"अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।"
(मैथिलीशरण गुप्त )
कामरेड अतुल अनजान लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और AISF के भी पूर्व अध्यक्ष तो हैं ही। वर्तमान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 'राष्ट्रीय सचिव' तथा AIKS-अखिल भारतीय किसानसभा के 'राष्ट्रीय महामंत्री हैं'। न केवल अपनी ओजस्वी वाक-शैली वरन जनता के मर्म को समझने वाले एक जन-प्रिय नेता के रूप में भी जाने जाते हैं। http://communistvijai.blogspot.in/2014/11/blog-post_29.html
वह केवल जागरूक राजनीतिज्ञ ही नहीं हैं वरन कोमल हृदय कवि भी हैं। एक साक्षात्कार में उन्होने खुद ही स्पष्ट किया था कि, बचपन में कविता लिखते समय उपनाम - तख्खलुस के रूप में ' अंजान ' नाम के अंत में लगाया था जिसे पत्रकारों ने अतुल कुमार सिंह 'अंजान ' के स्थान पर मात्र अतुल अंजान लिखना शुरू कर दिया और अब यही नाम जन मानस में प्रचलित हो गया है।
किसानों के संघर्ष में भाग लेते लेते उनकी समस्याओं ने उनके हृदय को झिंझोड़ डाला है और बरबस ही उनके मुख से कुछ पद या शेर निकल पड़ते हैं जिनमें उनकी वेदना के गूढ अर्थ छिपे होते हैं। ऐसे ही कुछ चंद शेर प्रस्तुत हैं जिनसे किसान और साधारण जनता के आज के हालात पर प्रकाश पड़ता है।
* जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ करतीं थीं बसेरा ।
वहीं दाल दाल के दाने को तरसे है भाई मेरा । ।
Atulanjan
2016/05/28 09:22
JAHAAN DAAL DAAL PAR SONE KI CHIDIYAAN KARTI THI BASERA. . . . . WAHEEN DAAL DAAL KE DAANE KO TARSE HAI BHAI MERA. .........ATUL KUMAR ANJAAN
दो पंक्ति के इस पद के माध्यम से अंजान साहब ने भारत के प्राचीन इतिहास के संदर्भ से जनता को याद दिलाया है कि, कहाँ तो हमारा देश इतना समृद्ध था कि उसके बारे में कहा गया था कि 'जहां डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ करती हैं बसेरा वह भारत देश है मेरा '। और कहाँ आज क्या स्थिति है? सबसे निखद और गरीबों की मानी जाने वाली अरहर की दाल के दाम रु 200 /- तक पहुँच गए हैं और उसके दाने दाने को सब तरस रहे हैं। दालें भारत में 'प्रोटीन ' का मुख्य आधार हैं और प्रोटीन को 'मांस निर्माता द्रव्य ' FLASH FARMING SUBSTANSE कहा जाता है। दालों के आभाव में साधारण भारतीय जन कुपोषण का शिकार हो रहा है और सरकार 'विकास ' का ढ़ोल पीट रही है। अंजान साहब याद दिला रहे हैं यह देश को कमजोर और खोखला बनाने की साजिश है।
दो पंक्ति के इस पद के माध्यम से अंजान साहब ने भारत के प्राचीन इतिहास के संदर्भ से जनता को याद दिलाया है कि, कहाँ तो हमारा देश इतना समृद्ध था कि उसके बारे में कहा गया था कि 'जहां डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ करती हैं बसेरा वह भारत देश है मेरा '। और कहाँ आज क्या स्थिति है? सबसे निखद और गरीबों की मानी जाने वाली अरहर की दाल के दाम रु 200 /- तक पहुँच गए हैं और उसके दाने दाने को सब तरस रहे हैं। दालें भारत में 'प्रोटीन ' का मुख्य आधार हैं और प्रोटीन को 'मांस निर्माता द्रव्य ' FLASH FARMING SUBSTANSE कहा जाता है। दालों के आभाव में साधारण भारतीय जन कुपोषण का शिकार हो रहा है और सरकार 'विकास ' का ढ़ोल पीट रही है। अंजान साहब याद दिला रहे हैं यह देश को कमजोर और खोखला बनाने की साजिश है।
**Atulanjan
2016/05/28 09:34
फ़लक ज़मीन को नया आफताब देता है ।
तो उसके साथ कई इंकलाब देता है।।
तपिश ज़मीन को आफताब देता है ।
वह शोला बदले में हम को गुलाब देता है।।
ये पेड़ अहले सियासत का है लगाया हुआ।
ये नफ़रतों का समर बे हेसाब देता है। ।
JARA GAUR KIJIYE .......
Falak zamin Ko nayaAftab deta hai. To uske saath kaee inqalab deta hai. tapish zamin KoAftab deta hai.woh shola badle me ham Ko Gulab detahai. Ye ped ahle seyasat ka hai lagaya Hua. Ye nafraton ka Samar behesaab deta hai..... ATUL KUMAR ANJAAN
*** ज़मीन जल चुकी है,आसमान बाकी है ।
वो जो खेतों की मेड़ों पर उदास बैठे हैं।
उनही की आँखों में अब तक ईमान बाकी है।
बादलों अब तो बरस जाओ, सूखी ज़मीन पर ।
किसी का मकान गिरवी है और किसी का लगान बाकी है। ।
Atulanjan
2016/05/28 09:36
Zameen jalchuki hai ,aasman baqi hai .vo jo kheton ki medon par udas baithe hain .unhi, ki aankhon me abtak iman baqihai .badlon ab to baras jao ,sukhi zameenon par .Kisi ka makan girvi hai aur kisi ka Lagan baki hai .......... ATUL KUMAR ANJAAN
****Atulanjan
2016/05/28
09:38
वह
भीड मे हमेशा हँसता रहता है ।
वह दिल की बात औरोँ से नहीँ कहता है। ।
अगर मिले तो मेरा सलाम कह देना।
वह मुस्कान हथेलियोँ मेँ छिपा लेना । । ........... ATUL KUMAR ANJAAN
बिलकुल साफ है कि, दिल की गहराइयों से निकली बात कितनी सटीक तथा सामयिक है अंजान साहब का कवि हृदय जानता है कि, खेतों की मेड़ों पर उदास बैठा किसान ही आज 'ईमान ' का प्रतीक है बाकी इस बाजारवाद में यत्र-तत्र -सर्वत्र छल - छद्यम का बोलबाला है। ऐसे में शोले के बदले 'गुलाब' देने वाले हाथों के इंकलाबी बनने का इंतज़ार करते हुये शासक वर्ग प्रतीत होता है।
अंजान साहब साधारण इंसान की मुस्कराहट को छिपा लेने और उसको 'सलाम' पहुंचाने की बात कह कर जन पर अपना भरोसा जतलाते हैं। उनकी प्रेरणा से उत्तर प्रदेश में अभी विगत 20 मई को किसान जागरण यात्रा सम्पन्न हुई है और प्रदेश सरकार द्वारा किसानों के हितार्थ आश्वासन भी दिये गए हैं , हम कामना करते हैं कि, अंजान साहब और उनके साथियों की मेहनत ज़रूर रंग लाएगी।
(विजय राजबली माथुर )
वह दिल की बात औरोँ से नहीँ कहता है। ।
अगर मिले तो मेरा सलाम कह देना।
वह मुस्कान हथेलियोँ मेँ छिपा लेना । । ........... ATUL KUMAR ANJAAN
बिलकुल साफ है कि, दिल की गहराइयों से निकली बात कितनी सटीक तथा सामयिक है अंजान साहब का कवि हृदय जानता है कि, खेतों की मेड़ों पर उदास बैठा किसान ही आज 'ईमान ' का प्रतीक है बाकी इस बाजारवाद में यत्र-तत्र -सर्वत्र छल - छद्यम का बोलबाला है। ऐसे में शोले के बदले 'गुलाब' देने वाले हाथों के इंकलाबी बनने का इंतज़ार करते हुये शासक वर्ग प्रतीत होता है।
अंजान साहब साधारण इंसान की मुस्कराहट को छिपा लेने और उसको 'सलाम' पहुंचाने की बात कह कर जन पर अपना भरोसा जतलाते हैं। उनकी प्रेरणा से उत्तर प्रदेश में अभी विगत 20 मई को किसान जागरण यात्रा सम्पन्न हुई है और प्रदेश सरकार द्वारा किसानों के हितार्थ आश्वासन भी दिये गए हैं , हम कामना करते हैं कि, अंजान साहब और उनके साथियों की मेहनत ज़रूर रंग लाएगी।
(विजय राजबली माथुर )