-संजोग वाल्टर||
गीतादत्त को गुज़रे 41 साल हो गये हैं, महज़ 42 साल की उम्र में
दुनिया को उस वक्त अलविदा कहा जब उनके बच्चे छोटे थे,शौहर था उनकी
ज़िन्दगी में जिसे उन्होंने कभी टूट कर चाहा था,शौहर दूसरी औरत के
लिए पागल हो गया था,शौहर की खुदकुशी के बाद जिस दौलत और कम्पनी की मालियत उन्हें
और उनके बच्चों को मिलनी थी वो सब कुछ उन्हें नहीं मिला शौहर के भाई सब
ले गये, गम गलत करने के लिए शराब का सहारा लिया जब होश आया तीन बच्चों की
ज़िम्मेदारी थी उनके कन्धों पर. तब तक बहुत देर हो चुकी थी,1950 के
मध्य से ही कुछ न कुछ वजहों से वो फ़िल्मी दुनिया से धीरे धीरे अलग हो रही थी.
जिसने हरेक गाने को अपने अंदाज़ में
गाया. नायिका, सहनायिका, खलनायिका, नर्तकी या रास्ते की बंजारिन, हर किसी के लिए अलग रंग और ढंग के गाने गाये. “नाचे घोड़ा नाचे
घोड़ा, किम्मत इसकी बीस हज़ार मैं बेच रही हूँ बीच बाज़ार” आज से 61 साल पहले बना हैं और फिर भी तरोताजा हैं. “आज की काली घटा” सुनते हैं तो लगता है सचमुच बाहर बादल छा गए हैं. तब लोग कहते
थे गीता गले से नहीं दिल से गाती थी! गीता दत्त का नाम ऐसी पार्श्वगायिका
के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपनी दिलकश आवाज की कशिश से
लगभग तीन दशकों तक करोड़ों श्रोताओं को मदहोश किया.
फिल्म जगत में गीता दत्त के नाम से
मशहूर गीता घोष राय चौधरी महज 12 वर्ष की थी तब उनका पूरा परिवार फरीदपुर (अब बंगलादेश) से 1942 में
बम्बई (अब मुंबई) आ गया. उनके पिता देबेन्द्रनाथ घोष रॉय चौधरी
ज़मींदार थे ,गीता के कुल दस भाई बहन थे जमींदार थे. बचपन के दिनों से ही गीता
राय का रूझान संगीत की ओर था और वह पार्श्वगायिका बनना चाहती थी. गीता राय
ने अपनी संगीत की प्रारंभिक शिक्षा हनुमान प्रसाद से हासिल की. 23 नवंबर 1930 में फरीदपुर शहर में जन्मी गीता राय को सबसे पहले वर्ष 1946 में
फिल्म भक्त प्रहलाद के लिए गाने का मौका मिला. गीता राय ने कश्मीर की कली, रसीली, सर्कस किंग (1946) जैसी
कुछ फिल्मो के लिए भी गीत गाए लेकिन इनमें से कोई भी बॉक्स आफिस पर सफल
नही हुई. इस बीच उनकी मुलाकात महान संगीतकार एस डी बर्मन से हुई. गीता
रॉय मे एस डी बर्मन को फिल्म इंडस्ट्री का उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और
उन्होंने गीता राय से अपनी अगली फिल्म दो भाई के लिए गाने की पेशकश की.
वर्ष 1947 में प्रदर्शित फिल्म दो भाई गीता राय के सिने कैरियर की अहम फिल्म साबित हुई और इस फिल्म में उनका गाया यह
गीत मेरा सुंदर सपना बीत गया. लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ. फिल्म दो
भाई मे अपने गाये इस गीत की कामयाबी के बात बतौर पार्श्वगायिका गीता राय
अपनी पहचान बनाने में सफल हो गई.
वर्ष 1951
गीता राय के सिने करियर के साथ ही
व्यक्तिगत जीवन में भी एक
नया मोड़ लेकर आया. फिल्म बाजी के
निर्माण के दौरान उनकी मुलाकात निर्देशक
गुरूदत्त से हुई. फिल्म के एक गाने
तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले की
रिर्काडिंग के दौरान गीता राय को देख
गुरूदत्त फ़िदा हो गए. फिल्म बाजी की
सफलता ने गीता राय की तकदीर बना दी और
बतौर पार्श्व गायिका वह फिल्म
इंडस्ट्री में स्थापित हो गई. गीता राय
भी गुरूदत्त से प्यार करने लगी.
वर्ष 1953
में गीता राय ने गुरूदत्त से शादी कर
ली. गीता राय से वो बन गयी
थी गीता दत्त, साल 1956 गीता
दत्त के सिने कैरियर में एक अहम पड़ाव लेकर
आया. हावड़ा ब्रिज के संगीत निर्देशन के
दौरान ओ पी नैयर ने ऐसी धुन तैयार
की थी जो सधी हुयी गायिकाओं के लिए भी
काफी कठिन थी. जब उन्होने गीता दत्त
को “मेरा नाम चिन चिन चु”
गाने को कहा तो उन्हे लगा कि वह इस तरह
के पाश्चात्य संगीत के साथ तालमेल नहीं बिठा पायेंगी. लेकिन
उन्होने इसे एक चुनौती की तरह लिया और इसे गाने के लिए उन्होंने पाश्चात्य
गायिकाओ के गाये गीतों को भी बारीकी से सुनकर अपनी आवाज मे ढालने की कोशिश की
और बाद में जब उन्होंने इस गीत को गाया तो उन्हें भी इस बात का सुखद अहसास
हुआ कि वह इस तरह के गाने गा सकती है.
गीता दत्त के पंसदीदा संगीतकार के तौर
पर एस डी बर्मन का नाम सबसे पहले
आता है. गीता दत्त और एस डी बर्मन की
जोड़ी वाली गीतो की लंबी फेहरिस्त में
कुछ है .मेरा सुंदर सपना बीत गया (दो
भाई- 1947), तदबीर से बिगड़ी हुई
तकदीर बना दे (बाजी-1951), चांद
है वही सितारे है वही गगन (परिणीता-1953),
जाने क्या तुने सुनी जाने क्या मैने
सुनी, हम आपकी आंखों मे इस दिल को बसा लें तो (प्यासा-1957), वक्त
ने किया क्या हसीं सितम (कागज के फूल-1959)
जैसे न भूलने वाले गीत शामिल है. गीता
दत्त के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी
संगीतकार ओ.पी.नैयर के साथ भी पसंद की
गई. ओ पी नैयर के संगीतबद्ध जिन
गीतों को गीता दत्त ने अमर बना दिया
उनमें कुछ है, सुन सुन सुन जालिमा,
बाबूजी धीरे चलना, ये लो मै हारी पिया, मोहब्बत कर लो जी भर
लो, (आरपार-1954), ठंडी हवा काली घटा,
जाने कहां मेरा जिगर गया जी, (मिस्टर एंड मिसेज 55-1955), आंखो हीं आंखो मे इशारा हो गया,
जाता कहां है दीवाने (सीआईडी-1956), मेरा
नाम चिन चिन चु (हावड़ा ब्रिज-1958), तुम जो हुये मेरे
हमसफर (12ओ क्लाक-1958), जैसे न भूलने वाले गीत शामिल है.जिस साल फिल्म “दो भाई” प्रर्दशित हुई उसी
साल फिल्मिस्तान की और एक फिल्म आयी थी जिसका नाम था शहनाई. दिग्गज
संगीतकार सी रामचन्द्र ने एक फडकता हुआ प्रेमगीत बनाया था “चढ़ती जवानी में झूलो
झूलो मेरी रानी, तुम प्रेम का हिंडोला”.
इसे गाया था खुद सी रामचंद्र, गीता रॉय और बीनापानी
मुख़र्जी ने. कहाँ “दो भाई” के दर्द भरे गीत और कहाँ यह प्रेम के हिंडोले!
गीतकार राजेंदर किशन की कलम का जादू हैं
इस प्रेमगीत में जिसे संगीतबद्ध
किया हैं सचिन देव बर्मन ने. “एक हम और दूसरे तुम, तीसरा कोई नहीं, यूं कहो हम एक हैं और दूसरा कोई नहीं”. इसे गाया हैं किशोर
कुमार और गीता रॉय ने फिल्म “प्यार” के लिए जो सन 1950 में आई थी. गीत फिल्माया गया था राज कपूर और नर्गिस पर.”हम तुमसे पूंछते हैं
सच सच हमें बताना, क्या तुम को आ
गया हैं दिल लेके मुस्कुराना?” वाह वाह क्या सवाल
किया हैं. यह बोल हैं अंजुम जयपुरी के लिए जिन्हें संगीतबद्ध किया था चित्रगुप्त ने
फिल्म हमारी शान के लिए जो 1950 में प्रर्दशित हुई थी. बहुत कम संगीत प्रेमी जानते हैं की गीता दत्त ने सबसे ज्यादा गीत संगीतकार चित्रगुप्त के लिए
गाये हैं. यह गीत गाया हैं मोहम्मद रफी और गीता ने. रफी और गीता दत्त के
गानों में भी सबसे ज्यादा गाने चित्रगुप्त ने संगीतबद्ध किये हैं.भले गाना
पूरा अकेले गाती हो या फिर कुछ थोड़े से शब्द, एक अपनी झलक जरूर
छोड़ देती थी. “पिकनिक
में टिक टिक करती झूमें मस्तों की टोली” ऐसा युगल गीत हैं
जिसमें मन्ना डे साहब और साथी कलाकार ज्यादातर गाते हैं , और गीता दत्त सिर्फ
एक या दो पंक्तियाँ गाती हैं.
इस गाने को सुनिए और उनकी आवाज़ की
मिठास और हरकत देखिये. ऐसा ही गाना
हैं रफी साहब के साथ “ए दिल हैं मुश्किल
जीना यहाँ” जिसमे गीता दत्त सिर्फ
आखिरी की कुछ पंक्तियाँ गाती हैं. “दादा गिरी नहीं चलने
की यहाँ..” जिस अंदाज़ में गाया हैं वो अपने आप में गाने को चार चाँद लगा देता
हैं. ऐसा ही एक उदाहरण हैं एक लोरी का जिसे गीता ने गया हैं पारुल घोष जी
के साथ. बोल हैं ” आ जा री निंदिया आ”,
गाने की सिर्फ पहली दो पंक्तियाँ गीता
के मधुर आवाज़ मैं हैं और बाकी का पूरा गाना पारुल जी ने गाया हैं.बात
हो चाहे अपने से ज्यादा अनुभवी गायकों के साथ गाने की (जैसे की मुकेश, शमशाद बेग़म और जोहराजान अम्बलावाली) या फिर नए गायकोंके साथ गाने की (आशा
भोंसले, मुबारक
बेग़म,
सुमन कल्याणपुर, महेंद्र कपूर या अभिनेत्री
नूतन)! न किसी पर हावी होने की कोशिश न किसीसे प्रभावित होकर अपनी छवि खोना.
अभिनेता सुन्दर, भारत भूषण, प्राण, नूतन, दादामुनि अशोक कुमार
जी और हरफन मौला किशोर कुमार के साथ भी गाने गाये! चालीस के दशक के
विख्यात गायक गुलाम मुस्तफा दुर्रानी के साथ तो इतने ख़ूबसूरत गाने गाये हैं
मगर दुर्भाग्य से उनमें से बहुत कम गाने आजकल उपलब्ध हैं. ग़ज़ल
सम्राट तलत महमूद के साथ प्रेमगीत और छेड़-छड़ भरे मधुर गीत गायें. इन
दोनों के साथ संगीतकार बुलो सी रानी द्वारा संगीतबद्ध किया हुआ “यह प्यार की बातें यह
आज की रातें दिलदार याद रखना”
बड़ा ही मस्ती भरा गीत हैं, जो फिल्म बगदाद के लिए बनाया गया था. इसी तरह गीता ने तलत महमूद के साथ कई सुरीले
गीत गायें जो आज लगभग अज्ञात हैं.
जब वो गाती थी “आग लगाना क्या
मुश्किल हैं” तो सचमुच लगता हैं कि गीता की आवाज़ उस नर्तकी
के लिए ही बनी थी. गाँव की गोरी के लिए गाया हुआ गाना “जवाब नहीं गोरे मुखडे
पे तिल काले का” (रफी साहब के साथ) बिलकुल उसी अंदाज़ में हैं.
उन्ही चित्रगुप्त के संगीत दिग्दर्शन में उषा मंगेशकर के साथ गाया “लिख पढ़ पढ़ लिख के
अच्छा सा राजा बेटा बन”. और फिर उसी फिल्म
में हेलन के लिए गाया “बीस बरस तक लाख
संभाला, चला गया पर जानेवाला,
दिल हो गया चोरी हाय…!”
सन १९४९ में संगीतकार ज्ञान दत्त का
संगीतबद्ध किया एक फडकता हुआ गीत “जिया का दिया पिया टीम टीम होवे”
शमशाद बेग़म जी के साथ इस अंदाज़ में गाया हैं कि बस! उसी फिल्म में एक तिकोन गीत था “उमंगों के दिन बीते
जाए” जो आज भी जवान हैं. वैसे तो गीता दत्त ने फिल्मों के लिए गीत
गाना शुरू किया सन 1946 में, मगर एक ही साल में फिल्म दो भाई के गीतों से लोग उसे पहचानने लग गए. अगले पांच साल तक गीता दत्त, शमशाद बेग़म और लता
मंगेशकर सर्वाधिक लोकप्रिय गायिकाएं रही. अपने जीवन में सौ से भी
ज्यादा संगीतकारों के लिए गीता दत्त ने लगभग सत्रह सौ गाने गाये.अपनी आवाज़ के
जादू से हमारी जिंदगियों में एक ताज़गी और आनंद का अनुभव कराने के लिए संगीत
प्रेमी गीता दत्त को हमेशा याद रखेंगे.गीता रॉय (दत्त) ने एक से बढ़कर एक
खूबसूरत प्रेमगीत गाये हैं मगर जिनके बारे में या तो कम लोगों को
जानकारी हैं या संगीत प्रेमियों को इस बात का शायद अहसास नहीं है. इसीलिए आज
हम गीता के गाये हुए कुछ मधुर मीठे प्रणय गीतों की खोज करेंगे.
गीता दत्त और किशोर कुमार ने फिल्म मिस
माला (१९५४)के लिए, चित्रगुप्त
के संगीत निर्देशन में. “नाचती झूमती
मुस्कुराती आ गयी प्यार की रात” फिल्माया गया था खुद किशोरकुमार और अभिनेत्री वैजयंती माला पर.
रात के समय इसे सुनिए और देखिये गीता की अदाकारी और आवाज़ की मीठास. कुछ
संगीत प्रेमियों का यह मानना हैं कि यह गीत उनका किशोरकुमार के साथ
सबसे अच्छा गीत हैं.
गौर करने की बात यह हैं कि गीता दत्त ने
अभिनेत्री वैजयंती माला के लिए
बहुत कम गीत गाये हैं. सन 1955 में फिल्म
सरदार का यह गीत बिनाका गीतमाला
पर काफी मशहूर था. संगीतकार जगमोहन “सूरसागर” का स्वरबद्ध किया यह
गीत हैं “बरखा की रात में हे हो हां..रस बरसे नील गगन से”. उद्धव कुमार के लिखे
हुए बोल हैं. “भीगे हैं तन फिर भी जलाता हैं मन, जैसे के जल में लगी
हो अगन, राम सबको बचाए इस उलझन से”.कुछ साल और पीछे जाते हैं सन १९४८ में. संगीतकार हैं ज्ञान दत्त और गाने के बोल लिखे हैं जाने माने गीतकार दीना
नाथ मधोक ने. जी हाँ, फिल्म का नाम हैं “चन्दा की चांदनी”
और गीत हैं “उल्फत के दर्द का भी मज़ा लो”.
१८ साल की जवान गीता रॉय की सुमधुर
आवाज़ में यह गाना सुनते ही बनता है. प्यार के दर्द के बारे में वह कहती हैं “यह दर्द सुहाना इस दर्द को पालो,
दिल चाहे और हो जरा और हो”. लाजवाब! प्रणय भाव के
युगल गीतों की बात हो रही हो और फिल्म दिलरुबा का यह गीत हम कैसे
भूल सकते हैं? अभिनेत्री रेहाना और देव आनंद पर फिल्माया गया यह गीत है “हमने खाई हैं मुहब्बत में जवानी की कसम,
न कभी होंगे जुदा हम”. चालीस के दशक के
मशहूर गायक गुलाम मुस्तफा दुर्रानी के साथ गीता रॉय ने यह गीत गाया
था सन 1950 में. आज भी इस गीत में प्रेमभावना के तरल और मुलायम रंग हैं.
दुर्रानी और गीता दत्त के मीठे और रसीले
गीतों में इस गाने का स्थान
बहुत ऊंचा हैं.गीतकार अज़ीज़ कश्मीरी और
संगीतकार विनोद (एरिक रॉबर्ट्स) का
“लारा लप्पा” गीत तो बहुत मशहूर
हैं जो फिल्म “एक थी लड़की में”
था. उसी फिल्म में विनोद ने
गीता रॉय से एक प्रेमविभोर गीत गवाया. गाने के बोल हैं “उनसे कहना के वोह
पलभर के लिए आ जाए”. एक अद्भुत सी मीठास हैं इस गाने में. जब वाह गाती हैं
“फिर मुझे ख्वाब में मिलने के लिए आ जाए, हाय, फिर मुझे ख्वाब में मिलने के लिए आ जाए” तब उस “हाय” पर दिल धड़क उठता
हैं.सन १९४८ में पंजाब के जाने माने संगीतकार हंसराज बहल के लिए फिल्म
“चुनरिया” के लिए गीता ने गाया था “ओह मोटोरवाले बाबू मिलने आजा रे,
तेरी मोटर रहे सलामत बाबू मिलने आजा
रे”. एक गाँव की अल्हड गोरी की भावनाओं को सरलता और मधुरता से इस गाने में गीता ने अपनी आवाज़ से सजीव बना दिया
है.सन 1950 में फिल्म “हमारी बेटी” के लिए जवान संगीतकार स्नेहल भाटकर (जिनका असली नाम था वासुदेव भाटकर) ने मुकेश और गीता रॉय से गवाया एक मीठा सा युगल
गीत “किसने
छेड़े तार मेरी दिल की सितार के किसने
छेड़े तार”. भावों की नाजुकता और
प्रेम की परिभाषा का एक सुन्दर उदाहरण
हैं यह युगल गीत जिसे लिखा था रणधीर
ने.बावरे नैन फिल्म में संगीतकार रोशन
को सबसे पहला सुप्रसिद्ध गीत (ख़यालों में किसी के) देने के बाद अगले साल गीता रॉय ने रोशन
के लिए फिल्म बेदर्दी के लिए गाया “दो प्यार की बातें हो जाए,
एक तुम कह दो, एक हम कह दे”. बूटाराम शर्मा के लिखे इस सीधे से गीत में अपनी आवाज़ की जादू
से एक अनोखी अदा बिखेरी हैं गीता रोय ने.
पाश्चात्य धुन पर थिरकता हुआ एक स्वप्नील
प्रेमगीत हैं फिल्म ज़माना (1957 ) से जिसके संगीत निर्देशक हैं सलील चौधरी और बोल हैं “दिल यह चाहे चाँद सितारों को छूले ..दिन बहार के हैं..” उसी साल फिल्म
बंदी का मीठा सा गीत हैं “गोरा बदन मोरा उमरिया बाली मैं तो गेंद की डाली मोपे तिरछी नजरिया ना डालो मोरे बालमा”.
हेमंतकुमार का संगीतबद्ध यह गीत सुनने
के बाद दिल में छा जाता है.संगीतकार ओमकार प्रसाद नय्यर (जो की ओ पी
नय्यर के नाम से ज्यादा परिचित है) ने कई फिल्मों को फड़कता हुआ संगीत दिया.
अभिनेत्री श्यामा की एक फिल्म आई थी श्रीमती 420 (1956) में, जिसके लिए ओ पी ने एक प्रेमगीत गवाया था मोहम्मद रफी और गीता दत्त से. गीत के बोल है
“यहाँ हम
वहां तुम,
मेरा दिल हुआ हैं गुम”, जिसे लिखा था जान
निसार अख्तर ने.आज के युवा संगीत प्रेमी शायद शंकरदास गुप्ता के नाम से अनजान है.
फिल्म आहुती (1950) के लिए गीता राय ने शंकरदास गुप्ता के लिए युगल गीत गाया था “लहरों से खेले चन्दा,
चन्दा से खेले तारे”.
उसी फिल्म के लिए और एक गीत इन दोनों ने
गाया था “दिल के बस में हैं
जहां ले जाएगा हम जायेंगे..वक़्त से कह
दो के ठहरे बन स्वर के आयेंगे”. एक अलग अंदाज़ में यह गीत स्वरबद्ध किया हैं, जैसे की दो प्रेमी
बात-चीत कर रहे हैं. गीता अपनी मदभरी आवाज़ में कहती हैं -“चाँद बन कर आयेंगे और चांदनी फैलायेंगे”.”दिल-ऐ-बेकरार कहे बार बार,हमसे थोडा थोडा प्यार भी ज़रूर करो जी”. इस को गाया हैं गीता
दत्त और गुलाम मुस्तफा दुर्रानी ने
फिल्म बगदाद के लिए और संगीतबद्ध किया
हैं बुलो सी रानी ने. जिस बुलो सी
रानी ने सिर्फ दो साल पहले जोगन में एक
से एक बेहतर भजन गीता दत्त से गवाए
थे उन्हों ने इस फिल्म में उसी गीता से
लाजवाब हलके फुलके गीत भी गवाएं. और
जिस राजा मेहंदी अली खान साहब ने फिल्म
दो भाई के लिखा था “मेरा सुन्दर
सपना बीत गया” , देखिये कितनी मजेदार
बाते लिखी हैं इस गाने में: दुर्रानी :
मैं बाज़ आया मोहब्बत से, उठा लो पान दान अपना
गीता दत्त : तुम्हारी मेरी
उल्फत का हैं दुश्मन खानदान अपना
दुर्रानी : तो ऐसे खानदान की नाक में
अमचूर करो जी सचिन देव बर्मन ने जिस साल
गीता रॉय को फिल्म दो भाई के दर्द
भरे गीतों से लोकप्रियता की चोटी पर
पहुंचाया उसी साल उन्ही की संगीत बद्ध
की हुई फिल्म आई थी “दिल की रानी”. जवान राज कपूर और
मधुबाला ने इस फिल्म में अभिनय किया था. उसी फिल्म का यह मीठा सा प्रेमगीत हैं “आहा मोरे मोहन ने मुझको बुलाया हो”.
इसी फिल्म में और एक प्यार भरा गीत था “आयेंगे आयेंगे आयेंगे रे मेरे मन के बसैय्या आयेंगे रे”. और अब आज की आखरी
पेशकश है संगीतकार बुलो सी रानी का फिल्म दरोगाजी (१९४९) के लिया
संगीतबद्ध किया हुआ प्रेमगीत “अपने साजन के मन में समाई रे”.
बुलो सी रानी ने इस फिल्म के पूरे के पूरे यानी 12
गाने सिर्फ गीता रॉय से ही गवाए हैं.
अभिनेत्री नर्गिस पर फिल्माये गए इस मधुर गीत के बोल हैं मनोहर लाल खन्ना
(संगीतकार उषा खन्ना के पिताजी) के. गीता की आवाज़ में लचक और नशा का एक
अजीब मिश्रण था जिसने इस गीत को और भी मीठा कर दिया.
वर्ष 1957
मे गीता दत्त और गुरूदत्त की विवाहित
जिंदगी मे दरार आ गई. गुरूदत्त ने गीता दत्त के काम में दखल देना शुरू कर दिया. वह
चाहते थे गीता दत्त केवल उनकी बनाई फिल्म के लिए ही गीत गाये. काम में प्रति
समर्पित गीता दत्त तो पहले इस बात के लिये राजी नही हुयी लेकिन बाद में
गीता दत्त ने किस्मत से समझौता करना ही बेहतर समझा. धीरे-धीरे अन्य
निर्माता निर्देशको ने गीता दत्त से किनारा करना शुरू कर दिया. कुछ दिनो
के बाद गीता दत्त अपने पति गुरूदत्त के बढ़ते दखल को बर्दाशत न कर सकी और
उसने गुरूदत्त से अलग रहने का निर्णय कर लिया.
इस बात की एक मुख्य वजह यह भी रही कि उस
समय गुरूदत्त का नाम अभिनेत्री
वहीदा रहमान के साथ भी जोड़ा जा रहा था
जिसे गीता दत्त सहन नही कर सकी.
गीता दत्त से जुदाई के बाद गुरूदत्त टूट
से गये और उन्होंने अपने आप को
शराब के नशे मे डूबो दिया. दस अक्तूबर 1964 को
अत्यधिक मात्रा मे नींद की
गोलियां लेने के कारण गुरूदत्त इस
दुनियां को छोड़कर चले गए. गुरूदत्त की
मौत के बाद गीता दत्त को गहरा सदमा
पहुंचा और उसने भी अपने आप को नशे में
डुबो दिया.
गुरूदत्त की मौत के बाद उनकी निर्माण
कंपनी उनके भाइयो के पास चली गयी.
गीता दत्त को न तो बाहर के निर्माता की
फिल्मों मे काम मिल रहा था और न ही
गुरूदत्त की फिल्म कंपनी में. इसके बाद
गीता दत्त की माली हालत धीरे धीरे
खराब होने लगी. कुछ वर्ष के पश्चात गीता
दत्त को अपने परिवार और बच्चों के
प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ
तरुण ( 1954), अरुण (1956),और नीना ( 1962) का भविष्य उनके सामने था और वह पुन: फिल्म इंडस्ट्री में अपनी
खोयी हुयी जगह बनाने के लिये संघर्ष करने लगी. “मंगेशकर बैरियर” भी सामने था लिहाज़ा वो दुर्गापूजा में होने वाले स्टेज कार्यकर्मों के लिए
गा कर गुज़र बसर करने लगी.
ज़मींदार घराने की गीता दत्त के आख़िरी
दिन मुफलिसी में गुज़रे ,1967 में रिलीज़ बंग्ला फिल्म बधू बरन में गीता दत्त को काम करने का
मौका मिला जिसकी कामयाबी के बाद गीता दत्त कुछ हद तक अपनी खोयी हुयी
पहचान बनाने में सफल हो गई. हिन्दी के अलावा गीता दत्त ने कई बांग्ला फिल्मों
के लिए भी गाने गाए. इनमें तुमी जो आमार (हरनो सुर-1957), निशि
रात बाका चांद (पृथ्वी आमार छाया-1957), दूरे तुमी आज (इंद्राणी-1958),
एई सुंदर स्वर्णलिपि संध्या (हॉस्पिटल-1960),
आमी सुनचि तुमारी गान (स्वरलिपि-1961) जैसे
गीत श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय है. सत्तर के दशक में गीता
दत्त की तबीयत खराब रहने लगी और उन्होंने एक बार फिर से गीत गाना कम कर दिया.
1971 में रिलीज़ हुई अनुभव में गीता दत्त ने तीन गीत गाये थे,संगीतकार थे कनु राय ” कोई चुपके से आके” “मेरा दिल जो मेरा
होता “”मेरी जान मुझे जान न कहो”
इस फिल्म में काम करने
के बाद वो बीमार रहने लगी:आखिकार 20
जुलाई 1972
को इस दुनिया को अलविदा कह
दिया .
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