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मुझे संघियों से क्या समस्या है ? क्योंकि वे निहायत पिछड़ी और सामन्ती मानसिकता के होते हैं | उनसे इस मंच पर बहुत संवाद करने का प्रयास किया है, पर वे तर्क और तथ्य के बजाय फ़ौरन गाली गलौज, चरित्र हनन और अश्लीलता पर उतर आते हैं |
माँ- बहन की भद्दी गालियाँ, स्त्री का चरित्र हनन, द्विअर्थी संवाद ही इनकी भाषा शैली है |
ये वेद वेद बस चिल्लाते ही हैं, वेद इन्होने कभी पढ़ा नहीं| पढ़ी तो इन्होने मानस और गीता भी नहीं| वरना गार्गी, अपाला, द्रोपदी की तर्क शक्ति ये जानते तो स्त्रियों की वाल पर अपनी कुंठा का वमन न कर रहे होते| इनके लिए स्त्री केवल भोग की वस्तु है, ये उसे फैसलों में शामिल नहीं करते|
कम से कम मेरा अनुभव तो यही है | मुझे दर्जनों संघियों को ब्लॉक करना पड़ा है| खुद इनकी अपनी वाल भी अश्लीलता से भरी होती है | अश्लील तस्वीरें, अश्लील चुटकुले, फूहड़ मज़ाक जो स्त्रियों को लेकर होते हैं और अपनी वाल की इस सडांध भरी गंदगी को वे किसी देवी देवता की तस्वीर से ढंकने का प्रयास करते हैं |
इसका कारण उनके संस्कारों में है. अक्सर वे निम्न आर्थिक पृष्ठभूमि के बेरोजगार नौजवान या अधेड़ हैं| या फिर अपने व्यवसाय में बहुत सफल लोग नहीं हैं | वे अपने काम में सफल नहीं हैं | और बहुत बार खाली दिमाग शैतान का घर होता है, सो वे खूब खुराफाती हैं |
अपनी कम अकली और गैर तार्किक सोच के कारण वे ठस्स दिमाग के हैं| उनका आई क्यू स्तर कम है| वे गणित और विज्ञान और दुनिया की तमाम भाषाओं से अपरिचित हैं| वे दारू पीते हैं , जगराता करते हैं, सड़क पर निकलते हैं लडकी छेड़ते हैं, फेसबुक पर आते हैं अश्लील टिप्पणी करते हैं| रिश्तेदारों के घर जाते हैं अपने माँ बाप को जलील करते हैं| वे अपने मोहल्ले में अराजक गुंडे की पहचान लिए होते हैं|
आप उन्हें हिन्दू न समझें| इस देश का बहुसंख्यक हिन्दू बहुत उदार और सर्व धर्म समभाव वाला है | ऐसे हिन्दुओं के कारण ही भारत का राष्ट्रीय चरित्र सुरक्षित है| यही हिन्दू हैं जिनके कारण यह देश कई संस्कृतियों और कई धर्मो का देश है| यही हिन्दू हैं जिनके कारण यह देश महकता है |
बहुसंख्यक हिन्दू तो संघियों को पसंद ही नहीं करता| उनसे एक सुरक्षित दूरी बना के चलता है| वह अपने बच्चों को कूप मण्डूक स्कूलों में नहीं पढ़ाता और ज्ञान विज्ञान की शिक्षा देता है| वह अपने बच्चों को एक उदार और ज़िम्मेदार नागरिक बनाता है| वह दंगों और साम्प्रदायिकता के खिलाफ बोलता है| वह धार्मिक है, मंदिर जाता है पर गैर धर्मियों से नफरत नहीं करता, वह विधर्मियों को मारने काटने की वकालत नहीं करता| यही वह हिन्दू है जो वैज्ञानिक भी है, साहित्य भी रचता है, फ़िल्में बनाता है और स्त्रियों से बराबरी से बात भी करता है|
पर नौजवान अगर संघी सोच के बने तो इसमें सिर्फ उनका कुसूर नहीं है| गैर तार्किक शिक्षा और बेरोजगारी तमाम नौजवानों को बम, गोला, बारूद में तब्दील कर रही है| अगर इन्हीं नौजवानों को बेहतर शिक्षा के साथ मनचाहा काम मिला होता, कुछ सर्जनात्मक टास्क जीवन में होता तो ये एक पल यहाँ न रहते|
तार्किक होने के लिए पढ़ना पड़ता है| बहुत सारा इतिहास, विज्ञान, भूगोल, राजनीति, दर्शन कला.... जब कोई भी खूब पढता है, दुनिया को जानता और समझता है तो वह खुद ही संकीर्णता से ऊपर उठ जाता है|
प्रेम करें... लेकिन संघ में तो प्रेम होता ही नहीं | वहां स्त्री सदस्य नहीं बन सकती| वहां स्त्री पुरुष बराबर दर्जे पर नहीं होते| वहाँ स्त्री को तर्क का अधिकार ही नहीं, जब सदस्यता ही नहीं, तो तर्क कैसा? संघ के सरसंघचालक हमेशा पुरुष ही होते हैं, वह भी एक ख़ास किस्म के ब्राह्मण के लिए पद आरक्षित है| वहां सरसंघ चालक चुना नहीं जाता, बल्कि मनोनीत होता है| संघ लोकतंत्र में यकीन नहीं रखता|
और दूसरा संघ की ड्रेस काली टोपी, खाकी निक्कर ये सब विदेशी हैं| ये लोग भारतीय संस्कृति में विश्वास ही नहीं रखते| इनका गणवेश तक विदेशी है| विचारधारा भी आयातित है|
ये ठेठ सामन्ती मूल्य हैं| इनमे पला व्यक्ति कैसे किसी का आदर करना सीखेगा| वह रिजिड ही होगा|