Thursday, 29 October 2015

बीजेपी दलित, पिछड़ा आरक्षण के विरोध का नेतृत्व करती रही है --- प्रीतमजी



Pritam Jee
29-10-2015  Edited ·
नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के इस चुनावी पिछड़ा प्रेम को समझने के लिए गुजरात के बारे में समझ लेना आवश्यक होगा. गुजरात में जब दलित आरक्षण लागू किया गया था तो उस वक़्त ब्राह्मण, पाटीदार और बनिया वर्ग का ज़बरदस्त विरोध सामने आया जिसने बाद में 1981 में दलित विरोधी आंदोलन का रूप लिया और बीजेपी ने इस दलित विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व किया था.
इस दलित विरोधी आन्दोलन ने दंगों की शक्ल अख्तियार की और गुजरात के 19 में से 18 जिलों में दलितों को निशाना बनाया गया. इन दंगों में मुस्लिमों ने दलितों को आश्रय दिया और उनकी मदद भी की. वास्तव में दलित, पिछड़ा और आदिवासी गुजरात की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या बनाते हैं.
इसी को अपने साथ मिलाकर 1980 में कांग्रेस ने सत्ता प्राप्त की थी. यह गठजोड़ जिसे अंग्रेजी के खाम यानी क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम कहा जाता है, ने पहली बार ब्राह्मण और पाटीदारों को सत्ता के केंद्र से दूर कर दिया.
हालांकि इसके ठीक बाद बीजेपी ने 1980 में अपने कट्टर हिन्दुत्ववादी एजेंडे पर काम करना शुरू किया और आडवानी की रथ यात्रा ने उस प्रक्रिया को तेज़ किया, जिसमें सवर्ण और उच्च जाति के लोगों ने सत्ता से दूर होने के आधार पर एकजुट होकर आरक्षण विरोधी आन्दोलन को चलाया. साथ ही इसने गुजरात के भगवाकरण के लिए भी परिस्थितियां पैदा की.
1980 में कांग्रेस की जीत के बाद बीजेपी ने दलित विरोधी रणनीति में परिवर्तन कर इसे सांप्रदायिक रंग दिया और अब निचली जाति के दलित, आदिवासी समूह को मुस्लिमों के विरुद्ध खड़ा किया. इसी कारण 1981 में आरक्षण विरोधी आन्दोलन ने 1985 में सांप्रदायिक हिंसा का रूप धारण कर लिया और इसे आडवानी ने अपनी रथयात्रा से और भी उन्मादी और हिंसक बनाया. 1990 में जब आडवानी रथ यात्रा के ज़रिए देश में जहर घोल रहे थे, उस वक़्त गुजरात में उनके सिपहसलार नरेन्द्र मोदी थे जो गुजरात बीजेपी महासचिव थे.
बीजेपी न केवल दलित, पिछड़ा आरक्षण के विरोध का नेतृत्व करती रही है, बल्कि सत्ता में आने के बाद नरेन्द्र मोदी की सरकार ने गुजरात में इस आरक्षण के लाभ को भी सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग से रोका है. ‪#‎आरक्षण‬
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 संकलन-विजय माथुर

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