Monday, 12 October 2015

नवरात्र नौ औषद्धियों द्वारा स्वास्थ्य रक्षा का पर्व --- विजय राजबली माथुर

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कल से शुरू होने वाले नवरात्र में इन नौ औषद्धियों के प्रयोग से शरीर को नीरोग रखने का प्राविधान  था किन्तु 'विकास' के इस पूंजीवादी युग में 'पूंजी' की 'पूजा' होने लगी है। इन नौ दिनों में कान-फोडू भोंपू बजा कर ध्वनि प्रदूषण फैलाया जाएगा। लोगों को गुमराह करके व्यापारी वर्ग के हित साधे जाएँगे। पुजारी वर्ग जो ब्राह्मण जाति से आता है इन व्यापारियों का महिमा-मंडन करेगा। 'ढ़ोंगी' व 'एथीस्ट ' मिल कर इस पोंगा पंथ को 'धर्म ' की संज्ञा से नवाजेंगे । जनता उल्टे उस्तरे से मूढ़ी जाएगी उसका शोषण जारी रहेगा। कोई 'सत्य ' बोलना नहीं चाहता बल्कि सत्य कहने वाले का उपहास ज़रूर उड़ाते हैं खास तौर पर ढ़ोंगी व एथीस्ट।

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वस्तुतः ऋतु परिवर्तन के समय प्राचीन मनीषियों ने चार नवरात्र का प्राविधान किया था जिनमें से दो को ब्राह्मणों ने अपने लिए 'गुप्त' रूप से मनाने के लिए  सुरक्षित कर लिया था। शेष जनता के लिए  ग्रीष्म व शरद काल  के नवरात्र सार्वजनिक रूप से बताए गए थे। कल दिनांक 13 अक्तूबर से प्रारम्भ ये शरद कालीन नवरात्र हैं। ढ़ोंगी-पाखंडी पद्धति से ये मनाए जा रहे हैं। जगह-जगह रास्ता रोक कर 'देवी जागरण' के नाम पर जनता को ठगा जा रहा है। कुंवारी कन्याओं के पूजने का आडंबर किया जाता है परंतु समाज में उनकी स्थिति इस ढ़ोंगी पूजा की पोल खोल देती है। 

क्या होना चाहिए :

वास्तव में हवन-यज्ञ पद्धति ही पूजा की सही पद्धति है। क्यों? क्योंकि 'पदार्थ- विज्ञान ' (MATERIAL SCIENCE ) के अनुसार  हवन की आहुती  में डाले गए   पदार्थ अग्नि द्वारा  परमाणुओं  (ATOMS ) में विभक्त कर दिये जाते हैं। वायु  इन परमाणुओं को प्रसारित  कर देती है। 50 प्रतिशत परमाणु यज्ञ- हवन कर्ताओं को अपनी नासिका द्वारा शरीर के रक्त में प्राप्त हो जाते हैं। 50 प्रतिशत परमाणु वायु द्वारा बाहर प्रसारित कर दिये जाते हैं जो सार्वजनिक रूप से जन-कल्याण का कार्य करते हैं। हवन सामग्री की जड़ी-बूटियाँ औषद्धीय रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य रक्षा का कार्य सम्पन्न करती हैं। यह   हवन 'धूम्र चिकित्सा' का कार्य करता है। अतः ढोंग-पाखंड-आडंबर-पुरोहितवाद छोड़ कर अपनी प्राचीन हवन पद्धति को अपना कर नवरात्र मनाए जाएँ तो व्यक्ति, परिवार, समाज, देश व दुनिया का कल्याण संभव है। काश जनता को जागरूक किया जा सके !

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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