श्री मोहन भागवत जी किसी राष्ट्र के लिए परम वैभव क्या होगा ?
कल आगरा में श्री भागवत ने संघ के कार्यकर्ताओ को संबोधित किया। कहा " संघ
ही देश को परम वैभव दिला सकता है"(जागरण 4-11-2014 कानपुर)
21वीं शताब्दी में किसी राष्ट्र/देश के लिए वैभव की क्या परिभाषा होगी।
सामान्य एवं मान्य समझ के अनुसार जिस समाज/ देश में:
# मानव द्वारा मानव का शोषण न हो।
# सामाजिक एवं आर्थिक न्याय हो।
# सामाजिक असमानता पनपने के सारे कारण समाप्त कर दिए गए हों।
# प्रत्येक धर्मावलम्बी को अपने धर्म को मानने की स्वतंत्रता हो और उक्त
धार्मिक निजता में राज्य का सरोकार उसी हद तक हो जिससे विभिन्न धार्मिक
समूहों में यदि कोई विरोधाभाव पैदा हो तो उसका निवारण हो सके।
# महिलाओ को बराबरी का हक़ और सम्मान मिले।
यदि भारत का संविधान देखा जाये तो उसके' राज्य की निति के निदेशक तत्वों
'में भारत को परम वैभव शाली राज्य बनाने के बहुत से सूत्र दिए गए हैं।
क्या आपका आशय उसी वैभव से है भागवत जी?
लेकिन आपने अपने संबोधन में जो दो उदहारण प्रस्तुत किये हैं उनकी दशा तो वैभव हीन सम्माज की है।
जापान:
दूसरे विश्वयुद्ध में जापान का टोजो, हिटलर - मुसोलिनी की धुरी का
हिस्सा था। वहा का विकास पूंजीवादी पूंजी प्रधान विकास है और बावजूद 12
करोड़ की आबादी के आर्थिक असमानताए और विषमताए विद्यमान हँ। गरीबी और
अमीरी का बड़ा अंतर है। जिनी की 2013 की रिपोर्ट के अनुसार वहाँ गरीबी की
दर 8%है। यह बात अलग है की वहाँ के गरीब भारत के अमीरों के बाराबर हों।
इजराइल:
82 लाख की आबादी का एक ऐसा देश है जो सिर्फ और सिर्फ अमरीका और
अन्य धनी मुल्को की वजेह और मदद से चौधरी बना बैठा है। वहाँ के एक एक
उद्योग में विदेशी बहु राष्ट्रीय कंपनियों का पैसा लगा है।
अरब देशो के
नवाब शेख बेहद अमीर हैं पर उन देशो के आम लोग तो गरीब हैं और वो अधिकतर
उन्ही लोगो को मारता है और संघ के सबसे बड़े पदाधिकारी द्वारा परम वैभव के
ऐसे आदर्श प्रस्तुत किये जा रहे हैं ! क्या मानवता से कोई सरोकार नहीं है?
भागवत जी ! यह कैसा वैभव है?और न ही यह स्थिति भारत के " वसुधैव कुटुम्बकम"के दर्शन को अभिव्यक्त करती है।
वास्तव में संघ प्रमुख जी आप बड़े बड़े प्रचंड शब्दों का प्रयोग करके उस
सच्चाई को छिपाना चाहते हैं जो है पूंजीवादी और साम्राज्यवादी शोषण। आप
उक्त उदाहारणों से केवल उन्ही की प्रशस्ति का गायन कर रहे हैं और इस पुरातन
सभ्यता और संस्कृति के देश वासियों को ऐसे ही वैभव और श्री विहीन सामाज की
ओर उन्मुख होने का सन्देश दे रहे हैं !ये कैसा देश प्रेम है?
देश का
नौजवान श्री भागवत से यह भी पूछना और जानना चाहता है की देश के परम वैभव की
एक घड़ी 15 अगस्त 1947 थी जब देश अंग्रेजो की दास्ता से मुक्त हुआ।
जवाब दे संघ की उस परम वैभव तक पहुचने में 1925(जन्म काल से) 1947 तक क्यो उसकां कोई योगदान नहीं था!
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