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भाइयों,बहनों
आइये इस किसान जागरण यात्रा में आप अपना सक्रिय सहयोग और समर्थन दें। आज़ादी के बाद कुटिल राजनीतिक चालाकियों के कारण हाशिये पर डाल दिये गाँव और किसान को संगठित कर इस देश की मुख्य राजीनीतिक और आर्थिक धारा में शामिल करने के इस महाभियान में आप सक्रिय हिस्सेदारी निभाएँ जो आज़ादी के सिपाहियों और शहीदों का एक मात्र सपना रहा है।
भारतीय किसान एक निर्मम षणयंत्र के तहत लूटे जा रहे हैं। किसान विरोधी देशी-परदेसी सरकारी नीतियाँ तो उसे लूट ही रही हैं,साथ में असमय वर्षा,बाढ़,सूखा,ओलावृष्टि और कीट हमले से प्रकृति भी लूट रही है। मौसम विज्ञान इसे जलवायु परिवर्तन का परिणाम बता रहे हैं, किन्तु सबसे बड़ा सवाल है कि किसान कहाँ जाये?आज इस देश में सबकी आवाज़ सुनी जाती है,किसान संगठित नहीं है,इसलिए सरकारी नीतियाँ उसे पीट-पीट कर अधमरा करती जा रही हैं। अधमरे लोगों में कमजोर दिल वाले आत्महत्या कर रहे हैं। स्वयं सरकारी आंकड़ों (क्राइम रिकार्ड ब्यूरो) के अनुसार पिछले 15 वर्षों से आठ लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली है। महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा मं दसों किसान बेचारगी में आत्महत्या कर रहे हैं,और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में भी रोजाना चार-पाँच किसान आत्महत्या कर रहे हैं। शराब कारोबारी विजय माल्या जहाँ एक ओर सरकारी बैंकों का हजारों-हजार करोड़ रूपये दिनदहाड़े लूट कर चला गया,वहीं कृषि आय के बहाने बेईमान पूंजीपति और कारोबारी बीस हजार लाख करोड़ रूपये का कालाधन इसी देश में दबा कर रखे हुए हैं और किसान नकली बीज-खाद और कीटनाशक ऊंचे दामों पर इस बेईमान सरकारी तंत्र के चलते खरीदने के लिए विवश है। सरकारी तंत्र (जिलाधिकारी,एस.पी.) न तो टैक्स चोरों-मिलावटखोरों को पकड़ पा रहा है और न तो डकैती और सांप्रदायिकता भड़काने वाले राजनीतिक गुंडों पर कोई लगाम लगा पा रहा है। विजया माल्या जैसे टैक्स चोर,काले कारोबारी जेल के बजाय राज्य सभा में सांसद चुन कर भेजे जा रहे हैं, वहीं प्राकृतिक आपदा और बढ़ते खेती की लागत के कारण समय पर मामूली ऋण जमा न कर पाने वाले किसान को बेरहमी से उसके खेत और घर से घसीट कर हवालात में बंद कर दिया जाता है तथा हवालात का भी खर्च उसी से जबरदस्ती वसूला जा रहा है।
स्थिति खतरनाक मोड़ ले चुकी है। किसान अपने दलहन-तिलहन,गेहूं-धान गन्ना का दाम नहीं तय कर सकता है। अब स्टाक मार्केट के अरबपति-खरबपति दलाल और बाजार के मुनाफाखोर खिलाड़ी इसका दाम तय कर रहे हैं। यही पूंजी का कमाल खेती-किसानी का दुर्दिन है। कारण साफ है किसान संगठित नहीं है। वेतन आयोग ने हाल ही में सरकारी कर्मचारी का न्यूनतम मासिक वेतन रु. 18,0000.00 मासिक तथा अधिकतम रु.2.50 लाख मासिक तय कर दिया है किन्तु साथ सत्तर सालों तक खेतों में पसीना बहाने वाले किसानों,खेत मजदूरों का कोई पुरसा हाल नहीं है न तो उनके न्यूनतम आय की कोई गारंटी है। इसीलिए गांवों से प्रतिवर्ष 9% की दर से सालान पलायन हो रहा है और खेती का रकबा भूमि अधिग्रहण कानून और अंधे विकासवाद की नीतियों के चलते लगातार घटता जा रहा है।
कृषि लागत दर और महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है,इसे हर हाल में रोकना होगा और इसे रोकने के लिए संगठित और धारदार किसान आंदोलन की जरूरत आज सबसे ज्यादा है। खेती को बचना है तो गाँव को भी बचना होगा,गाँव बचेगा तभी खेती और किसानी बचेगी। खेती और गाँव बचाकर ही हम किसान और देश को बचा सकते हैं यही सच्ची देश भक्ति और राष्ट्रवाद है।
इन्हीं सच्चाइयों को ध्यान में रख कर उत्तर-प्रदेश किसान सभा ने पूरे प्रदेश में 11 अप्रैल 2016 से किसान जागरण यात्रा प्रारम्भ की है। देश के किसानों के सर्वमान्य नेता,स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी स्वामी सहजानन्द के जन्म स्थल गाजीपुर से यह अभियान शुरू किया गया है जो 20 मई को लखनऊ में विशाल किसान महापंचायत में तब्दील हो जायेगा और इस महापंचायत में उत्तर प्रदेश के सभी प्रभावी किसान संगठनों के नेतृत्व के अतिरिक्त अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव और साथी अतुल कुमार अनजान की उल्लेखनीय उपस्थिति रहेगी।
यह अभियान नई सोच और किसानोन्मुखी राजनीति पैदा करने का है। किसानों,मजदूरों,दस्तकारों को संगठित कर देश एवं प्रदेश की राजनीति को किसानोन्मुखी बनाने की दिशा में यह सशक्त हस्तक्षेप है ताकि देश की दौलत का मुंसिफ़ाना तस्कीम हो सके और देश बहुराष्ट्रीय कंपनियों,शेयर बाजार के सट्टेबाज खिलाड़ियों,भ्रष्ट राजनेताओं,कुटिल अफसरशाहों-ठेकेदारों के चंगुल से मुक्त हो सके।
प्रमुख मांगें
1. राष्ट्रीय किसान आयोग (स्वामीनाथन आयोग) की संस्तुतियों को केंद्र और राज्य सरकारें तत्काल लागू करें।
2. 60 वर्ष के सभी स्त्री-पुरुष किसानों,खेत मजदूरों,ग्रामीण दस्तकारों को 10,000 रु. ( दस हजार रुपया) मासिक पेंशन केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर देना सुनिश्चित करें।
3. किसानों के सहकारी-सरकारी कर्ज़ माफ किये जायें एवं उन्हें रबी-खरीफ पर ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराया जाये।
4. कृषि उत्पादों का लाभकारी मूल्य (लागत पर पचास फीसदी जोड़ कर) दिया जाय।
5. भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को तत्काल वापस लिया जाय।
6. केरल राजयकी भांति किसान कर्ज़ एवं आपदा राहत ट्रिब्यूनल की स्थापना की जाय।
7. खेती किसानी के लिए बिजली की बढ़ी दरों को वापस लिया जाय, साथ ही सस्ती एवं अबाध बिजली 18 घंटे उपलब्ध कराई जाय।
8. नहरों की टेल तक वास्तविक सफाई कराकर पानी खेतों में पहुँचने का पुख्ता प्रबंध किया जाय।
9. प्रदेश के किसानो के निजी नलकूपों को अन्य राज्यों की तरह मुफ्त बिजली की व्यवस्था की जाय।
10. नंदगंज,रसड़ा,छाता,देवरिया,औरैया,शाहगंज चीनी मिलों को चालू किया जाय।
11. शिक्षा व चिकित्सा व्यवस्था को सरकार अपने हाथ में ले।
12. गन्ने का सामान्य मूल्य 450 रु. किया जाय एवं गन्ने का बकाया भुगतान किया जाय।
13. प्रदेश में रबी व खरीफ की फसल बर्बाद होने के बाद केंद्र व प्रदेश की सरकारें क्षतिपूर्ति देने का वादा करें या अब तक लगभग 33%किसान लाभान्वित हुए हैं शेष किसानों को तत्काल क्षतिपूर्ति दी जाय।
भाइयों,बहनों
आइये इस किसान जागरण यात्रा में आप अपना सक्रिय सहयोग और समर्थन दें। आज़ादी के बाद कुटिल राजनीतिक चालाकियों के कारण हाशिये पर डाल दिये गाँव और किसान को संगठित कर इस देश की मुख्य राजीनीतिक और आर्थिक धारा में शामिल करने के इस महाभियान में आप सक्रिय हिस्सेदारी निभाएँ जो आज़ादी के सिपाहियों और शहीदों का एक मात्र सपना रहा है।
भारतीय किसान एक निर्मम षणयंत्र के तहत लूटे जा रहे हैं। किसान विरोधी देशी-परदेसी सरकारी नीतियाँ तो उसे लूट ही रही हैं,साथ में असमय वर्षा,बाढ़,सूखा,ओलावृष्टि और कीट हमले से प्रकृति भी लूट रही है। मौसम विज्ञान इसे जलवायु परिवर्तन का परिणाम बता रहे हैं, किन्तु सबसे बड़ा सवाल है कि किसान कहाँ जाये?आज इस देश में सबकी आवाज़ सुनी जाती है,किसान संगठित नहीं है,इसलिए सरकारी नीतियाँ उसे पीट-पीट कर अधमरा करती जा रही हैं। अधमरे लोगों में कमजोर दिल वाले आत्महत्या कर रहे हैं। स्वयं सरकारी आंकड़ों (क्राइम रिकार्ड ब्यूरो) के अनुसार पिछले 15 वर्षों से आठ लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली है। महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा मं दसों किसान बेचारगी में आत्महत्या कर रहे हैं,और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में भी रोजाना चार-पाँच किसान आत्महत्या कर रहे हैं। शराब कारोबारी विजय माल्या जहाँ एक ओर सरकारी बैंकों का हजारों-हजार करोड़ रूपये दिनदहाड़े लूट कर चला गया,वहीं कृषि आय के बहाने बेईमान पूंजीपति और कारोबारी बीस हजार लाख करोड़ रूपये का कालाधन इसी देश में दबा कर रखे हुए हैं और किसान नकली बीज-खाद और कीटनाशक ऊंचे दामों पर इस बेईमान सरकारी तंत्र के चलते खरीदने के लिए विवश है। सरकारी तंत्र (जिलाधिकारी,एस.पी.) न तो टैक्स चोरों-मिलावटखोरों को पकड़ पा रहा है और न तो डकैती और सांप्रदायिकता भड़काने वाले राजनीतिक गुंडों पर कोई लगाम लगा पा रहा है। विजया माल्या जैसे टैक्स चोर,काले कारोबारी जेल के बजाय राज्य सभा में सांसद चुन कर भेजे जा रहे हैं, वहीं प्राकृतिक आपदा और बढ़ते खेती की लागत के कारण समय पर मामूली ऋण जमा न कर पाने वाले किसान को बेरहमी से उसके खेत और घर से घसीट कर हवालात में बंद कर दिया जाता है तथा हवालात का भी खर्च उसी से जबरदस्ती वसूला जा रहा है।
स्थिति खतरनाक मोड़ ले चुकी है। किसान अपने दलहन-तिलहन,गेहूं-धान गन्ना का दाम नहीं तय कर सकता है। अब स्टाक मार्केट के अरबपति-खरबपति दलाल और बाजार के मुनाफाखोर खिलाड़ी इसका दाम तय कर रहे हैं। यही पूंजी का कमाल खेती-किसानी का दुर्दिन है। कारण साफ है किसान संगठित नहीं है। वेतन आयोग ने हाल ही में सरकारी कर्मचारी का न्यूनतम मासिक वेतन रु. 18,0000.00 मासिक तथा अधिकतम रु.2.50 लाख मासिक तय कर दिया है किन्तु साथ सत्तर सालों तक खेतों में पसीना बहाने वाले किसानों,खेत मजदूरों का कोई पुरसा हाल नहीं है न तो उनके न्यूनतम आय की कोई गारंटी है। इसीलिए गांवों से प्रतिवर्ष 9% की दर से सालान पलायन हो रहा है और खेती का रकबा भूमि अधिग्रहण कानून और अंधे विकासवाद की नीतियों के चलते लगातार घटता जा रहा है।
कृषि लागत दर और महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है,इसे हर हाल में रोकना होगा और इसे रोकने के लिए संगठित और धारदार किसान आंदोलन की जरूरत आज सबसे ज्यादा है। खेती को बचना है तो गाँव को भी बचना होगा,गाँव बचेगा तभी खेती और किसानी बचेगी। खेती और गाँव बचाकर ही हम किसान और देश को बचा सकते हैं यही सच्ची देश भक्ति और राष्ट्रवाद है।
इन्हीं सच्चाइयों को ध्यान में रख कर उत्तर-प्रदेश किसान सभा ने पूरे प्रदेश में 11 अप्रैल 2016 से किसान जागरण यात्रा प्रारम्भ की है। देश के किसानों के सर्वमान्य नेता,स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी स्वामी सहजानन्द के जन्म स्थल गाजीपुर से यह अभियान शुरू किया गया है जो 20 मई को लखनऊ में विशाल किसान महापंचायत में तब्दील हो जायेगा और इस महापंचायत में उत्तर प्रदेश के सभी प्रभावी किसान संगठनों के नेतृत्व के अतिरिक्त अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव और साथी अतुल कुमार अनजान की उल्लेखनीय उपस्थिति रहेगी।
यह अभियान नई सोच और किसानोन्मुखी राजनीति पैदा करने का है। किसानों,मजदूरों,दस्तकारों को संगठित कर देश एवं प्रदेश की राजनीति को किसानोन्मुखी बनाने की दिशा में यह सशक्त हस्तक्षेप है ताकि देश की दौलत का मुंसिफ़ाना तस्कीम हो सके और देश बहुराष्ट्रीय कंपनियों,शेयर बाजार के सट्टेबाज खिलाड़ियों,भ्रष्ट राजनेताओं,कुटिल अफसरशाहों-ठेकेदारों के चंगुल से मुक्त हो सके।
प्रमुख मांगें
1. राष्ट्रीय किसान आयोग (स्वामीनाथन आयोग) की संस्तुतियों को केंद्र और राज्य सरकारें तत्काल लागू करें।
2. 60 वर्ष के सभी स्त्री-पुरुष किसानों,खेत मजदूरों,ग्रामीण दस्तकारों को 10,000 रु. ( दस हजार रुपया) मासिक पेंशन केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर देना सुनिश्चित करें।
3. किसानों के सहकारी-सरकारी कर्ज़ माफ किये जायें एवं उन्हें रबी-खरीफ पर ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराया जाये।
4. कृषि उत्पादों का लाभकारी मूल्य (लागत पर पचास फीसदी जोड़ कर) दिया जाय।
5. भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को तत्काल वापस लिया जाय।
6. केरल राजयकी भांति किसान कर्ज़ एवं आपदा राहत ट्रिब्यूनल की स्थापना की जाय।
7. खेती किसानी के लिए बिजली की बढ़ी दरों को वापस लिया जाय, साथ ही सस्ती एवं अबाध बिजली 18 घंटे उपलब्ध कराई जाय।
8. नहरों की टेल तक वास्तविक सफाई कराकर पानी खेतों में पहुँचने का पुख्ता प्रबंध किया जाय।
9. प्रदेश के किसानो के निजी नलकूपों को अन्य राज्यों की तरह मुफ्त बिजली की व्यवस्था की जाय।
10. नंदगंज,रसड़ा,छाता,देवरिया,औरैया,शाहगंज चीनी मिलों को चालू किया जाय।
11. शिक्षा व चिकित्सा व्यवस्था को सरकार अपने हाथ में ले।
12. गन्ने का सामान्य मूल्य 450 रु. किया जाय एवं गन्ने का बकाया भुगतान किया जाय।
13. प्रदेश में रबी व खरीफ की फसल बर्बाद होने के बाद केंद्र व प्रदेश की सरकारें क्षतिपूर्ति देने का वादा करें या अब तक लगभग 33%किसान लाभान्वित हुए हैं शेष किसानों को तत्काल क्षतिपूर्ति दी जाय।
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