Saturday, 23 July 2016

मीडिया मायावती को मोदी समझ रही:/सवर्ण और दलितों का अलगाव ------ अकील अहमद / लालाजी निर्मल

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****** जिसके एक आह्वान पर UP ही नहीं देश के दलित सड़क पर उतर आने को आतुर हो , उसी ताकतवर दलित महिला नेत्री के विरूद्ध आक्रमक तेवर में फरार दयाशंकर की पत्नी को उसके समकक्ष दिखाने का पर्यास जिसमे स्वाति सिंह कह रही है की भाजपा के सारे कार्यकर्ता मेरे साथ
.....क्या संदेश है ? ******
***उत्तर प्रदेश की राजनीती में सवर्ण और दलितों का अलगाव और अपने अपने खेमे में जुड़ाव साफ़ नजर आने लगा है | सोसल मिडिया में तो यह अलगाव शीशे की तरह साफ़ नजर आ रहा है | स्वाभाविक मित्रों को छोड़ कर वैचारिक विरोधियों के साथ दोस्ती और जातीय प्रबंधन निष्फल दिखने लगा है |***
***  दलितों - सवर्णों का यह अलगाव 'नास्तिकता'- एथीज़्म का दावा करने वाले साम्यवादी दल  के भीतर भी उतना ही मजबूत है जितना सोशल मीडिया और समाज में क्योंकि ये दल भी ब्राह्मण वादियों के ही नियंत्रण में हैं। बस फर्क सिर्फ इतना है कि, इन दलों में दलितों का समर्थन करने वाले मुखर लोग खुद दलित नहीं हैं बल्कि गैर ब्राह्मण और गैर प्रभावशाली कामरेड्स हैं । ब्राह्मण वादी /कार्पोरेटी/मोदीईस्ट कामरेड्स प्रभावशाली और दलित विरोधी मानसिकता के हैं जिनके लिए मार्क्स वाद सिर्फ सत्ता नियंत्रण का मंत्र भर है और वे अपनी कारगुजारियों से मार्क्स वाद को जनता से दूर रखने में निरंतर सफल रहे हैं । ***



Aquil Ahmed
मायावती v/s स्वाति 
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जैसे ही हजरतगंज थाने से मायावती जी सहित बसपा के दो अन्य नेतावो सतिस्चन्द्र मिश्र और नसीमुद्दीन सिद्दीकी और कर्य्कर्तावो के खिलाफ FIR दर्ज करा बाहर निकलते ही मीडियाकर्मियों से घिरी स्वाति सिंह (पत्नी भाजपा से निष्कासित नेता दयाशंकरसिंह) ने सहयोग के लिए कैमरे पर ही media का धन्यवाद दिया ,..........मुझे आजतक का वो समाचार याद आ गया मायावती जी के संसद में दयाशंकर जी के विरूद्ध प्रतिरोधस्वरूप उठाईगयी थी जिसमे उन्होंने कहा था ..'' मै देश की बेटी हू ,दया शंकर जी ने मुझ पर नहीं अपनी बेटी , बहन को ये शब्द कहे हैं"......सबसे पहले लोगो का ध्यानाकर्षित करते हुए ''आजतक'' नेकहा था मायावती जी का भी जुबान फिसल रही है .......अब जा कर यह समझ में आया की अहं से भरी स्वर्ण प्रभुत्व और मानसिकता वाली मीडिया को यह हजम न हो पा रहा था की एक दलित भी अपने मान सम्मान के लिए इतने आक्रामकता के साथ प्रतिरोध दर्ज करा सकती है ?____निचे दिए गए देश के दो प्रमुख चैनलों के है, जरा गौर कीजिये ....1, ABP न्यूज़ ....देश के सबसे ताकतवर दलित महिला के विरूद्ध अपराधिक टिपन्नी करने वाले फरार दयाशंकर सिंह की पत्नी का मीडिया से घिर bite देते 2, 'आजतक' की heading " मायावती v/s स्वाति" ____बिना इस बात की परवाह किये की जिसके एक आह्वान पर UP ही नहीं देश के दलित सड़क पर उतर आने को आतुर हो , उसी ताकतवर दलित महिला नेत्री के विरूद्ध आक्रमक तेवर में फरार दयाशंकर की पत्नी को उसके समकक्ष दिखाने का पर्यास जिसमे स्वाति सिंह कह रही है की भाजपा के सारे कार्यकर्ता मेरे साथ

.....क्या संदेश है ?........ऐसे ऐसे मायावती के मुकाबले कोई गुमनाम स्वर्ण स्वाति भी भारी है?
https://www.facebook.com/aquil.ahmed.7927/posts/668679363286163




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Lalajee Nirmal
सवर्ण और दलितों का अलगाव  :
देश की सबसे ताकतवर महिला दलित सुप्रीमो बहन जी पर आज बड़ा सामंती हमला हुआ |उनके विरूद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 504 ,506 ,509 ,153ए और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कराया गया है |नसीमुद्दीन सिद्दीकी,राम अचल राजभर और मेवालाल गौतम सहित अज्ञात लोगों को भी इसमें आरोपी बनाया गया है |इसी के साथ उत्तर प्रदेश की राजनीती में सवर्ण और दलितों का अलगाव और अपने अपने खेमे में जुड़ाव साफ़ नजर आने लगा है | सोसल मिडिया में तो यह अलगाव शीशे की तरह साफ़ नजर आ रहा है | स्वाभाविक मित्रों को छोड़ कर वैचारिक विरोधियों के साथ दोस्ती और जातीय प्रबंधन निष्फल दिखने लगा है |बड़ी मजबूती के साथ फिर कह रहा हूँ भारत के सामंती कोढ़ की शल्य चिकित्सा केवल और केवल बहुजन अवधारणा से ही संभव है |

https://www.facebook.com/lalajee.nirmal/posts/1122617821131866

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उपरोक्त टिप्पणियों से साफ नज़र आता है कि, दलितों - सवर्णों का यह अलगाव 'नास्तिकता'- एथीज़्म का दावा करने वाले साम्यवादी दल  के भीतर भी उतना ही मजबूत है जितना सोशल मीडिया और समाज में क्योंकि ये दल भी ब्राह्मण वादियों के ही नियंत्रण में हैं। बस फर्क सिर्फ इतना है कि, इन दलों में दलितों का समर्थन करने वाले मुखर लोग खुद दलित नहीं हैं बल्कि गैर ब्राह्मण और गैर प्रभावशाली कामरेड्स हैं । ब्राह्मण वादी /कार्पोरेटी/मोदीईस्ट कामरेड्स प्रभावशाली और दलित विरोधी मानसिकता के हैं जिनके लिए मार्क्स वाद सिर्फ सत्ता नियंत्रण का मंत्र भर है और वे अपनी कारगुजारियों से मार्क्स वाद को जनता से दूर रखने में निरंतर सफल रहे हैं । इसी लिए 1964 में टूट कर CPM का गठन किया गया था। यू पी में पिछले बाईस वर्षों में दो बार पार्टी विभाजन भी ब्राह्मण वाद और ब्राह्मणों के वर्चस्व का  ही परिणाम था। CPM से टूटे नकसल पंथी गुटों ने कार्पोरेटी शक्तियों को मजदूरों - किसानों का दमन करने का स्वर्णिम अवसर प्रदान कर दिया है। आज का जातीय विभाजन और टकराव और कुछ नहीं सिर्फ शोषणवादी शक्तियों को ही मजबूत करेगा जो कि, सत्तारूढ़ सरकारों की गहरी कूटनीतिक चाल है। इसकी पुष्टि  BBC के इस वीडियो से भी होती है 
( विजय राजबली माथुर )

Wednesday, 20 July 2016

इंटेलिजेंस ब्यूरो के तौर तरीके हैं कश्मीर अशांति के पीछे ------ विभूति नारायण राय,Retd IPS

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    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Friday, 15 July 2016

भारत-भू 'तृतीय विश्वयुद्ध' का अखाड़ा भी बन सकती है ------ विजय राजबली माथुर

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बेहद अफसोसनाक है कि, कश्मीर के राजनेता होकर भी उपरोक्त लेख में अनुच्छेद 370 के महत्व को विद्वान लेखक नहीं जानते हैं और उसे हटाने की पैरवी कर रहे हैं। मई से अगस्त तक ढाई माह 1981 में मुझे भी श्रीनगर व करगिल में रहने का अवसर मिला है। कर्गिल से पहले 'द्रास' क्षेत्र में है जोजीला दर्रा और इसी में ज़मीन के नीचे 'प्लेटिनम' का प्रचुर भंडार छिपा पड़ा है। इसी जगह अक्सर बर्फबारी के कारण रास्ता जाम में वाहनों को फंसना पड़ता है। हमारा ट्रक भी यहीं फंस गया था। यदि यहाँ सुरंग बना दी जाये तो श्रीनगर से कर्गिल तक छह घंटों के समय में पहुंचा जा सकता है और लेह जाने वालों को करगिल में रात्रि विश्राम भी न करना पड़े। परंतु जैसा मैंने एक ब्लाग-पोस्ट में दिया है सच्चाई वहीं ज्ञात हुई है तब उक्त लेख के राजनेता लेखक कैसे अनभिज्ञ रहे ताज्जुब की बात है : 
"तमाम राजनीतिक विरोध के बावजूद इंदिरा जी की इस बात के लिए तो प्रशंसा करनी ही पड़ेगी कि उन्होंने अपार राष्ट्र-भक्ति के कारण कनाडाई,जर्मन या किसी भी विदेशी कं. को वह मलवा देने से इनकार कर दिया क्योंकि उसमें 'प्लेटिनम'की प्रचुरता है.सभी जानते हैं कि प्लेटिनम स्वर्ण से भी मंहगी धातु है और इसका प्रयोग यूरेनियम निर्माण में भी होता है.कश्मीर के केसर से ज्यादा मूल्यवान है यह प्लेटिनम.सम्पूर्ण द्रास क्षेत्र प्लेटिनम का अपार भण्डार है.अगर संविधान में सरदार पटेल और रफ़ी अहमद किदवई ने अनुच्छेद  '३७०' न रखवाया  होता  तो कब का यह प्लेटिनम विदेशियों के हाथ पड़ चुका होता क्योंकि लालच आदि के वशीभूत होकर लोग भूमि बेच डालते और हमारे देश को अपार क्षति पहुंचाते.अनुच्छेद ३७० को हटाने का आन्दोलन चलाने वाले भी छः वर्ष सत्ता में रह लिए परन्तु इतना बड़ा देश-द्रोह करने का साहस नहीं कर सके,क्योंकि उनके समर्थक दल सरकार गिरा देते,फिर नेशनल कान्फरेन्स भी उनके साथ थी जिसके नेता शेख अब्दुल्ला साहब ने ही तो महाराजा हरी सिंह के खड़यंत्र  का भंडाफोड़ करके कश्मीर को भारत में मिलाने पर मजबूर किया था .तो समझिये जनाब कि अनुच्छेद  ३७० है 'भारतीय एकता व अक्षुणता' को बनाये रखने की गारंटी और इसे हटाने की मांग है-साम्राज्यवादियों की गहरी साजिश.और यही वजह है कश्मीर समस्या की .साम्राज्यवादी शक्तियां नहीं चाहतीं कि भारत अपने इस खनिज भण्डार का खुद प्रयोग कर सके इसी लिए पाकिस्तान के माध्यम से विवाद खड़ा कराया गया है.इसी लिए इसी क्षेत्र में चीन की भी दिलचस्पी है.इसी लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद की रक्षा हेतु गठित आर.एस.एस.उनके स्वर को मुखरित करने हेतु 'अनुच्छेद  ३७०' हटाने का राग अलापता रहता है.इस राग को साम्प्रदायिक रंगत में पेश किया जाता है.साम्प्रदायिकता साम्राज्यवाद की ही सहोदरी है.यह हमारे देश की जनता का परम -पुनीत कर्तव्य है कि, वह सरकार की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखे कि वह यू एस ए के मंसूबे न पूरे कर दे। 
अनुच्छेद 370 को समाप्त कराने की मांग उठाते रहे लोग जब सत्ता में मजबूती से आ गए हैं तब बिना पाकिस्तान के अस्तित्व के ही 'जोजीला'दर्रे में स्थित 'प्लेटिनम' जो 'यूरेनियम' के उत्पादन में सहायक है यू एस ए को देर सबेर हासिल होता दीख रहा है । अड़ंगा चीन व रूस की तरफ से हो सकता है और उस स्थिति में भारत-भू 'तृतीय विश्वयुद्ध' का अखाड़ा भी बन सकती है। देश और देश कि जनता का कितना नुकसान तब होगा उसका आंकलन वर्तमान सरकार नहीं कर सकती है तो क्या विपक्ष भी नहीं करेगा ?"
http://krantiswar.blogspot.in/2016/07/blog-post.html


(विजय राजबली माथुर )



***  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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Tuesday, 12 July 2016

अफ्रीकी देशों से भारत की दाल खरीदी देश के किसानों को जड़ से उखाड़ देगी ------ देविन्दर शर्मा/पवन करन

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http://epaper.bhaskar.com/detail/?id=1035292&boxid=7121591125&ch=mpcg&map=map&currentTab=tabs-1&pagedate=07%2F12%2F2016&editioncode=135&pageno=8&view=image
Pawan Karan
यदि भारत नियमित रूप से दालों के उत्पादन के लिये मोजाम्बिक में किसानों का नेटवर्क तैयार कर सकता है तो किसानों का ऐसा नेटवर्क भारत में ही खड़ा क्यों नहीं किया जा सकता। यदि भारत सरकार मोजाम्बिक के किसानों को यह आश्वासन दे सकती है कि वह जो भी उत्पादन करेंंगे वह खरीदेगी तो यह आश्वासन अपने देश के भीतर लगातार आत्महत्याएं कर रहे किसानों को क्यों नहीं दिया जा सकता। अफ्रीकी देशों से भारत की दाल खरीदी देश के किसानों को जड़ से उखाड़ देगी। जब तक सरकार गेहूं—चावल की तर्ज पर दलहन की खरीद नहीं करती तब तक देश के भीतर दलहन का उत्पादन बढ़ने की संभावना नहीं है।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1247460738598672&set=a.196669657011124.50214.100000042739542&type=3




संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Sunday, 10 July 2016

कर्मचारी हित के लिए 'कल्पना सरोज जी ' द्वारा जोखिम उठाना : स्तुत्य एवं अनुकरणीय कार्य

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वाकई बेहद स्तुत्य एवं अनुकरणीय कार्य किया कल्पना सरोज जी ने जो कर्ज में डूबी कंपनी के कर्मचारियों के अनुरोध पर उस कंपनी को अपना लिया और उनका रोजगार बचा लिया। वरना आजकल तो मजदूर नेता भी मालिक से बिक कर मजदूरों/कर्मचारियों का ख्याल नहीं रखते हैं जिस कारण मजदूर आंदोलन रसातल को चला गया है। उनको पद्म श्री से सम्मानित करना तत्कालीन सरकार व राष्ट्रपति का सराहनीय कदम है। 




 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Saturday, 9 July 2016

नामवरजी मोदी के खेमे में चले गए ॽ जगदीश्वर चतुर्वेदी

Jagadishwar Chaturvedi
नामवर सिंह के भावी जन्मदिन पर उठे सवाल :
नामवर सिंह आज जिस जगह हैं उसमें आरएसएस-भाजपा और मोदी सरकार की कोई भूमिका नहीं है।वे अच्ची तरह जानते हैं उनके व्यक्तित्व और ऊँचे कद के निर्माण में मजदूरों-किसानों की विचारधारा, मार्क्सवाद,प्रगतिशील आंदोलन और देश की उदारतावादी परंपराओं की निर्णायक भूमिका रही है।जैसा कि मीडिया में खबर है कि 28जुलाई2016को नामवरजी के लिए एक कार्यक्रम इन्दिरा गांधी कला संग्रहालय करने जा रहा है।सवाल यह है इस समय केन्द्र सरकार के नियंत्रण वाले सभी संस्थानों में आरएसएस के लोग खुलकर हमले कर रहे हैं,जेएनयू भी उनमें शामिल है।लेकिन आश्चर्य की बात है नामवरजी जैसा प्रखर आलोचक चुप है और उलटे आरएसएस की मुहिम का हिस्सा बन रहा है।हम जानना चाहते हैं प्रगतिशील आंदोलन और देश की उदारतावादी बुर्जुआ राजनीति ने नामवरजी को क्या नहीं दिया,किस चीज का अभाव उनको दिखा जिसके कारण वे मोदी के खेमे में चले गए ॽ नामवरजी को कम से कम यह तो बताना ही होगा कि उनको सी कौन सी चीज पीएम मोदी और आरएसएस में नजर आई जिसके कारण वे उनके खेमे में चले गए ॽ
नामवरजी अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी साम्प्रदायिकता और आरएसएस के खिलाफ घोषित नीतिगत समझ रही है,क्या वे अपनी पुरानी समझ को अस्वीकार कर रहे हैं ॽ यदि हां तो उनको खुलकर कहना चाहिए,लिखकर कहना चाहिए कि वे अंततःआरएसएस की शरण में क्यों जा रहे हैं ॽ यदि सत्ता संरक्षण का ही मोह है,तिरंगे झेंडे में लिपटकर मरने का ही मोह है तो वही कहें और बताएं कि उनके जैसे नास्तिक व्यक्ति को यह मोह क्यों है ॽ हम नामवरजी के 90वें जन्मदिन पर कुछ सवालों पर उनकी राय जानना चाहते हैं।सवाल इस प्रकार हैं-
1. मोदी सरकार की किस नीति को वे जनहित में सही मानते हैं ॽ 
2. मोदी सरकार ने जेएनयू पर नियोजित ढ़ंग से हमला किया है,सभी अकादमिक नियमों और जेएनय़ू की परंपराओं को तिलांजलि देते हुए जिस तरह छात्रसंघ पर हमला किया,जेएनयूछात्रसंघ के नेताओं पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाया,क्या उन सब पर क्या राय है।
3. विगत दो सालों में आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों ने केन्द्र सरकार की मदद से देश के विभिन्न इलाकों में मुसलमान विरोधी मुहिम चलायी हुई है उस पर क्या कहना है ॽ 
4. यूजीसी के बजट में बड़ी मात्रा में कटौती की गयी है ,क्या उसे सही मानते हैंॽ 
5. मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति का मसौदा जारी किया है उससे कहां तक सहमत हैं ॽ 
6. यदि इस समय कांग्रेस की सरकार होती तो क्या वैसी अवस्था में आप आरएसएस की गोदी में बैठना पसंद करते ॽआरएसएस का संरक्षण लेना पसंद करते ॽ
https://www.facebook.com/jagadishwar9/posts/1319135871448450
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Janhit Group 09-07-16 

Friday, 1 July 2016

मैंने भी सपने देखे थे ------ डॉ आलोक भारती

आलोक भारती
01-जुलाई 2016  ·
जिस घटना ने मेरी जिंदगी बदल दी उसको आप सब से शेयर करने का मुबारक दिन आज से बेहतर कौन सा हो सकता था।
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पास आउट होने के बाद मैंने भी सपने देखे थे कि एक सुंदर सी भव्य क्लीनिक होगी एक रिसेप्शनिस्ट और एक नर्स होगी जो मेरे मरीजो को बारी बारी से चेंबर में भेजेगी व मरीजो को इंजेक्शन लगाएगी।SBI में एकाउंट होगा जिसकी पासबुक में छह अंको की संख्या हमेशा अंकित रहेगी।पर यथार्थ इतना खुरदुरा होगा यह सपने में भी ना सोचा था।
इंटर्नशिप के बाद क्लीनिक खोल ली थी।एक दिन की ओ पी डी 100 पेशेंट्स से कम की ना थी ।मैं भी खुश था कि सपने पूरे होने में ज्यादा समय नहीं लगने बाला है।उस दिन भरी तपती जेठ की दोपहरी थी।दूर गांव से एक विधवा वृद्धा अपनी अठारह बीस साल की बेटी को ले कर आई जिसे फूड पाइजनिंग थी।गांव से दवा भी ली थी पर उल्टी दस्त बंद नहीं हुए।मैंने देख कर कहा इसको ड्रिप लगेगी तब सही होगी।जैसा कि हर गरीब मरीज पूछता है उसने भी पूछा डाक्साब कितना खर्चा हो जाएगा?मैंने कुछ सोच कर बताया तीन सेलाइन बाटल तो लगेंगी तो ₹ छह सौ का बिल बनेगा ही।यह बात आज से तीस साल पहले की है जब मैं स्कूटर में एक लीटर पेट्रोल पांच रुपए में पडवाता था। वह बोली ठीक है आप इलाज शुरु कीजिए मैं रुपए ले कर आती हूं।इतना कह कर वह चली गई मैंने भी उस लड़की को ड्रिप लगा दी।उसको गए आधा घंटा हुआ एक घंटा हुआ फिर डेढ घंटा हो गया पर वह लौट कर नहीं आई।मैं भी परेशान हो गया उस लड़की को बार बार ड्रिप निकाल टायलेट ले जाते हुए।दो बाटल लग चुकी थी तीसरी लगाने जा रहा था कि उस वृद्धा को कुछ बर्तन लिए रिक्शे पर बाजार की ओर जाते देखा।मन में बहुत कोफ्त हुई कि बीमार लड़की को छोड़ यह कहां मटरगश्ती कर रही है।
अब उस लड़की में भी सुधार था काफी देर से टायलेट नहीं गई थी ।तीसरी ड्रिप भी खत्म होने बाली थी तभी वह वृद्धा क्लीनिक के अंदर आई अपनी बेटी के सर पर हाथ फेरा और हाल पूछा।संतुष्ट हो कर मेरे पास आई और सौ सौ के छह नोट मेरे हाथ पर रख दिए।मैं तो भरा बैठा था बरस पड़ा उसपर
ऐसे कोई मरीज को अकेला छोड़ कर जाता है?
मुझे और भी मरीजो को अटेंड करना होता है उसे बार बार टायलेट ले जाना पड़ा और तुम रिक्शे में घूमने चल दीं।
छह सौ रुपए में तुमने मुझे खरीद तो नहीं लिया जो तुम्हारे मरीज को उठाऊं बैठाऊं भी मैं।
वह रुआंसी हो कर बोली मैं तो पैसे लेने गई थी।
इतना टाइम लगता है पैसे लाने में?
घर में तो पैसे थे नहीं उधार भी गांव भर में किसी से नहीं मिले तो उसकी शादी के लिए कुछ बर्तन खरीद रखे थे उनको बेच कर आपकी फीस चुकाई है।
अब स्तब्ध,निशब्द,किंकर्तव्यविमूढ़ जो भी कह लीजिए होने की बारी मेरी थी।
कुछ ही पल में मैंने निर्णय ले लिया।उसको स्कूटर पर बैठाया और उस बर्तन की दुकान पर पहुंच गया।पैसे दे कर उसको वर्तन वापस दिलवाए।
अब मुझे समझ आ गया था कि मेरे सपने दूसरों की कराहों पर बुने गए हैं।
बस तब से ना रिसेप्शन बन पाया ना रिसेप्शनिस्ट अपाइंट हुई ना नर्स और ना ही चैंबर बन सका भव्य।क्योंकि अब वह क्लीनिक ना बन एक दरबार बन चुका था फकीर का जहां अब पैसों से इलाज नहीं होता है।
कबिरा खड़ा बाजार में
लिए लकुटिया हाथ,
जो घर फूके आपना
चले हमारे साथ।।

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