने चाहिए। तब संतुलन बना रहता है। जन्मकालीन ग्रहों को पुजारी या मंदिर में दान देने से नहीं बदला जा सकता है।
* 'मंगल' एवं सूर्य',शनि,राहू,केतू में कोई एक भी यदि किसी जन्म-कुंडली में लग्न, चतुर्थ, अष्टम व द्वादश भाव में स्थित हो तो कुंडली 'मंगली दोष' वाली है उसके समाधान के लिए वैसे योगों से युक्त कुंडली से ही 'गुणों' का मिलान किया जाना चाहिए।
धनाढ्य लोग खुद तो गलत करते ही हैं साथ ही साथ गलत लोगों को प्रोत्साहित भी करते हैं जिससे साधारण जनता का अहित होता है और प्रतिक्रिया स्वरूप 'ज्योतिष विरोध' भी।
(विजय राजबली माथुर )
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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