Monday, 24 November 2014

कम्‍युनिस्‍ट पार्टियों ने देश के वंचित तबकों का भरोसा क्‍यों खो दिया? ---Pramod Ranjan


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आइए, एक उदाहरण के माध्‍यम से इस प्रश्‍न पर विचार करें कि कम्‍युनिस्‍ट पार्टियों ने देश के वंचित तबकों का भरोसा क्‍यों खो दिया?

बिहार में एक विधायक है अनंत सिंह। जाति है भूमिहार। इन दिनों सत्‍ताधारी जदयू में है। फेसबुक पर अन्‍य राज्‍यों के साथी शायद उन्‍हें नहीं जानते होंगे। अनंत सिंह को 'छोटे सरकार' और बिहार के मोकामा क्षेत्र का आतंक कहा जाता है। इस सामंत के पास अवैध ह‍थियारों का बिहार भर में संभवत: सबसे बडा जखीरा है। दर्जनों हत्‍याओं के आरोप इस पर है, और कम से कम बिहार का हर वशिंदा जानता है कि ये कतई सिर्फ आरोप नहीं हैं।

उपरोक्‍त परिचय तो वह है, जो आपको बिहार के लोग बताएंगे, लेकिन यह जानना रोचक है कि खुद अनंत सिंह अपना परिचय क्‍या देता है। बिहार विधान सभा को दिये गये हलफनामा में उसने बताया है कि मैंने '1980 से ही कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) के सक्रिय सदस्‍य के रूप में मजदूरों के लिए लडाई लडी'।

दरअसल, अनंत का यह परिचय सिर्फ इस बहुबली का ही परिचय नहीं है, यह कम्‍युनिस्‍ट पार्टियों का भी परिचय है कि 'मजदूरों की लडाई' के नाम पर वे किन तबकों के कैसे लोगों को पश्रय देते रहे हैं। लालू और नीतीश ने यूं ही उनकी बोई खेती नहीं काटी!

एक और बात, पिछले दिनों बिहार के दलित मुख्‍यमंत्री का एक बयान आया था, जिसका आशय था कि आर्य/ सवर्ण बाहरी हैं। लेकिन इस बयान के आते ही अनंत सिंह भडक पडा। उसने कहा कि 'मांझी एक दिन के लिए भी मुख्‍यमंत्री बनने लायक नहीं है। उसे कांके (पागलखाना) में भर्ती करवाना चाहिए।' यह बिहार में मीडिया का पसंदीदा बयान बना, इसे खूब छापा और दिखाया गया। गोया अनंत सिंह कोई बौद्धिक हो, इस विषय पर उसकी बात बहुत महत्‍वपूर्ण हो। यहां अटैच अनंत सिंह द्वारा बिहार विधान सभा को सौपा गया बायोडाटा देखिए। उनकी 'शैक्षणिक योग्‍यता' है - 'साक्षर'। वैसे, सच यह है कि वह न लिखना जानता है, न पढना।

यानी, सिर्फ कम्‍युनिस्‍ट पार्टियों का ही नहीं, मीडिया का रूख भी विचारणीय है। तथ्‍य यह है कि बिहार के मीडिया हाऊसों में अनंत सिंह द्वारा 'बहाल करवाये गये' पत्रकार बडी संख्‍या में है। बिहार के मीडिया का इतना गलीज चेहरा यूं ही नहीं है।

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