Thursday, 30 November 2017

क्या सिर्फ कोई पुरुष ही महाभिनिष्क्रमण कर सकता है,कोई लड़की नहीं,कोई स्त्री नहीं ? ------ सुजाता

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द  वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ  वरदराजन  का दृष्टिकोण है कि , अखिला उर्फ हादिया के निजी मामले में न्यायालयों  का हस्तक्षेप हाल ही में दिये गए सर्वोच्च न्यायालय के निजता के अधिकार संबंधी निर्णय का उल्लंघन करता है : 





  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Tuesday, 28 November 2017

पीड़ित परिवार की आवाज पर पर्दा डालने में जुट गए ------ नवनीत मिश्र , इंडिया संवाद

चूंकि फडणवीस इंडियन एक्सप्रेस के कार्यक्रम में शरीक होने आए, इस नाते उन्हें खुश करने के लिए इंडियन एक्सप्रेस ने जज मौत पर क्लीनचिट वाला खुलासा किया। चूंकि जज की मौत नागपुर के गेस्ट हाउस में हुई थी। अगर मौत का मामला संदिग्ध है तो महाराष्ट्र सरकार भी इस केस में घिरती नजर आ रही थी। ऐसे में देखा जाए तो इंडियन एक्सप्रेस ने इस प्लांटेड खबर के जरिए खुद जज बनकर फडणवीस और उनके बॉस यानी अमित शाह को क्लीन चिट देने की कोशिश की।...........दि कारवां मैग्जीन की स्टोरी तब खारिज होती जब जज के पिता, बहन, भांजी में से कोई यह स्पष्टीकरण देता कि मौत सामान्य है। इंडियन एक्सप्रेस भूल गया कि पीड़ित परिवार न्याय मांग रहा है। परिवार तो सिर्फ न्यायिक जांच की मांग कर रहा है। संविधान ने हर पीड़ित को यह अधिकार दिया है कि वह जांच की मांग करे। न्यायिक जांच से पहले ही सरकार का जवाब लेकर इंडियन एक्सप्रेस उस दिन आया, जिसन दिन उसके कार्यक्रम में फडणवीस मुख्य अतिथि रहे।


 
Rani Rajesh
इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर दो खबरें ध्यान खींचती हैं। एक तरफ जज लोया की संदिग्ध मौत पर उठते सवालों पर पर्दा डालने वाली खबर है, दूसरी तरफ मुस्कुराते फडणवीस की तस्वीर वाली फोटो है। क्या इन दो खबरों में कोई कनेक्शन है। क्या फडणवीस को खुश करने के लिए सबसे दिलेर अखबार ने अपनी साख की भी ऐसी-तैसी कर ली। ऐसे कई सवाल सोमवार को खबरी बिरादरी में चर्चा-ए-खास रहे।

जो संदेह के घेरे में है, जिन जजों की भूमिका संदिग्ध है। जिन पर सवाल उठ रहे हैं। उन्हीं से बातकर छाप दी पूरी कहानी जो पीड़ित परिवार है, उससे इंडियन एक्सप्रेस ने बात करने की जरूरत ही नहीं समझी। जज लोया की संदिग्ध मौत के मामले में उठ रहे जिन सवालों का जवाब महाराष्ट्र सरकार को देना चाहिए, संदेह के घेरे में आए लोगों को देना चाहिए, उन सवालों का आधा-अधूरा जवाब लेकर किस हड़बड़ी में इंडियन एक्सप्रेस सामने आया। यह समझ से परे है। पूरी स्टोरी पढ़िए तो दिखेगा कि दि कारवां ने अपनी स्टोरी में जो सवाल उठाए हैं, उसका जवाब देने की इंडियन एक्सप्रेस कोशिश कर रहा है। मगर आधी-अधूरी और गलत तरीके से।
जो साथी जज खुद संदेह के घेरे में हैं, उनके और उनके साथियों जुबानी छाप दी पूरी कहानी। ईसीजी की रिपोर्ट छापी, वो भी जज की मौत से एक दिन पहले की। एक दिसंबर को पांच बजे सुबह जज लोया हास्पिटल में भर्ती होते हैं, इंडियन एक्सप्रेस ईसीजी की जो रिपोर्ट छापकर दावा करता है कि जज का इसीजी न होने का दावा झूठा है, वह रिपोर्ट एक दिन पहले 30 नवंबर की है। यानी जज के भर्ती होने से पहले ही ईसीजी हास्पिटल में तैयार हो गई थी। कमाल है साहब। इस मामले में जब इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट पर सवाल उठने लगे तो अखबार ने डैमेज कंट्रोल के लिए खबर अपडेट की। जिसमें हास्पिटल की ओर से सफाई पेश करते हुए लिखा गया है कि 30 नवंबर की तिथि गलती से अंकित हो गई थी। चूंकि मामला हाईप्रोफाइल है तो ऐसी गलतियां आसानी से कोई क्यों स्वीकार कर लेगा।
इंडियन एक्सप्रेस की एनकाउंटर रिपोर्ट ने जज की मौत का रहस्य और गहरा कर दिया। इस रिपोर्ट पर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। लोग चौंक रहे हैं कि जो संपादक राजकमल पिछले साल मौदी की मौजूदगी में जर्नलिज्म ऑफ करेज का पाठ पढ़ा रहे थे, उन्हीं के संपादन में इंडियन एक्सप्रेस जैसा अखबार सरकार बहादुर की सेवा में तनकर खड़ा हो गया।
इंडियन एक्सप्रेस के सोमवार के अंक हाथ में लीजिए। पहले पन्ने पर नजर डालिए। दो खबरें प्रमुखता के साथ लगी मिलेंगी। सेकंड लीड के तौर पर जज लोया की संदिग्ध मौत को झुठलाने वाली खबर प्रकाशित है। जिसमें अंग्रेजी मैग्जीन द कारवां की रिपोर्ट में उल्लिखित पीड़ित परिवार के तमाम दावे को नकारा गया है। बीच में एक अन्य खबर लगी है। यह इंडियन एक्सप्रेस समूह के कार्यक्रम की खबर है। जिसमें एक तस्वीर छपी है। इस तस्वीर में देवेंद्र फडणवीस मुंबई के 26-11 हमले की बरसी पर पीड़ित परिवारों के बीच मौजूद हैं। जिस दिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इंडियन एक्सप्रेस के इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनते हैं, उसी दिन यह खबर प्लांट होती है। कोई भी खबर पढ़कर यह बता देगा इसमें संदेह के घेरे में खड़े सभी लोगों को क्लीनचिट देने की कोशिश हुई है।
एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं- चूंकि फडणवीस इंडियन एक्सप्रेस के कार्यक्रम में शरीक होने आए, इस नाते उन्हें खुश करने के लिए इंडियन एक्सप्रेस ने जज मौत पर क्लीनचिट वाला खुलासा किया। चूंकि जज की मौत नागपुर के गेस्ट हाउस में हुई थी। अगर मौत का मामला संदिग्ध है तो महाराष्ट्र सरकार भी इस केस में घिरती नजर आ रही थी। ऐसे में देखा जाए तो इंडियन एक्सप्रेस ने इस प्लांटेड खबर के जरिए खुद जज बनकर फडणवीस और उनके बॉस यानी अमित शाह को क्लीन चिट देने की कोशिश की।
वरिष्ठ पत्रकार का मानना है कि दि कारवां मैग्जीन की स्टोरी तब खारिज होती जब जज के पिता, बहन, भांजी में से कोई यह स्पष्टीकरण देता कि मौत सामान्य है। इंडियन एक्सप्रेस भूल गया कि पीड़ित परिवार न्याय मांग रहा है। परिवार तो सिर्फ न्यायिक जांच की मांग कर रहा है। संविधान ने हर पीड़ित को यह अधिकार दिया है कि वह जांच की मांग करे। न्यायिक जांच से पहले ही सरकार का जवाब लेकर इंडियन एक्सप्रेस उस दिन आया, जिसन दिन उसके कार्यक्रम में फडणवीस मुख्य अतिथि रहे। सवाल उठता है कि क्या जर्नलिज्म ऑफ करेज की बात करन वाले संपादक राजकमल झा फडणवीस और उनके बॉस को खुश करने के लिए पीड़ित परिवार की आवाज पर पर्दा डालने में जुट गए।
नवनीत मिश्र
इंडिया संवाद

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Wednesday, 22 November 2017

यदि गुजरात में मोदी - शाह की भाजपा परास्त होती है तो ........... ------ विजय राजबली माथुर







वरिष्ठ पत्रकार गण विनोद दुआ, नीरजा चौधरी, आरफा खानम शेरवानी और जयप्रकाश गुप्त कांग्रेस के संभावित नए अध्यक्ष राहुल गांधी की  संभावनाओं पर जो विचार व्यक्त कर रहे हैं उनमें प्रमुख है उनके नेतृत्व में गुजरात चुनावों में 22 वर्षीय भाजपा शासन को उखाड़ पाने की उनकी क्षमता पर निर्भर करेगा उनका राजनीतिक भविष्य। परंतु कांग्रेस और भाजपा की आज की स्थिति को समझने के लिए इनके अतीत पर प्रकाश डालना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ। 

सन 1857 की क्रान्ति ने अंग्रेजों को बता दिया कि भारत के मुसलमानों और हिंदुओं को लड़ा कर ही ब्रिटिश साम्राज्य को सुरक्षित  रखा जा सकता है। लार्ड डफरिन के आशीर्वाद से 1885 में स्थापित ब्रिटिश साम्राज्य का सेफ़्टी वाल्व कांग्रेस 1875 में स्वामी दयानन्द द्वारा  स्थापित आर्यसमाज के अनुयायियों के कारण  राष्ट्र वादियों  के कब्जे मे जाने लगी थी। बाल गंगाधर 'तिलक'का प्रभाव बढ़ रहा था और लाला लाजपत राय और विपिन चंद्र पाल के सहयोग से वह ब्रिटिश शासकों को लोहे के चने चबवाने लगे थे। अतः 1905 ई मे हिन्दू और मुसलमान के आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया गया । हालांकि बंग-भंग आंदोलन के दबाव मे 1911 ई मे पुनः बंगाल को एक करना पड़ा परंतु इसी दौरान 1906 ई मे ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन को फुसला कर मुस्लिम लीग नामक सांप्रदायिक संगठन की स्थापना करा दी गई और इसी की प्रतिक्रिया स्वरूप 1920 ई मे हिन्दू महा सभा नामक दूसरा सांप्रदायिक संगठन भी सामने आ गया। 1932 ई मे मैक्डोनल्ड एवार्ड के तहत हिंदुओं,मुसलमानों,हरिजन और सिक्खों के लिए प्रथक निर्वाचन की घोषणा की गई। महात्मा गांधी के प्रयास से सिक्ख और हरिजन हिन्दू वर्ग मे ही रहे और 1935 ई मे सम्पन्न चुनावों मे बंगाल,पंजाब आदि कई प्रान्तों मे लीगी सरकारें बनी और व्यापक हिन्दू-मुस्लिम दंगे फैलते चले गए।

1917 ई मे हुयी रूस मे लेनिन की क्रान्ति से प्रेरित होकर भारत के राष्ट्र वादी कांग्रेसियों ने 25 दिसंबर 1925 ई को कानपुर मे 'भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी'की स्थापना करके पूर्ण स्व-राज्य के लिए क्रांतिकारी आंदोलन शुरू कर दिया और सांप्रदायिकता को देश की एकता के लिए घातक बता कर उसका विरोध किया। कम्यूनिस्टों से राष्ट्रवादिता मे पिछड्ता पा कर 1929 मे लाहौर अधिवेन्शन मे जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस का लक्ष्य भी पूर्ण स्वाधीनता घोषित करा दिया। अंग्रेजों ने मुस्लिम लीग,हिन्दू महासभा के सैन्य संगठन आर एस एस (जो कम्यूनिस्टों का मुकाबिला करने के लिए 1925 मे ही अस्तित्व मे आ गया ) और कांग्रेस के नेहरू गुट को प्रोत्साहित किया एवं कम्यूनिस्ट पार्टी को प्रतिबंधित कर दिया । सरदार भगत सिंह जो कम्यूनिस्टों के युवा संगठन 'भारत नौजवान सभा'के संस्थापकों मे थे भारत मे समता पर आधारित एक वर्ग विहीन और शोषण विहीन समाज की स्थापना को लेकर अशफाक़ उल्ला खाँ व राम प्रसाद 'बिस्मिल'सरीखे साथियों के साथ साम्राज्यवादियों से संघर्ष करते हुये शहीद हुये सदैव सांप्रदायिक अलगाव वादियों की भर्तस्ना करते रहे।

1980 मे संघ के सहयोग से सत्तासीन होने के बाद इंदिरा गांधी ने सांप्रदायिकता को बड़ी बेशर्मी से उभाड़ा। 1980 मे ही जरनैल सिंह भिंडरावाला के नेतृत्व मे बब्बर खालसा नामक घोर सांप्रदायिक संगठन खड़ा हुआ जिसे इंदिरा जी का आशीर्वाद पहुंचाने खुद संजय गांधी और ज्ञानी जैल सिंह पहुंचे थे। 1980 मे ही संघ ने नारा दिया-भारत मे रहना होगा तो वंदे मातरम कहना होगा जिसके जवाब मे काश्मीर मे प्रति-सांप्रदायिकता उभरी कि,काश्मीर मे रहना होगा तो अल्लाह -अल्लाह कहना होगा। और तभी से असम मे विदेशियों को निकालने की मांग लेकर हिंसक आंदोलन उभरा।

पंजाब मे खालिस्तान की मांग उठी तो काश्मीर को अलग करने के लिए अनुच्छेद  370 को हटाने की मांग उठी और सारे देश मे एकात्मकता यज्ञ के नाम पर यात्राएं आयोजित करके सांप्रदायिक दंगे भड़काए गए । माँ की गद्दी पर बैठे राजीव गांधी ने अपने शासन की विफलताओं और भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने हेतु संघ की प्रेरणा से अयोध्या मे विवादित रामजन्म भूमि/बाबरी मस्जिद का ताला खुलवा कर हिन्दू सांप्रदायिकता एवं मुस्लिम वृध्दा शाहबानों को न्याय से वंचित करने के लिए संविधान मे संशोधन करके मुस्लिम सांप्रदायिकता को नया बल प्रदान किया।
1991 के  सांप्रदायिक दंगों मे जिस प्रकार सरकारी मशीनरी ने एक सांप्रदायिकता का पक्ष लिया है उससे तभी  संघ की दक्षिण पंथी असैनिक तानाशाही स्थापित होने का भय व्याप्त हो गया था। 1977 के सूचना व प्रसारण मंत्री एल के आडवाणी ने आकाशवाणी व दूर दर्शन मे संघ की कैसी घुसपैठ की है उसका हृदय विदारक उल्लेख सांसद पत्रकार संतोष भारतीय ने वी पी सरकार के पतन के संदर्भ मे किया है। आगरा पूर्वी विधान सभा क्षेत्र मे 1985 के परिणामों मे संघ से संबन्धित क्लर्क कालरा ने किस प्रकार भाजपा प्रत्याशी को जिताया ज़्यादा पुरानी  घटना  नहीं है। 1991 के कांग्रेसी वित्तमंत्री  मनमोहन सिंह ने जिन उदारीकृत आर्थिक नीतियों को लागू किया था उनको न्यूयार्क जाकर एल के आडवाणी ने उनकी नीतियों का चुराया जाना बताया था। पी एम के रूप में अपनाई उनकी नीतियों को ही मोदी सरकार आज भी बढ़ा रही है। 

पुलिस और ज़िला प्रशासन मजदूर के रोजी-रोटी के हक को कुचलने के लिए जिस प्रकार पूंजीपति वर्ग का दास बन गया है उससे संघी तानाशाही आने की ही बू मिलती है।जिस प्रकार सत्तारूढ़ भाजपा के मंत्री और नेता जनता को धमका कर वोट हासिल करना चाहते हैं उससे इस बात की पुष्टि भी होती है। आसन्न गुजरात चुनाव के संदर्भ में अधिकांश लोगों का अभिमत है कि, वहाँ कांग्रेस द्वारा भाजपा को परास्त करना सर्वथा असंभव है ।

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 मेरा अपना सुद्र्ढ़ अभिमत है कि जिस प्रकार 1980 में इन्दिरा कांग्रेस और फिर 1984 में राजीव गांधी की अध्यक्षता वाली कांग्रेस को आर एस एस का पूर्ण समर्थन मिला था भाजपा के स्थान पर कुछ उसी प्रकार से गुजरात चुनावों में राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही कांग्रेस को पुनः आर एस एस का समर्थन मिलने जा रहा है। जिस प्रकार पी एम मोदी ने भाजपा को नियंत्रण में लेने के बाद आर एस एस को नियंत्रित करने का अभियान चला रखा है उससे आर एस एस नेतृत्व उनको कमजोर करने का मार्ग ढूंढ रहा था। यू एस ए के हितार्थ  लागू की गई नोटबंदी फिर गलत तरीके से लागू की गई जी एस टी पर जिस प्रकार आर एस एस व भाजपा नेता मोदी सरकार पर हमलावर हुये हैं और आर एस एस के आनुषंगिक संगठन  भामस द्वारा मोदी सरकार के विरुद्ध दिल्ली में प्रदर्शन किया गया है उससे ऐसे स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। 

यदि गुजरात में मोदी - शाह की भाजपा परास्त होती है तो वह राहुल गांधी के चमत्कार या कांग्रेस के  बढ़ते प्रभाव का दिग्दर्शक न होकर आर एस एस की वह रणनीति होगी जिसके द्वारा वह सत्ता और विपक्ष दोनों को अपने नियंत्रण में लाकर भविष्य के लिए अपना मार्ग निष्कंटक बनाना चाहता है। यदि यह प्रयोग सफल रहा तो मेनका व वरुण गांधी को कांग्रेस में शामिल करवाकर मेनका गांधी को कांग्रेसी पी एम के रूप में  सुनिश्चित करना आर एस एस का लक्ष्य होगा। इस प्रकार देश को आगामी लोकसभा  चुनावों में मोदी से तो मुक्ति मिल जाएगी लेकिन आर एस एस का शिंकजा और मजबूत हो जाएगा।  

Monday, 20 November 2017

जन - विरोधी सरकार के तानाशाही की ओर बढ़ते कदम ------ उर्मिलेश

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  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

मंजुल की रंग शैली नयी और विशिष्ठ है ------ प्रेमानंद गज्वी

दर्शक और कलाकार एक साथ 


  (प्रेमानंद गज्वी, मंजुल भारद्वाज व कलाकारों के साथ  )



थिएटर ऑफ़ रेलेवेंस का मुंबई नाट्योत्सव

अनुपम रहा कई मायनों में 

दर्शक “काल को गढ़ने वाले प्रसिद्ध नाटक “गर्भ” और “अनहद नाद –अनहर्ड साउंड्स ऑफ़ युनिवर्स”  और  “न्याय के भंवर में भंवरी” के  मंचन” से  कला और जीवन के विविध रंगों  से सराबोर हुए “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस" के 25 वर्षीय मुंबई  नाट्योत्सव में !

थिएटर ऑफ़ रेलेवेंस नाट्य दर्शन के सृजन और प्रयोग के 25 वर्ष पूरे हुए. अपने सृजन के समय से ही देश और विदेश, जहां भी इस नाट्य दर्शन की प्रस्तुति हुई, न सिर्फ दर्शकों के बीच अपनी उपादेयता साबित की, बल्कि रंगकर्मियों के बीच भी अपनी विलक्षणता स्थापित की. इन वर्षों में इस नाट्य दर्शन ने न सिर्फ नाट्य कला की प्रासंगिकता को रंगकर्मी की तरह पुनः रेखांकित किया, बल्कि एक्टिविस्ट की तरह जनसरोकारों को भी बार बार संबोधित किया. दर्शकों को झकझोरा और उसकी चेतना को नया सोच और नई दृष्टि दी. इन 25 वर्षों में थिएटर ऑफ़ रेलेवेंस के सृजनकार मंजुल भारद्वाज ने भारत से लेकर यूरोप तक में अपने नाट्य दर्शन के बिरवे बोये, जो अब वृक्ष बनने की प्रक्रिया में हैं. इन 25 वर्षो के सफ़र के माध्यम से मंजुल ने यह भी साबित किया कि बिना किसी सरकारी अनुदान और कॉरपोरेट प्रायोजित आर्थिक सहयोग के बिना भी सिर्फ जन सहयोग से रंगकर्म किया जा सकता है और बिना किसी हस्तक्षेप के पूरी उनमुक्तता के साथ किया जा सकता है. ऐसे में 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक उत्सव तो बनता ही था. सो 15, 16, 17 नवम्बर, 2017 श्री शिवाजी नाट्य मंदिर ,मुंबई में तीन दिवसीय नाट्य उत्सव का आयोजन किया गया.

उत्सव की शुरुआत 15 नवम्बर “गर्भ” नामक नाटक से हुई. इसके कलाकार हैं , अश्विनी नांदेडकर, सायली पावसकर, कोमल खामकर, योगिनी चौंक और तुषार म्हस्के. इस नाटक के जरिए विश्व भर में नस्लवाद, धर्म, जाति और राष्ट्रवाद के बीच हो रही खींचतान में फंसी या गुम होती मानवता को बचाने के संघर्ष की गाथा को बड़ी खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया गया. अभिनय के स्तर पर वैसे तो सभी कलाकारों ने बढ़िया काम किया, लेकिन मुख्य भूमिका निभा रही अश्वनी नांदेड़कर का अभिनय अद्भुत था. हर भाव, चाहे वह 'डर' हो, 'दर्द' हो या खुशी हो, जिस आवेग और सहजता के साथ मंच पर प्रकट हुआ, वह अभूतपूर्व था.

दूसरे दिन 16, नवम्बर,  ‘अनहद नाद : unheared sounds of universe’ का मंचन हुआ. इसमें भी उन्हीं सारे कलाकारों ने अभिनय किया. इस नाटक में इंसान को उन अनसुनी आवाजों को सुनाने का प्रयास था, जो उसकी अपनी आवाज़ है, पर जिसे वह खुद कभी सुन नहीं पाता, क्योंकि उसे आवाज़ नहीं शोर सुनने की आदत हो गई है. वह शोर जो कला को उत्पाद और कलाकार को उत्पादक समझता है. जो जीवन प्रकृति की अनमोल भेंट की जगह नफे और नुकसान का व्यवसाय बना देता है. सभी कलाकारों ने सधा हुआ अभिनय किया. लगा नहीं कि कलाकार चरित्रों को साकार कर रहे हैं, ऐसा लगा, मानो हम स्वयं अपने शरीर से बाहर निकल आये हों.

तीसरे दिन, 17 नवम्बर को ‘न्याय के भंवर में भंवरी’ का मंचन देखने को मिला. इस नाटक की एक और विशेषता थी, इसमें एक ही कलाकार बबली रावत का एकल अभिनय था. मानव सभ्यता के उदय से लेकर आजतक जिस प्रकार पितृसत्ता से उपजी शोषण और दमनकारी वृति  ने नारी के लिए सामाजिक न्याय और समता का गला घोंटा है और कैसे इस पुरुष प्रधान समाज में परंपरा और संस्कृति के नाम पर महिलाओं को गुलामी की बेड़ियों में कैद करने की साजिश रची गई, इसका मजबूत विवरण औए विश्लेषण मिलता है.

बबली जी ने बड़ी परिपक्वता के साथ नारी के दर्द को उजागर किया और पूरे नाटक के दौरान दर्शकों की सांस को अपनी लयताल से बांधे रखा. जिस दृढ़ता से उन्होंने अपने आप को 'मर्द' कहकर सीना चौड़ा करने वाले पुरूषों को आईना दिखाया, उस अनुभूति को शब्द में बयान करना जरा मुश्किल है.

रंग चिन्तक मंजुल भारद्वाज ने अपने तीन क्लासिक नाटकों से हिंदी रंगकर्म को नए आयम दिए हैं ! वरिष्ठ पत्रकार गोपाल शर्मा ने कहा कि, ऐसी लेखन , निर्देशन और अभिनय शैली उन्होंने इससे पहले कभी नहीं देखी ये मंजुल भारद्वाज का अपना आविष्कार है .  

तीनो दिन थिएटर ऑफ़ रेलेवेंस के नाटकों को देखने के बाद प्रसिद्ध मराठी नाटककार प्रेमानंद गज्वी ने कहा “मैंने मराठी , कन्नड़ ,बंगला के नाटकों और रंगकर्म को देखा है पर ‘मंजुल भारद्वाज’ जैसा नहीं , मंजुल का रंग सिद्धांत मराठी रंगकर्म और देश के रंगकर्म को नयी दिशा दे रहा है ! मंजुल की रंग शैली नयी और विशिष्ठ है उनको आने वाले 25 वर्षों के लिए बधाई !

Saturday, 18 November 2017

कुँवर नारायण को लखनऊ किन हालात में छोडना पड़ा ? ------ नवीन जोशी

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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Friday, 17 November 2017

नर्मदा यात्रा, साफ्ट हिन्दुत्व : कांग्रेस - भाजपा कारपोरेट हित और जनता ------ विजय राजबली माथुर

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दिग्विजय सिंह जी की नर्मदा यात्रा हो अथवा राहुल गांधी की गुजरात के मंदिरों का दर्शन  अंततः भाजपा को ही लाभ पहुंचा सकते हैं क्योंकि , जिस प्रकार किसी वनस्पति का बीज जब बोया जाता है तब अंकुरित होने के बाद वह धीरे-धीरे बढ़ता है तथा पुष्पवित,पल्लवित होते हुये फल भी प्रदान करता है। उसी प्रकार जितने और जो कर्म किए जाते हैं वे भी समयानुसार सुकर्म,दुष्कर्म व अकर्म भेद के अनुसार अपना फल प्रदान करते हैं। यह चाहे व्यक्तिगत,पारिवारिक,सामाजिक,राजनीतिक क्षेत्र में हों अथवा व्यवसायिक क्षेत्रों में। पालक,गन्ना और गेंहू एक साथ बोने पर भी भिन्न-भिन्न समय में फलित होते हैं। उसी प्रकार विभिन्न कर्म एक साथ सम्पन्न होने पर भी भिन्न-भिन्न समय में अपना फल देते हैं। 16 वीं लोकसभा चुनावों में भाजपा की सफलता का श्रेय RSS को है जिसको राजनीति में मजबूती देने का श्रेय इंदिरा जी व राजीव जी को जाता है। 

1967,1975 ,1980,1989 में लिए गए इन्दिरा जी व राजीव जी के निर्णयों ने 2014 में भाजपा को पूर्ण बहुमत तक पहुंचाने में RSS की भरपूर मदद की है। प्रियंका गांधी वाडरा,राहुल गांधी अथवा दिग्विजय सिंह या जो भी भाजपा विरोधी लोग राजनीति में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं उनको खूब सोच-समझ कर ही निर्णय आज लेने होंगे जिनके परिणाम आगामी समय में ही मिलेंगे। 'धैर्य',संयम,साहस के बगैर लिए गए निर्णय प्रतिकूल फल भी दिलवा सकते हैं।  

 27 मई 1964 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ था। कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलज़ारी लाल नन्दा को यदि कांग्रेस अपना नेता चुन कर स्थाई प्रधानमंत्री बना देती तो कांग्रेस की स्थिति सुदृढ़ रहती किन्तु इन्दिरा जी पी एम नहीं बन पातीं। इसलिए समाजवाद के घोर विरोधी लाल बहादुर शास्त्री जी को पी एम पद से नवाजा गया था जिंनका 10/11 जनवरी 1966 को ताशकंद में निधन हो गया फिर कार्यावाहक पी एम तो नंदा जी ही बने किन्तु उनकी चारित्रिक दृढ़ता एवं ईमानदारी के चलते  उनको कांग्रेस संसदीय दल का नेता न बना कर इंदिराजी को पी एम बनाया गया। 1967 के चुनावों में उत्तर भारत के अनेक राज्यों में कांग्रेस की सरकारें न बन सकीं। केंद्र में मोरारजी देसाई से समझौता करके इंदिराजी पुनः पी एम बन गईं। अनेक राज्यों की गैर-कांग्रेसी सरकारों में 'जनसंघ' की साझेदारी थी। उत्तर प्रदेश में प्रभु नारायण सिंह व राम स्वरूप वर्मा (संसोपा) ,रुस्तम सैटिन व झारखण्डे राय(कम्युनिस्ट ),प्रताप सिंह (प्रसोपा),पांडे  जी आदि (जनसंघ) सभी तो एक साथ मंत्री थे। बिहार में ठाकुर प्रसाद(जनसंघ ),कर्पूरी ठाकुर व रामानन्द तिवारी (संसोपा ) एक साथ मंत्री थे। मध्य प्रदेश में भी यही स्थिति थी। इन्दिरा जी की नीतियों से कांग्रेस को जो झटका लगा था उसका वास्तविक लाभ जनसंघ को हुआ था। जनसंघी मंत्रियों ने प्रत्येक राज्य में संघियों को सरकारी सेवा में लगवा दिया था जबकि सोशलिस्टों व कम्युनिस्टों ने ऐसा नहीं किया कि अपने कैडर को सरकारी सेवा में लगा देते। 

1974 में जब जय प्रकाश नारायण गुजरात के छात्र आंदोलन के माध्यम से पुनः राजनीति में आए तब संघ के नानाजी देशमुख आदि उनके साथ-साथ उसमें शामिल हो गए।

1977 में मोरारजी देसाई की जनता पार्टी की केंद्र सरकार में आडवाणी व बाजपेयी साहब जनसंघ  कोटे से  तो राजनारायन संसोपा कोटे से मंत्री थे। बलराज माधोक तो मोरारजी देसाई को 'आधुनिक श्यामा प्रसाद मुखर्जी' कहते थे। जनसंघी मंत्रियों ने सूचना व प्रसारण तथा विदेश विभाग में खूब संघी प्रविष्ट करा दिये थे।  

1977 में उत्तर प्रदेश में राम नरेश यादव (पूर्व  राज्यपाल-मध्य प्रदेश) की जनता पार्टी सरकार में कल्याण सिंह(जनसंघ),मुलायम सिंह(संसोपा ) आदि सभी एक साथ मंत्री थे। पूर्व जनसंघ गुट के मंत्रियों ने संघियों को सरकारी सेवाओं में खूब एडजस्ट किया था। 
 1975 में संघ प्रमुख मधुकर दत्तात्रेय 'देवरस' ने जेल से बाहर आने हेतु इंदिराजी से एक गुप्त समझौता किया कि भविष्य में संकट में फँसने पर वह इंदिराजी की सहायता करेंगे। और उन्होने अपना वचन निभाया 1980 में संघ का पूर्ण समर्थन इन्दिरा कांग्रेस को देकर जिससे इंदिराजी पुनः पी एम बन सकीं।परंतु इसी से प्रतिगामी नीतियों पर चलने की शुरुआत भी हो गई 'श्रम न्यायालयों' में श्रमिकों के विरुद्ध व शोषक व्यापारियों /उद्योगपतियों के पक्ष में निर्णय घोषित करने की होड लग गई।इंदिराजी की हत्या के बाद 1984 में बने पी एम राजीव गांधी साहब भी अपनी माता जी की ही राह पर चलते हुये कुछ और कदम आगे बढ़ गए । अरुण नेहरू व अरुण सिंह की सलाह पर राजीव जी ने केंद्र सरकार को एक 'कारपोरेट संस्थान' की भांति चलाना शुरू कर दिया था।आज 2014 में  बनी नई भाजपा  सरकार कारपोरेट के हित में जाती दिख रही है तो यह उसी नीति का ही विस्तार है। 

 1989 में उन्होने सरदार पटेल द्वारा लगवाए विवादित बाबरी मस्जिद/राम मंदिर का ताला खुलवा दिया। बाद में वी पी सिंह की सरकार को बाहर से समर्थन देने के एवज में भाजपा ने स्वराज कौशल (सुषमा स्वराज जी के पति) जैसे लोगों को राज्यपाल जैसे पदों तक नियुक्त करवा लिया था। सरकारी सेवाओं में संघियों की अच्छी ख़ासी घुसपैठ करवा ली थी। 

आगरा पूर्वी विधान सभा क्षेत्र मे 1985 के परिणामों मे संघ से संबन्धित क्लर्क कालरा ने किस प्रकार भाजपा प्रत्याशी को जिताया  वह कमाल पराजित घोषित कांग्रेस प्रत्याशी सतीश चंद्र गुप्ता जी के  अलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती देने से उजागर हुआ। क्लर्क कालरा ने नीचे व ऊपर कमल निशान के पर्चे रख कर बीच में हाथ का पंजा वाले पर्चे छिपा कर गिनती की थी जो जजों की निगरानी में हुई पुनः गणना में पकड़ी गई। भाजपा के सत्य प्रकाश'विकल' का चुनाव अवैध  घोषित करके सतीश चंद्र जी को निर्वाचित घोषित किया गया। 
ऐसे सरकारी संघियों के बल पर 1991 में उत्तर-प्रदेश आदि कई राज्यों में भाजपा की बहुमत सरकारें बन गई थीं।1992 में कल्याण सिंह के नेतृत्व की सरकार ने बाबरी मस्जिद ध्वंस करा दी और देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए। 1998 से 2004 के बीच रही बाजपेयी साहब की सरकार में पुलिस व सेना में भी संघी विचार धारा के लोगों को प्रवेश दिया गया। 

2011 में सोनिया जी के विदेश में इलाज कराने जाने के वक्त से डॉ मनमोहन सिंह जी हज़ारे/केजरीवाल के माध्यम से संघ से संबंध स्थापित किए हुये थे जिसके परिणाम स्वरूप 2014 के चुनावों में सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों ने भी परिणाम प्रभावित करने में अपनी भूमिका अदा की है



Thursday, 16 November 2017

पर्यावरण और किसान की बरबादी मशीनीकरण के कारण ------ बृजेश शुक्ल

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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

बुद्ध - तुल्य : कुँवर नारायण ------ पंकज चतुर्वेदी

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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Sunday, 12 November 2017

अभिव्यक्ति के खतरे उठाए जाएँ ------ वीरेंद्र यादव

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NBT, Lko., 12-11-2017, Page --- 4


पुनश्च : 

    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

हवा में बढ़ते जहर का समाधान : ' हवन ' ------ विजय राजबली माथुर

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भोपाल गैस कांड के बाद यूनियन कारबाईड ने खोज करवाई थी कि तीन परिवार सकुशल कैसे बचे ? निष्कर्ष मे ज्ञात हुआ कि वे परिवार घर के भीतर हवन कर रहे थे और दरवाजों व खिड़कियों पर कंबल पानी मे भिगो कर डाले हुये थे। ट्रायल के लिए गुजरात मे अमेरिकी वैज्ञानिकों ने 'प्लेग ' के कीटाणु छोड़ दिये। इसका प्रतिकार करने हेतु राजीव गांधी सरकार ने हवन के पैकेट बँटवाए थे और 'हवन ' के माध्यम से उस प्लेग से छुटकारा मिला था।अमेरिकी मनोवैज्ञानिक मिसेज पेट्रिसिया हेमिल्टन ने भोपाल के उप नगर (15 किलो मीटर दूर ) बेरागढ़ के समीप माधव आश्रम मे स्वीकार किया था कि'होम -चिकित्सा'अमेरिका,चिली और पोलैंड मे प्रासंगिक हो रही है। राजधानी वाशिंगटन (डी सी ) मे "अग्निहोत्र विश्वविद्यालय"की स्थापना हो चुकी है । बाल्टीमोर मे तो 04 सितंबर 1978 से ही लगातार 'अखंड हवन ' चल रहा है और जो ओजोन का छिद्र अमेरिका के ऊपर था वह खिसक कर दक्षिण-पूर्व एशिया की तरफ आ गया है। लेकिन भारत के लोग ओशो, मुरारी और आशाराम बापू ,रामदेव ,अन्ना हज़ारे ,गायत्री परिवार जैसे ढोंगियों के दीवाने बन कर अपना अनिष्ट कर रहे हैं । परिणाम क्या है एक विद्वान ने यह बताया है-

परम पिता से प्यार नहीं ,शुद्ध रहे व्यवहार नहीं। 
इसी लिए तो आज देख लो ,सुखी कोई परिवार नहीं। । परम ... । । 

फल और फूल अन्य इत्यादि,समय समय पर देता है। 
लेकिन है अफसोस यही ,बदले मे कुछ नहीं लेता है। । 
करता है इंकार नहीं,भेद -भाव तकरार नहीं। 
ऐसे दानी का ओ बंदे,करो जरा विचार नहीं। । परम ....। । 1 । ।

मानव चोले मे ना जाने कितने यंत्र लगाए हैं। 
कीमत कोई माप सका नहीं,ऐसे अमूल्य बनाए हैं। । 
कोई चीज बेकार नहीं,पा सकता कोई पार नहीं । 
ऐसे कारीगर का बंदे ,माने तू उपकार नहीं। । परम ... । । 2 । । 

जल,वायु और अग्नि का,वो लेता नहीं सहारा है। 
सर्दी,गर्मी,वर्षा का अति सुंदर चक्र चलाया है। । 
लगा कहीं दरबार नहीं ,कोई सिपाह -सलारनहीं। 
कर्मों का फल दे सभी को ,रिश्वत की सरकार नहीं। । परम ... । । 3 । । 

सूर्य,चाँद-सितारों का,जानें कहाँ बिजली घर बना हुआ। 
पल भर को नहीं धोखा देता,कहाँ कनेकशन लगा हुआ। । 
खंभा और कोई तार नहीं,खड़ी कोई दीवार नहीं। 
ऐसे शिल्पकार का करता,जो 'नरदेव'विचार नहीं। । परम .... । । 4 । । 

"सीता-राम,सीता-राम कहिए ---जाहि विधि रहे राम ताही विधि रहिए।"-यह निष्कर्ष 35 वर्ष आर एस एस मे रह कर और उससे दुखी होकर अलग होने वाले सोरो निवासी आचार्य राम किशोर जी(पूर्व प्राचार्य ,संस्कृत महाविद्यालय,हापुड़)का है। 


आलसी और अकर्मण्य लोग राम को दोष दे कर बच निकलना चाहते हैं। राम ने जो त्याग किया और कष्ट देश तथा देशवासियों के लिए खुद व पत्नी सीता सहित सहा उसका अनुसरण करने -पालन करने की जरूरत है । राम के नाम पर आज फिर से देश को तोड़ने और बांटने की साजिशे हो रही हैं जबकि राम ने पूरे 'आर्यावृत ' और 'जंबू द्वीप 'को एकता के सूत्र मे आबद्ध किया था और रावण के 'साम्राज्य' का विध्वंस किया था । राम के नाम पर क़त्लो गारत करने वाले राम के पुजारी नहीं राम के दुश्मन हैं जो साम्राज्यवादियो के मंसूबे पूरे करने मे लगे हुये हैं । जिन वेदिक नियमों का राम ने आजीवन पालन किया आज भी उन्हीं को अपनाए जाने की नितांत आवश्यकता है।

          यज्ञ  माहात्म्य

लिखा वेदों मे विधान ,अद्भुत है महिमा हवन की।
जो वस्तु अग्नि मे जलाई,हल्की होकर वो ऊपर उड़ाई।
करे वायु से मिलान,जाती है रस्ता गगन की।
लिखा वेदों मे विधान ,अद्भुत है महिमा हवन की। । 1 । ।

फिर आकाश मण्डल मे भाई,पानी की होत सफाई।
वृष्टि होय अमृत समान,वृद्धि होय अन्न और धन की।
लिखा वेदों मे विधान,अद्भुत है महिमा हवन की। । 2 । ।

जब अन्न की वृद्धि होती है,सब प्रजा सुखी होती है।
न रहता दु : ख का निशान ,आ जाती है लहर अमन की।
लिखा वेदों मे विधान ,अद्भुत है महिमा हवन की। । 3 । ।

जब से यह कर्म छुटा है,भारत का भाग्य लुटा है।
'सुशर्मा'करते बयान सहते हैं मार दु :खन की।
लिखा वेदों मे विधान ,अद्भुत है महिमा हवन की। । 4 । ।

जनाब 'हवन' एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। कैसे? Material  Science (पदार्थ विज्ञान ) के अनुसार अग्नि मे जो भी चीजें डाली जाती हैं उन्हे अग्नि परमाणुओ (Atoms) मे विभक्त कर देती है और वायु उन परमाणुओ को बोले गए मंत्रों की शक्ति से संबन्धित ग्रह अथवा देवता तक पहुंचा देती है।

देवता=जो देता है और लेता नहीं है जैसे-अग्नि,वायु,आकाश,समुद्र,नदी,वृक्ष,पृथ्वी,ग्रह-नक्षत्र आदि।(पत्थर के टुकड़ों तथा कागज पर उत्कीर्ण चित्र वाले नहीं )। 

मंत्र शक्ति=सस्वर मंत्र पाठ करने पर जो तरंगें (Vibrations) उठती हैं वे मंत्र के अनुसार संबन्धित देवता तक डाले गए पदार्थों के परमाणुओ को पहुंचा देती हैं।

अतः हवन और मात्र हवन (यज्ञ ) ही वह पूजा या उपासना पद्धति है जो कि पूर्ण रूप से वैज्ञानिक सत्य पर आधारित है। बाकी सभी पुरोहितों द्वारा गढ़ी गई उपासना पद्धतियेँ मात्र छ्ल हैं-ढोंग व पाखंड के सिवा कुछ भी नहीं हैं। चाहे उनकी वकालत प्रो . जैन अर्थात 'ओशो-रजनीश' करें या आशा राम बापू,मुरारी बापू,अन्ना/रामदेव,बाल योगेश्वर,आनंद मूर्ती,रवी शंकर जैसे ढ़ोंगी साधू-सन्यासी। 'राम' और 'कृष्ण' की पूजा करने वाले राम और कृष्ण के शत्रु हैं क्योंकि वे उनके बताए मार्ग का पालन न करके ढ़ोंगी-स्वांग रच रहे हैं। राम को तो विश्वमित्र जी 'हवन'-'यज्ञ 'की रक्षा हेतु बाल -काल मे ही ले गए थे। कृष्ण भी महाभारत के युद्ध काल मे भी हवन करना बिलकुल नहीं भूले। जो लोग उनके द्वारा प्रदर्शित मार्ग 'हवन 'करना छोड़ कर उन्हीं की पूजा कर डालते हैं वे जान बूझ कर उनके कर्मों का उपहास उड़ाते हैं। राम और कृष्ण को 'भगवान' या भगवान का अवतार बताने वाले इस वैज्ञानिक 'सत्य ' को स्वीकार नहीं करते कि 'भगवान' न कभी जन्म लेता है न उसकी मृत्यु होती है। अर्थात भगवान कभी भी 'नस' और 'नाड़ी' के बंधन मे नहीं बंधता है क्योंकि,-

भ=भूमि अर्थात पृथ्वी।
ग=गगन अर्थात आकाश।
व=वायु।
I=अनल अर्थात अग्नि (ऊर्जा )।
न=नीर अर्थात जल।

प्रकृति के ये पाँच तत्व ही 'भगवान' हैं और चूंकि इन्हें किसी ने बनाया नहीं है ये खुद ही बने हैं इसी लिए ये 'खुदा' हैं। ये पांचों तत्व ही प्राणियों और वनस्पतियों तथा दूसरे पदार्थों की 'उत्पत्ति'(GENERATE),'स्थिति'(OPERATE),'संहार'(DESTROY) के लिए उत्तरदाई हैं इसलिए ये ही GOD हैं। पुरोहितों ने अपनी-अपनी दुकान चमकाने के लिए इन को तीन अलग-अलग नाम से गढ़ लिया है और जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ रहे हैं। इनकी पूजा का एकमात्र उपाय 'हवन ' अर्थात 'यज्ञ ' ही है और कुछ भी कोरा पाखंड एवं ढोंग।

                                         यज्ञ महिमा

होता है सारे विश्व का कल्याण यज्ञ से।
जल्दी प्रसन्न होते हैं भगवान यज्ञ से। ।

1-ऋषियों ने ऊंचा माना है स्थान यज्ञ का।
करते हैं दुनिया वाले सब सम्मान यज्ञ का।
दर्जा है तीन लोक मे-महान यज्ञ का।
भगवान का है यज्ञ और भगवान यज्ञ का।
जाता है देव लोक मे इंसान यज्ञ से। होता है ...........

2-करना हो यज्ञ प्रकट हो जाते हैं अग्नि देव।
डालो विहित पदार्थ शुद्ध खाते हैं अग्नि देव।
सब को प्रसाद यज्ञ का पहुंचाते हैं अग्नि देव।
बादल बना के भूमि पर बरसाते हैं अग्निदेव।
बदले मे एक के अनेक दे जाते अग्नि देव।
पैदा अनाज होता है-भगवान यज्ञ से।
होता है सार्थक वेद का विज्ञान यज्ञ से। होता है ......

3-शक्ति और तेज यश भरा इस शुद्ध नाम मे ।
 साक्षी यही है विश्व के हर नेक काम मे।
 पूजा है इसको श्री कृष्ण-भगवान राम ने।
होता है कन्या दान भी इसी के सामने।
मिलता है राज्य,कीर्ति,संतान यज्ञ से।
सुख शान्तिदायक मानते हैं सब मुनि इसे। होता है .....

4-वशिष्ठ विश्वमित्र   और नारद मुनि इसे।
इसका पुजारी कोई पराजित नहीं होता।
भय यज्ञ कर्ता को कभी किंचित नहीं होता।
होती हैं सारी मुश्किलें आसान यज्ञ से। होता है ......

5-चाहे अमीर है कोई चाहे गरीब है।
 जो नित्य यज्ञ करता है वह खुश नसीब है।
हम सब मे आए यज्ञ के अर्थों की भावना।
'जख्मी'के सच्चे दिल से है यह श्रेष्ठ कामना।

होती हैं पूर्ण कामना--महान यज्ञ से । होता है .... 


संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Saturday, 11 November 2017

राहुल- मोदी, गुजरात चुनाव और आगे ------

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2004 के लोकसभा चुनावों से पूर्व जहां एक ओर अधिकांश लोग ए बी बाजपेयी साहब के दोबारा लौटने के कयास लगा रहे थे वहीं दूसरी ओर एक बड़ा तबका सोनिया जी के पी एम बनने के स्वप्न सँजो रहा था।अखिल भारतीय कायस्थ महासभा आगरा के अध्यक्ष सी एम शेरी साहब के निजी कार्यक्रम में एकत्र कांग्रेस व भाजपा के तमाम लोग ऐसी ही चर्चाए कर रहे थे। मैंने तब सबके समक्ष स्पष्ट कहा था कि, न तो बाजपेयी साहब न ही सोनिया जी पी एम बनेंगी कोई तीसरा ही व्यक्ति बनेगा। चुनाव परिणाम के बाद सुषमा स्वराज, उमा भारती जैसे महिला नेत्रियों ने सोनिया जी के विरुद्ध आग उगलना शुरू कर दिया था। लेकिन डॉ एम एम सिंह साहब पी एम बने। 

गुजरात चुनावों के परिप्रेक्ष्य में एक बार 2019 के लिए फिर चर्चा है कि, क्या मोदी साहब लौटेंगे अथवा राहुल गांधी पी एम बनेंगे। मेरा पुनः विचार है कि, दोनों में से कोई नहीं फिर कोई तीसरा ही पी एम बनेगा। चुनाव भी समय पूर्व ही हो सकते हैं । बड़े अखबारों में बड़े - बड़े लेख लिखने वाले सब लोग निराश ही होंगे।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Thursday, 9 November 2017

काले धन की सच्चाई छिपाने को हुई डैफ्नी की हत्या ------ किंशुक पाठक

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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Wednesday, 8 November 2017

कारपोरेट को मजबूत करने, काला धन सफ़ेद करने की कवायद थी --- नोटबंदी

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गतवर्ष की नोटबंदी के संबंध में  जर्मनी की चांसलर साहिबा ने यू एस ए की ही प्रेस के हवाले से यह रहस्योद्घाटन किया था कि, भारत में की गई नोटबंदी अमेरिकी दबाव में की गई थी। वस्तुतः ओबामा साहब रिटायर होने वाले थे और यू एस ए में आठ नवंबर 2016 को अगले राष्ट्रपति चुनाव हेतु मतदान चल रहा था जिस दिन भारत में नोटबंदी का ऐलान किया गया। यू एस ए में डिजिटल कंपनियों का व्यापार चौपट हो चुका था और उनके बंद होने की नौबत आ रही थी लेकिन भारत की नोटबंदी ने उनका अस्तित्व बचा लिया क्योंकि यहाँ कैशलेस और डिजिटल लेन - देन के लिया जनता को बाध्य कर दिया गया था। पुराने बड़े नोट बैंकों में जमा हो चुके थे और नई करेंसी बाज़ार में आई नहीं थी। गरीब जनता कराह रही थी और बड़े कारपोरेट घराने मस्ती में अपना धंधा कर रहे थे। क्योंकि : 
डिजिटल पेमेंट्स पर इतने चार्जेस
नई दिल्ली
कैश में लेन-देन की हमारी आदत को बड़ा झटका नोटंबदी के बाद लगा जब हमें डिजिटल पेमेंट्स के लिए मजबूर होना पड़ा। ऑनलाइन पेमेंट्स से लेकर मोबाइल वॉलिट और ऑनलाइन ट्रांसफर तो हमने शुरू कर दिया लेकिन क्या हमें पता है कि हमें इसके लिए कितना टैक्स या चार्ज चुकाना पड़ता है।
https://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-news/the-real-cost-of-digital-transactions-and-payments/articleshow/61546862.cms?utm_source=facebook.com&utm_medium=referral
    

संकलन-विजय माथुर

Saturday, 4 November 2017

नई पीढ़ी सांप्रदायिकता से लड़ने में सक्षम ------ कृष्णा सोबती

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    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश


Wednesday, 1 November 2017

गुनाह,तकदीर,खुदा और कलम ------ विजय राजबली माथुर

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पंजाब की कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे और खालिस्तान आंदोलन का विरोध करने के कारण शहीद हुये लाला जगत नारायण द्वारा स्थापित अखबार द्वारा गलत दलील पेश की जा रही है। 
'खुदा ' अर्थात जो खुद ही बना हो और जिसे किसी इंसान ने बनाया नहीं हो और जिसका कार्य उत्पत्ति (GENERATE), स्थिति (OPERATE),संहार (DESTROY)होता है जो भूमि (भ ),ग (गगन-आकाश ),व (वायु - हवा ),I (अनल-अग्नि ),न (नीर - जल ) का समन्वय होता है। 

 प्रकृति ने सृष्टि 'सत ' , ' रज ' और 'तम ' के परमाणुओं से की है। ये सदैव विषम अवस्था में रहते हैं  और परस्पर  ' संसर्ग ' करते रहते हैं  जिस कारण इसे संसार कहा जाता है। जब भी सत, रज और तम के परमाणु सं अवस्था में हो जाते हैं तब वह अवस्था  ' प्रलय ' की होते है जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि या संसार नष्ट हो जाता है। ' मनन ' करने वाला प्राणी  ' मनुष्य ' कहलाता है। यदि कोई मनन नहीं करता है तो उसे मनुष्य तन धारी पशु ही कहा जाता है। मनुष्य सदैव कुछ न कुछ ' कर्म ' करता है जिस कारण उसे  ' कृतु ' भी कहा जाता है। कर्म  तीन प्रकार के होते हैं -  सदकर्म, दुष्कर्म और अकर्म । सदकर्म का परिणाम सुफल , दुष्कर्म का परिणाम विफल होता है। अकर्म  वह कर्म  होता है जो किया जाना चाहिए था और किया नहीं गया । यद्यपि संसार के नियमों में यह अपराध नहीं है और समाज ऐसे कृत्य को दंडित नहीं करता है किन्तु प्रकृति, खुदा, GOD, भगवान की निगाह  में यह दंडित होता है।   
यह संसार एक परीक्षालय है यहाँ निरंतर परीक्षा चलती रहती है।खुदा = GOD=भगवान =भूमि,गगन,वायु,अग्नि,जल किसी भी प्राणी के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करते हैं वे एक निरीक्षक (Investigator) के तौर पर इंसान - मनुष्य के कार्यों का सिर्फ अवलोकन करते हैं। परंतु एक परीक्षक (Examinar) के तौर पर उसके कार्यों के लेखा- जोखा के आधार पर पुरस्कृत करते व दंड देते हैं। 


खुदा की कलम से तकदीर नहीं लिखी जाती तकदीर तो इंसान खुद गढ़ता है इसलिए खुदा को दोष देने की बात पूर्णतया: गलत है। 




संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश