Monday, 12 October 2015

विभ्रम के दौर में विवेक वांछित है --- विजय राजबली माथुर

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'सूर्या' की पूर्व संपादक के पुत्र के नाम से छपा यह लेख RSS की किसी चाल का हिस्सा भी हो सकता है कि असंतुष्टों को वरुण के पक्ष मे लामबंद करके उनके प्रतिरोध की वास्तविक 'धार' को 'कुंद' कर दिया जाये। 
या यह भी हो सकता है कि वरुण और उनकी माता को अब भाजपा में वांछित लक्ष्य प्राप्त होने की संभावना न दीख रही हो और वे भविष्य के लिए उससे अलगाव की भूमिका बना रहे हों। यदि ये वास्तव में उनके विचार परिवर्तन का संकेत हो तो वे सोनिया कांग्रेस में प्रविष्ट होकर जनता को आकृष्ट करने में सफल भी हो सकते हैं। किन्तु यह नहीं भूलना चाहिए कि 'तुर्कमान गेट कांड' व 'आपात काल' वरुण के पिता की दिमागी उपज थे।



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जिस समाचार-पत्र के संस्थापक संपादक महात्मा गांधी रहे हों जिनहोने ;सविनय अवज्ञा आंदोलन' का सूत्रपात किया था उसी पत्र का समपादकीय अब 'चारण विरुदावली' गा रहा है तो स्पष्ट है कि, 'विकास' का दावा करने वाले 'चारित्रिक पतन' को प्राप्त हो चुके हैं।
सत्ता पर फर्क पड़े न पड़े परंतु 'विरोध' तो दर्ज हो ही रहा है।


 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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