Monday, 30 October 2017

दान देने का महत्व प्रचारण नुकसान पहुंचाने का उपक्रम भी बन सकता है ------ विजय राजबली माथुर

टी वी पर,जगह-जगह प्रवचनों मे, अखबारो मे आपको दान देने का महत्व प्रचारित करके नुकसान पहुंचाने का उपक्रम किया जाता है और आप धर्म के नाम पर ठगे जाकर गर्व की अनुभूति करते हैं। यह आप पर है कि ढ़ोंगी-लुटेरे महात्माओ के फेर मे दान देकर नुकसान उठाएँ या फिर इस प्रस्तुतीकरण का लाभ उठाते हुये दान न दें। बेहतर यही है कि दान देकर पाखंडियों की लूट और शोषण को मजबूत न करें।
* आगरा में पोस्टेड UPSIDC के एक एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर साहब ने वृन्दावन में दो भूखे लोगों को भोजन कराया और रात्रि समय लौटते में आगरा की सीमा में प्रवेश होते ही हथियारों की नोक पर उनकी सोने की  चेन वाली घड़ी, उनकी पत्नी के कंगन, गले का हार और दोनों की नकदी लूट ली गई। 
** झांसी की एक शिक्षिका नें अपनी कालोनी के एक मंदिर को रु 1100/- दान दिये और शिला पट्टिका पर उनका नाम भी दर्ज हुआ लेकिन उनकी खुद की ड्राइविंग पर उनकी कार से टकरा कर एक मोटर साईकिल सवार जैन दंपति की मौत हो गई जिसके मुकदमे का उनको नौ वर्ष सामना करना पड़ा। 
*** एक EO साहब ने गया जाकर दान - पुण्य किया परिणाम स्वरूप उनको गंभीर बीमारी व आपरेशन का सामना करना पड़ा। 
अतः दान देने के महत्व को समझने के साथ - साथ दान देने के नुकसान को भी समझ लें और फिर करें या न करें का निर्णय लें।




टी वी पर,जगह-जगह प्रवचनों मे, अखबारो मे आपको दान देने का महत्व प्रचारित करके नुकसान पहुंचाने का उपक्रम किया जाता है और आप धर्म के नाम पर ठगे जाकर गर्व की अनुभूति करते हैं। यह आप पर है कि ढ़ोंगी-लुटेरे महात्माओ के फेर मे दान देकर नुकसान उठाएँ या फिर इस प्रस्तुतीकरण का लाभ उठाते हुये दान न दें। बेहतर यही है कि दान देकर पाखंडियों की लूट और शोषण को मजबूत न करें।  
निकटतम और घनिष्ठतम लोगों के उदाहरण उनकी जन्म-पत्रियों की ओवरहालिंग करने के बाद ही दिये हैं,  ब्रहस्पति स्व-राशि का हो या  उच्च का उससे संबन्धित वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए । अब प्रश्न है कि आप कैसे जानेंगे कि आप का कौन सा ग्रह उच्च का या स्व-ग्रही है और उसके लिए क्या-क्या दान नहीं करना चाहिए?इसके लिए निम्न-लिखित तालिका का अवलोकन करें-


क्रम संख्या          ग्रह       उच्च राशि            स्व-राशि 

1-                 सूर्य              मेष (1 )                सिंह (5 )


 2-               चंद्र                 वृष  (2 )                 कर्क (4 )


3-              मंगल             मकर (10 )                 मेष (1 ) और वृश्चिक (8 )


4-              बुध                कन्या (6 )                  मिथुन (3 ) और कन्या (6 )


5-             ब्रहस्पति        कर्क (4 )                     धनु (9 ) और मीन (12 )


6-             शुक्र                मीन (12 )                   वृष (2 ) और तुला (7 )


7-            शनि                 तुला (7 )                     मकर (10 ) और कुम्भ (11 )


8-            राहू                   मिथुन (3 )                 'राहू' और 'केतू' वस्तुतः हमारी पृथिवी के उत्तरी और 

9-            केतू                   धनु (9 )                दक्षिणी      ध्रुव हैं जिन्हें छाया ग्रह के रूप मे गणना मे लिया जाता है।

ऊपर क्रम संख्या मे ग्रहों के नाम दिये हैं जबकि राशियों की क्रम संख्या कोष्ठक मे दी गई है। जन्मपत्री मे बारह घर होते हैं और उनमे ये बारह राशिया उस व्यक्ति के जन्म के अनुसार राशियो की क्रम संख्या मे अंकित रहती हैं। उस समय के अनुसार जो ग्रह जिस राशि मे होता है वैसा ही जन्मपत्री मे लिखा जाता है। यदि सूर्य संख्या (1 ) मे है तो समझें कि उच्च का है। ब्रहस्पति यदि संख्या (4 ) मे है तो उच्च का है। इसी प्रकार ग्रह की स्व-राशि भी समझ जाएँगे। अब देखना यह है कि जितने ग्रह उच्च के अथवा स्व-राशि के हैं उनसे संबन्धित पदार्थों का न तो दान करना है और न ही निषेद्ध्य किया गया कार्य करना है वरना कोई न कोई हादसा या नुकसान उठाना ही पड़ेगा। नीचे नवों ग्रहों से संबन्धित निषिद्ध वस्तुओं का अवलोकन करके सुनिश्चित कर लें-


1-सूर्य :

सोना,माणिक्य,गेंहू,किसी भी प्रकार के अन्न से बने पदार्थ,गुड,केसर,तांबा और उससे बने पदार्थ,भूमि-भवन,लाल और गुलाबी वस्त्र,लाल और गुलाबी फूल,लाल कमल का फूल,बच्चे वाली गाय आदि।


2-चंद्र :

चांदी,मोती,चावल,दही,दूध,घी,शंख,मिश्री,चीनी,कपूर,बांस की बनी चीजें जैसे टोकरी-टोकरा,सफ़ेद स्फटिक,सफ़ेद चन्दन,सफ़ेद वस्त्र,सफ़ेद फूल,मछली आदि।


3-मंगल :

किसी भी प्रकार की मिठाई,मूंगा,गुड,तांबा और उससे बने पदार्थ,केसर,लाल चन्दन,लाल फूल,लाल वस्त्र,गेंहू,मसूर,भूमि,लाल बैल आदि।

4-बुध :

छाता,कलम,मशरूम,घड़ा,हरा मूंग,हरे वस्त्र,हरे फूल,सोना,पन्ना,केसर,कस्तूरी,हरे रंग के फल,पाँच-रत्न,कपूर,हाथी-दाँत,शंख,घी,मिश्री,धार्मिक पुस्तकें,कांसा और उससे बने बर्तन आदि।

5-ब्रहस्पति :

सोना,पुखराज,शहद,चीनी,घी,हल्दी,चने की दाल,धार्मिक पुस्तकें,केसर,नमक,पीला चावल,पीतल और इससे बने बर्तन,पीले वस्त्र,पीले फूल,मोहर-पीतल की,भूमि,छाता आदि। कूवारी कन्याओं को भोजन न कराएं और वृद्ध-जन की सेवा न करें (जिनसे कोई रक्त संबंध न हो उनकी )।किसी भी मंदिर मे और मंदिर के पुजारी को दान नहीं देना चाहिए।

6-शुक्र :

हीरा,सोना, सफ़ेद छींट दार चित्र और  वस्त्र,सफ़ेद वस्त्र,सफ़ेद फूल,सफ़ेद स्फटिक,चांदी,चावल,घी,चीनी,मिश्री,दही,सजावट-शृंगार की वस्तुएं,सफ़ेद घोडा,गोशाला को दान,आदि। तुलसी  की पूजा न करें,युवा स्त्री का सम्मान न करें ।


7-शनि :

सोना,नीलम,उड़द,तिल,सभी प्रकार के तेल विशेष रूप से सरसों का तेल,भैंस,लोहा और स्टील तथा इनसे बने पदार्थ,चमड़ा और इनसे बने पदार्थ जैसे पर्स,चप्पल-जूते,बेल्ट,काली गाय,कुलथी, कंबल,अंडा,मांस,शराब आदि।

8-राहू :

सोना,गोमेद,गेंहू,उड़द,कंबल,तिल,तेल सभी प्रकार के,लोहा और स्टील तथा इनके पदार्थ,काला घोडा, काला वस्त्र,काला फूल,तलवार,बंदूक,सप्तनजा,सप्त रत्न,अभ्रक आदि।

9-केतू :

वैदूर्य (लहसुन्यिया),सीसा-रांगा,तिल,सभी प्रकार के तेल,काला वस्त्र, काला फूल,कंबल,कस्तूरी,किसी भी प्रकार के शस्त्र,उड़द,बकरा (GOAT),काली मिर्च,छाता,लोहा-स्टील और इनके बने पदार्थ,सप्तनजा आदि।

पति या पत्नी किसी एक के भी ग्रह उच्च या स्व ग्रही होने पर दोनों मे से किसी को भी उससे संबन्धित दान नहीं करना है और उन दोनों की आय  से किसी तीसरे को भी दान नहीं करना है। 

* आगरा में पोस्टेड UPSIDC के एक एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर साहब ने वृन्दावन में दो भूखे लोगों को भोजन कराया और रात्रि समय लौटते में आगरा की सीमा में प्रवेश होते ही हथियारों की नोक पर उनकी सोने की  चेन वाली घड़ी, उनकी पत्नी के कंगन, गले का हार और दोनों की नकदी लूट ली गई। 
** झांसी की एक शिक्षिका नें अपनी कालोनी के एक मंदिर को रु 1100/- दान दिये और शिला पट्टिका पर उनका नाम भी दर्ज हुआ लेकिन उनकी खुद की ड्राइविंग पर उनकी कार से टकरा कर एक मोटर साईकिल सवार जैन दंपति की मौत हो गई जिसके मुकदमे का उनको नौ वर्ष सामना करना पड़ा। 
*** एक EO साहब ने गया जाकर दान - पुण्य किया परिणाम स्वरूप उनको गंभीर बीमारी व आपरेशन का सामना करना पड़ा। 
अतः दान देने के महत्व को समझने के साथ - साथ दान देने के नुकसान को भी समझ लें और फिर करें या न करें का निर्णय लें। 

यद्यपि ढ़ोंगी-पाखंडी-आडंबरधारी  तो इस विश्लेषण का विरोध करेंगे ही किन्तु 'एथीस्टवादी' भी इसका विरोध करेंगे और अंततः अधर्मी- ढ़ोंगी-पाखंडी-आडंबरधारी तबके का ही समर्थन करेंगे। इसी कारण देश की जनता उल्टे उस्तरे से मूढ़ी जाती रहती है। 

Friday, 27 October 2017

एक नारीवादी लेखिका का सच --- Er S D Ojha / सच स्वीकारने को कोई तैयार नहीं --- विजय राजबली माथुर




Er S D Ojha
2 hrs
एक नारीवादी लेखिका का सच ।
मशहूर लेखिका मैत्रेयी पुष्पा का छठ ब्रती महिलाओं पर कसा तंज उन पर हीं भारी पड़ गया । उन्होंने लिखा था -
"छठ के त्यौहार में बिहार वासिनी स्त्रियां मांग माथे के अलावा नाक पर भी सिंदूर पोत रचा लेती हैं । कोई खास वजह होती है क्या ?"
लोग उन्हें ट्रोल करने लगे । एक पाठक ने लिखा कि आपके पति हैं , फिर भी आप सिंदूर नहीं लगातीं । इस बात पर तो किसी ने आज तक तंज नहीं कसा । वैसे इस बात पर उन्हीं के शब्दों में यह सवाल तो बनता है - क्या कोई खास वजह है क्या ? ज्यादा हो हल्ला मचने पर मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी यह विवादित पोस्ट हटा ली है , पर जितनी सुर्खियां बटोरनी थी , वह बटोरने के बाद या जितना उनके व्यक्तित्व को नुकसान होना था , उसके हो चुकने के बाद ।
मैत्रेयी पुष्पा हिंदी अकादमी दिल्ली की उपाध्यक्ष हैं । उन्हें महिला हिंदी लेखन की यदि सुपर स्टार भी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । उनकी कहानी " ढैसला " पर टेलिफिल्म बन चुकी है । उनके उपन्यास " बेतवा बहती रही " को हिंदी संस्धान द्वारा " प्रेमचंद सम्मान " दिया गया है । " कहैं ईसुरी फाग " एक स्थानीय लोक गायक ईसुरी पर लिखा उपन्यास है । मैत्रेयी पुष्पा को गांव की पहली लेखिका कहा जाता है , जिन्होंने गांव की गवईं स्त्री के दर्द को समझा है । लेकिन " इदन्नम " , "चाक "और "अलमा कबूतरी " में गांव की स्त्री का मैत्रेयी पुष्पा ने जो एडवांस रूप दिखाया है । वह वास्तव में वैसा नहीं है । यदि मांग में सिंदूर न पहनना , सिगरेट पीना और जींस पहनना हीं फेमिनिस्ट की पहचान है तो माफ कीजिए , मुझे आज तक कोई ऐसी औरत गांव में नहीं मिली । मैत्रेयी पुष्पा भी एक नारीवादी हैं , पर वह भी साड़ी पहनती हैं । ये और बात है कि वे मांग में सिंदूर नहीं पहनतीं । ये उनकी मर्जी है । मानिए वही जो मन भावे ।
सरिता से अपने कथा संसार का सूत्रपात करने वाली मैत्रेयी पुष्पा जब धर्मयुग , साप्ताहिक हिंदुस्तान और सारिका जैसी उच्च श्रेणी की पत्रिकाओं में अपनी पैठ कायम करती हैं तो सभी लोग उनके इस इल्म का लोहा मानने लगते हैं । वही मैत्रेयी पुष्पा जब होटल में राजेंद्र यादव के साथ पहुंचती हैं तो वह जल्दी जल्दी अपने कमरे में पहुंच जाना चाहती हैं । उन्हें डर है कि राजेंद्र यादव कहीं उनका हाथ न पकड़ लें । किंतु जब रात को मैत्रेयी पुष्पा को पानी की दरकार होती है तो रिस्पेशन में फोन न कर वह राजेंद्र यादव के कमरे का दरवाजा खटखटाती हैं । ऐसा क्यों ? यह बात किसी ने मैत्रेयी पुष्पा से नहीं पूछी । कारण , उनकी मर्जी । हो सकता है कि उनको होटल स्टाफ से ज्यादे राजेंद्र यादव पर विश्वास हो । या जल्दी से कमरे में अपने को बंद कर लेने से वे अपने आप को अपराधी मान रहीं हों । उनको ऐसा लगा हो कि ऐसा कर उन्होंने राजेंद्र यादव का अपमान किया है । कुछ भी हो सकता है । इस बात का तो किसी ने विवाद का विषय नहीं बनाया । फिर बिहार वासिनी औरतों के नाक ,मांग व माथे पर सिंदूर पोतने पर ऐसा तंज क्यों ?
कभी राजेंद्र यादव ने भी हनुमान को विश्व का पहला आतंकवादी कहा था । ऐसा कह उन्होंने काफी सुर्खियां बटोरी थीं । वैसे आप पूछ सकते हैं कि राजेंद्र यादव को सुर्खियों की क्या जरूरत थी ? वे तो पहले से हीं एक स्थापित कथाकार थे । लेकिन उनके इस कथन से जो उन्हें जानते तक नहीं थे वे भी जानने लगे । आम तौर पर साहित्यकारों को साहित्यिक अभिरूचि रखने वाले लोग हीं जानते हैं । लेकिन साहित्यकार कुछ इस तरह का उथल पुथल मचा दे कि वह पूरी मीडिया में खबर की खबर बन जाय तो उसको जानने वाले बहुत से लोग हो जाएंगे । कहीं यही मंशा मैत्रेयी पुष्पा की भी तो नहीं थी ।
राजेंद्र यादव ने मैत्रेयी पुष्पा के लिए एक बार लिखा था -"तुम स्त्री को गांव लेकर आईं ।" यहां बात विल्कुल उलट हुई है । गांव गवईं स्त्रियों के सिंदूर लगाने की परम्परा पर तंज कसकर मैत्रेयी ने स्त्री को शहर ले जाने की कोशिश की है । इनके पति श्री आर सी शर्मा ने भी इनसे एक बार कहा था कि तुम दूसरी औरतों जैसी क्यों नहीं हो ? इसका कारण मैत्रेयी ने यह बताया - मैंने खुद को पत्नी माना नहीं कभी । चलो मान लेते हैं कि आप अपने को पत्नी नहीं मानतीं , लेकिन एक दोस्त तो मानती होंगी ? तो दोस्त का भी यह कर्तव्य होता है कि टूर पर जाते वक्त दोस्त से एक बार पूछ तो ले कि वह कब आएगा ? आपने ऐसा कभी शर्मा जी से नहीं पूछा । ऐसा क्यों ? ऐसा शायद इसलिए कि आप एक फेमिनिस्ट हैं । ऐसा करेंगी तो आपकी छवि एक फेमिनिस्ट की नहीं रह जाएगी ।
आप कहती हैं कि कभी भी आपने जाते समय शर्मा जी की अटैची तैयार नहीं की । ठीक है । एक आदमी टूर पर जा रहा है । उसे जाने की जल्दी है । वह चीजों को सहेजने में तनाव ग्रस्त है । ऐसे में आप उसकी थोड़ा मदद कर देंगी तो आपका क्या जाएगा ? लेकिन नहीं , आप ऐसा कर देंगी तो आपके नाम से फेमिनिस्ट का तगमा हटा लिया जाएगा । आपकी बड़ी बेइज्जत हो जाएगी ।आपने यह भी कहा है कि शर्मा जी के जाने के बाद आप बहुत अच्छा महसूस करती हैं । अपने को आजाद महसूस करती हैं । अपना पसंददीदा गजल सुनती हैं । क्या शर्मा जी के रहते हुए आप पर बंदिश रहती है ? नहीं , ऐसा कुछ नहीं है । चूंकि आप एक फेमिनिस्ट हैं तो कुछ अलग हट कर करना चाहिए । कुछ अलग सोचना चाहिए । कुछ अलग लिखना चाहिए । तभी तो आप एक नारीवादी लेखिका कहलाएंगी !
राजेंद्र यादव ने एक बार "हंस" में आपको मरी हुई गाय कहा था । उसके बाद आपकी शान में कसीदे भी पढ़े थे । उस समय आपने राजेंद्र यादव से इसकी वजह क्यों नहीं पूछी । आपको भी एक लेख लिखना चाहिए था और राजेंद्र यादव से पूछना चाहिए था , " इसकी खास वजह है क्या ?" लेकिन नहीं । आपने नहीं पूछा । पूछती भी कैसे ? उस लेख में केवल आपकी बड़ाई हीं बड़ाई थी । बड़ाई सबको अच्छी लगती है । आपको भी लगी होगी । मन्नू भंडारी ने एक बार लिखा था कि आपको कथा लिखने की समझ विल्कुल नहीं थी । आपने अपना पहला उपन्यास मन्नू जी को हीं दिखाया था । मन्नू ने कोई टिप्पणी नहीं की थी । क्योंकि उसमें टिप्पणी करने जैसा कुछ था हीं नहीं । मन्नू भण्डारी आपको हताश भी नहीं करना चाहती थीं । इसलिए कोई टिप्पणी नहीं की थी । राजेंद्र यादव का साथ मिला तो आप में लेखन कौशल आया । आज आप इस मकाम पर पहुंची हैं तो राजेंद्र यादव की बदौलत । आदमी को कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि वह कौन सी सीढ़ियां चढ़कर इस मकाम पर पहुंचा है । अब आप इस मकाम पर पहुंच कर किसी परम्परा का मजाक उड़ाएं तो यह आपको कत्तई शोभा नहीं देता । आप पूछती हैं - इसकी कोई खास वजह है क्या ? जिस तरह से हर " क्यों" का जवाब नहीं होता , उसी तरह से हर परम्परा की हर बार वजह नहीं होती । यह पीढ़ी दर पीढ़ी बिना वजह के भी चलती रहती है ।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1927343070924903&set=a.1551150981877449.1073741826.100009476861661&type=3
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लेकिन सच्चाई तो यह है कि, आज के पूंजीवादी युग में जबकि 'पूंजी' की ही पूजा है बाजारवाद (उद्योगपति/ व्यापारी वर्ग ) ब्राह्मणवाद (पुरोहित वर्ग ) के सहयोग से जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ रहा है। जब भी सच्चाई को सामने लाने का प्रयास किया जाता है यह गठजोड़ उसे हर तरीके से दबाने - कुचलने का प्रयास करता है।  
(विजय राजबली माथुर )

देखिये प्रमाण : 

Thursday, 26 October 2017

गिरिजा देवी का जीवन सुखमय था : विनोद दुआ / " शादी के बाद का जीवन बहुत त्रासद रहा था । " : अभिषेक श्रीवास्तव

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 वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ साहब और  ठुमरी गायिका विद्या राव जी का कहना है कि, गिरिजा देवी का जीवन सुखमय था। वहीं बनारस से संबन्धित वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव साहब का कहना है कि, बेगम अख्तर और गिरिजा देवी " शादी के बाद दोनों का जीवन बहुत त्रासद रहा था । "





    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Tuesday, 24 October 2017

क्यों लायी वसुंधरा सरकार ये अध्यादेश : पर्दे के पीछे की कहानी ------ हिमा अग्रवाल

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 Hima Agrawal
16 hrs
क्यों लायी वसुंधरा सरकार ये अध्यादेश, आईये जानें पर्दे के पीछे की कहानी।

साभार:-- वकील #पूनम_चन्द_भंडारी

खो नागोरियन 【 आगरा रोड़】 मे 200 बीघा #ईकोलोजिकल भूमि को जेडीए ने #आवासीय मे बदल दिया था जिसके विरूद्ध यशवंत शर्मा ने जनहित याचिका लगायी थी उस पर हाईकोर्ट ने 2005 मे आदेश दिया कि भविष्य मे ईकोलोजिकल भूमि का भू-उपयोग नहीं बदला जावे लेकिन इस आदेश की धज्जियाँ उड़ाते हुए 2006 मे जेडीए ने मिलीभगत करके 1222.93 हेक्टेयर भूमि का उपान्तरण ईकोलोजिकल से आवासीय व मिश्रित भू उपयोग कर दिया ..... क्योंकि ये ज़मीन ज़्यादातर IAS-IPS ने ख़रीद रखी थी जिनमें --

डी.बी.गुप्ता,
वीनू गुप्ता, 
दिनेश कुमार गोयल, 
मधुलिका गोयल, 
सुनील अरोड़ा, 
रीतू अरोड़ा, 
सत्यप्रिय गुप्ता, 
प्रियदर्शी ठाकुर , 
ईश्वर चन्द श्रीवास्तव , 
अलका काला, 
पुरूषोत्तम अग्रवाल, 
डाक्टर लोकेश गुप्ता, 
ऊषाशर्मा, 
एम के खन्ना, 
केएस गलूणडिया,
चित्रा चोपड़ा, 
पवन चोपड़ा 
अशोक शेखर , 
संदीप कुमार बैरवा वग़ैरह हैं !


इतना ही नहीं इन अधिकारियों ने जेडीए से इनके आसपास की ज़मीनों को सड़के बनाने के लिए अधिग्रहण करवा दिया ताकि इनकी ज़मीनों के आगे 160 फ़ीट चौड़ी सड़के बन जाएँ । 21.01.017 को जोधपुर हाईकोर्ट ने मास्टर प्लान याचिका मे आदेश पारित किया और इस 1222 हैक्टेयर ज़मीन का रिकोर्ड मँगवाया लेकिन जेडीए ने कोर्ट को गुमराह करने के लिए उपांतरण का रिकोर्ड ही पेश किया लेकिन वो रिकार्ड नहीं पेश किया जिसके द्वारा उपांतरण किया गया था और न्यायालय मे कहा कि इसके अलावा कोई रिकोर्ड नहीं है हमने ज़बर्दस्त एतराज़ किया और हाईकोर्ट ने फटकार लगायी तो जेडीए ने रिकोर्ड पेश किया तब पोल खुली कि मुख्य नगर नियोजक ने ईकोलोजिकल से भूउपयोग बदलने से इंकार किया था लेकिन इन अधिकारियों ने मिलिभगत करके भू-उपयोग परिवर्तन करा लिया और कोड़ियों की ज़मीन करोड़ों रूपए की होगयी जिसमें मोहन लाल गुप्ता एम एल ए और अशोक परनामी एमएलए वग़ैरह भी शामिल हैं हमने याचिका मे सारे दस्तावेज़ व जमाबंदियां भी पेश की थी हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा थी क्या कार्यवाही करेगी और ये जानकारी मिलने के बाद हम भी रिपोर्ट दर्ज करने की कार्यवाही कर रहे थे कि सरकार इनको बचाने के लिए ये ordinance लेकर आगयी जो असंवैधानिक है। इसके अलावा हम हाईकोर्ट से बारबार कह रहे थे कि जेडीए योजनाओं का नियमन बिना ज़ोनल प्लान बनाए कर रहा है जो अवैध है हाईकोर्ट ने मना किया लेकिन नियमन लगातार जारी रहा मैंने अवमानना याचिका 02 जून को लगायी तो सरकार एवं अधिकारी समझ गए कि वे जेल जा सकते हैं तो सरकार ये ordinance लायी ताकि अधिकारियों को बचाया जा सके।और इनके ख़िलाफ़ FIR भी दर्ज नहीं हो सके।
साभार : 
https://www.facebook.com/hima.cool.25/posts/2049541525278126

संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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Monday, 23 October 2017

हमारे गणतन्त्र के लिए अत्यंत खतरनाक स्थिति ------ उर्मिलेश

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  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Wednesday, 18 October 2017

प्रणब मुखर्जी कहते हैं ' ए एम यू राष्ट्रवाद का सबसे सही उदाहरण है

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उच्च शिक्षा संस्थानों में मौलिक अनुसंधानो  को महत्व न देना पिछड़ने का कारण है  : 


https://www.facebook.com/photo.php?fbid=465023307231342&set=a.250610915339250.1073741828.100011710314174&type=3












  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Saturday, 14 October 2017

' चित भी मेरी : पट भी मेरी ' संघी नीति को नहीं समझ कर विपक्ष अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी चला रहा है ------ विजय राजबली माथुर

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Arvind Raj Swarup Cpi
16 hrs
हिंदू राष्ट्रवादी सम्पादक हरिशंकर व्यास ने अपने अख़बार ‘नया इंडिया’ में आज लिखा है -

“ढाई लोगों के वामन अवतार ने ढाई कदम में पूरे भारत को माप अपनी ढाई गज की जो दुनिया बना ली है, उसमें अंबानी, अडानी, बिड़ला, जैन, अग्रवाल, गुप्ता याकि वे धनपति और बड़े मीडिया मालिक जरूर मतलब रखते हैं, जिनकी दुनिया क्रोनी पूंजीवाद से रंगीन है और जो अपने रंगों की हाकिम के कहे अनुसार उठक-बैठक कराते रहते हैं।

“आज का अंधेरा हम सवा सौ करोड़ लोगों की बीमारी की असलियत लिए हुए है। ढाई लोगों के वामन अवतार ने लोकतंत्र को जैसे नचाया है, रौंदा है, मीडिया को गुलाम बना उसकी विश्वसनीयता को जैसे बरबाद किया है - वह कई मायनों में पूरे समाज, सभी संस्थाओं की बरबादी का प्रतिनिधि भी है। तभी तो यह नौबत आई जो सुप्रीम कोर्ट के जजों को कहना पड़ा कि यह न कहा करें कि फलां जज सरकारपरस्त है और फलां नहीं!

“अदालत हो, एनजीओ हो, मीडिया हो, कारोबार हो, भाजपा हो, भाजपा का मार्गदर्शक मंडल हो, संघ परिवार हो या विपक्ष सबका अस्तित्व ढाई लोगों के ढाई कदमों वाले ‘न्यू इंडिया’ के तले बंधक है!

“आडवाणी, जोशी जैसे चेहरे रोते हुए तो मीडिया रेंगता हुआ। आडवाणी ने इमरजेंसी में मीडिया पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि इंदिरा गांधी ने झुकने के लिए कहा था मगर आप रेंगने लगे! वहीं आडवाणी आज खुद के, खुद की बनाई पार्टी और संघ परिवार या पूरे देश के रेंगने से भी अधिक बुरी दशा के बावजूद ऊफ तक नहीं निकाल पा रहे हैं।

“सोचें, क्या हाल है! हिंदू और गर्व से कहो हम हिंदू हैं (याद है आडवाणी का वह वक्त), उसका राष्ट्रवाद इतना हिजड़ा होगा यह अपन ने सपने में नहीं सोचा था। और यह मेरा निचोड़ है जो 40 साल से हिंदू की बात करता रहा है! मैं हिंदू राष्ट्रवादी रहा हूं। इसमें मैं ‘नया इंडिया’ का वह ख्याल लिए हुए था कि यदि लोकतंत्र ने लिबरल, सेकुलर नेहरूवादी धारा को मौका दिया है तो हिंदू हित की बात, दक्षिणपंथ, मुसलमान को धर्म के दड़बे से बाहर निकाल उन्हें आधुनिक बनवाने की धारा का भी सत्ता में स्थान बनना चाहिए।

“यह सब सोचते हुए कतई कल्पना नहीं की थी कि इससे नया इंडिया की बजाय मोदी इंडिया बनेगा और कथित हिंदू राष्ट्रवादी सवा सौ करोड़ लोगों की बुद्धि, पेट, स्वाभिमान, स्वतंत्रता, सामाजिक आर्थिक सुरक्षा को तुगलकी, भस्मासुरी प्रयोगशाला से गुलामी, खौफ के उस दौर में फिर हिंदुओं को पहुंचा देगा, जिससे 14 सौ काल की गुलामी के डीएनए जिंदा हो उठें। आडवाणी भी रोते हुए दिखलाई दें।

“आप सोच नहीं सकते हैं कि नरेंद्र मोदी, और उनके प्रधानमंत्री दफ्तर ने साढ़े तीन सालों में मीडिया को मारने, खत्म करने के लिए दिन-रात कैसे-कैसे उपाय किए हैं। एक-एक खबर को मॉनिटर करते हैं। मालिकों को बुला कर हड़काते हैं। धमकियां देते हैं।

“जैसे गली का दादा अपनी दादागिरी, तूती बनवाने के लिए दस तरह की तिकड़में सोचता है, उसी अंदाज में नरेंद्र मोदी और उनके प्रधानमंत्री दफ्तर ने भारत सरकार की विज्ञापन एजेंसी डीएवीपी के जरिए हर अखबार को परेशान किया ताकि खत्म हों या समर्पण हो। सैकड़ों टीवी चैनलों, अखबारों की इम्पैनलिंग बंद करवाई।

“इधर से नहीं तो उधर से और उधर से नहीं तो इधर के दस तरह के प्रपंचों में छोटे-छोटे प्रकाशकों-संपादकों पर यह साबित करने का शिकंजा कसा कि तुम लोग चोर हो। इसलिए तुम लोगों को जीने का अधिकार नहीं और यदि जिंदा रहना है तो बोलो जय हो मोदी! जय हो अमित शाह! जय हो अरूण जेटली!


“और इस बात पर सिर्फ मीडिया के संदर्भ में ही न विचार करें! लोकतंत्र की तमाम संस्थाओं को, लोगों को कथित ‘न्यू इंडिया’ में ऐसे ही हैंडल किया जा रहा है। ढाई लोगों की सत्ता के चश्मे में आडवाणी हों या हरिशंकर व्यास या सिर्दाथ वरदराजन, भाजपा का कोई मुख्यमंत्री या मोहन भागवत तक सब इसलिए एक जैसे हैं कि सभी ‘न्यू इंडिया’ की प्रयोगशाला में महज पात्र हैं, जिन्हें भेड़, चूहे के अलग-अलग परीक्षणों से ‘न्यू इंडिया’ लायक बनाना है। ...”
https://www.facebook.com/arvindrajswarup.cpi/posts/1984164238468371




वरुण गांधी (भाजपा सांसद ), हरिशंकर व्यास ( जिनका  लेख अरविंद राज स्वरूप CPI के वरिष्ठ नेता द्वारा उद्धृत किया गया है )  और  हज़ारे साहब के साक्षात्कार पर ध्यान दें  तो स्पष्ट होता है कि , संघ की पसंद के पी एम मोदी  की सरकार के विरुद्ध अभियान में भी अग्रणी संघ के नेता और विचारक ही हैं। यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और शत्रुघन सिन्हा  आदि नेताओं व विचारकों के कदम भी इसी कड़ी का हिस्सा हैं। विपक्ष के जो नेता या विचारक मुखर होते हैं उनके विरुद्ध क्रिमिनल  व सिविल केस चलाये जाते हैं या उनकी हत्या करा दी जाती है। यह है ' चित भी मेरी : पट भी मेरी ' संघी नीति जिसे वर्तमान विपक्ष के नेता और दल नहीं समझ रहे हैं  जो कि, भारतीय राजनीति से उनके सफाये की योजना है। 
संघ ने सत्ता ( शासन और प्रशासन दोनों ) पर  मजबूत पकड़ बनाने के बाद  अब विपक्ष पर भी पकड़ बनाना शुरू कर दिया है जिससे मोदी सरकार के पतन  की दशा में बनने वाली सरकार में भी संघ की मजबूत पकड़ बरकरार रहे। 
यदि वर्तमान विपक्ष ने आगामी लोकसभा चुनाव कांग्रेस + CPM समेत सम्पूर्ण वामपंथ + ममता बनर्जी समेत समस्त क्षेत्रीय दलों ने एक साथ न लड़ कर अलग - अलग लड़ा या आ आ पा (AAP) को अपने साथ जोड़ा तो तय है कि, बनने वाली सरकार  पर भी संघ का ही नियंत्रण रहेगा। 
------ विजय राजबली माथुर 





Monday, 9 October 2017

विनोद दुआ के अनुसार ट्रोल्स अच्छे हैं लेकिन एजुकेटेड इललिटरेट्स का क्या किया जाये ?

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विनोद पूर्ण परिचित शैली में विनोद दुआ जी ने ' ट्रोल्स ' को अच्छा बताते हुये उनकी उपेक्षा करना ही इस समस्या का समाधान बताया है। लेकिन फेसबुक पर तमाम एजुकेटेड इल लिटरेट्स भी सक्रिय हैं जो सत्ताधीशों के हितार्थ समाज और जनता को गुमराह करने की हरकतें करते रहते हैं उनकी भी उपेक्षा कर देने से उनके हौंसले बुलंद रहेंगे और समाज व जनता वास्तविक तथ्यों से अनभिज्ञ ही रहेगी। 







'भागवत पुराण ' और उसके रचियता संबन्धित जब उत्तर लिख कर पोस्ट करना चाहा तब तक इन साहब ने स्क्रीन शाट पर आपत्ति जता कर फेसबुक पर ब्लाक कर दिया लिहाजा उनको काउंटर ब्लाक करने के बाद उत्तर इस ब्लाग - पोस्ट के माध्यम से देने का विकल्प ही बचा था। 


वरिष्ठ पत्रकार और प्रगतिशील - कम्युनिस्ट विचारों का वाहक होने का दावा करने वाले यह साहब दिमागी तौर पर संकीर्ण पोंगापंथी नज़र आते हैं तभी तो ' भागवत ' पुराण का समर्थन करते हैं और उसको वैदिक ग्रंथ बताते हैं। 1857 की क्रांति में सक्रिय भाग लेने वाले स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 में 'आर्यसमाज ' की स्थापना 'कृण्वंतोंविश्वमार्यम ' अर्थात सम्पूर्ण विश्व को 'आर्ष ' = श्रेष्ठ बनाने हेतु की थी। सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित 'सत्यार्थ प्रकाश ' के पृष्ठ : 314 - 315 पर  एकादशसमुल्लास : में भागवत पुराण में वर्णित अवैज्ञानिक, अतार्किक बातों के संबंध में स्वामी दयानन्द सरस्वती के विचार दिये गए हैं, यथा ------ 
" वाहरे  वाह ! भागवत के बनाने वाले लालभुजक्कड़ ! क्या कहना ! तुझको ऐसी ऐसी मिथ्या बातें लिखने में तनिक भी लज्जा और शर्म न आई, निपट अंधा ही बन गया ! ........... शोक है इन लोगों की रची हुई इस महा असंभव लीला पर , जिसने संसार को अभी तक  भ्रमा रखा है। भला इन महा झूठ बातों को वे अंधे पोप और बाहर भीतर की फूटी आँखों वाले उनके चेले सुनते और मानते हैं। बड़े ही आश्चर्य की बात है कि, ये मनुष्य हैं या अन्य कोई ! ! !  इन भागवतादि  पुराणों  के बनाने वाले जन्मते ही ( वा ) क्यों नहीं गर्भ  ही में  नष्ट  हो गए ? वा जन्मते समय मर क्यों न गए  ? क्योंकि इन पापों से बचते तो आर्यावर्त्त देश दुखों से बच जाता । " 

एजुकेटेड इललिटरेट्  उक्त तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार महोदय को सही बात न जानना होता है न ही समझना उनको तो बस झूठ का प्रचार करके सत्ताधीशों का बचाव करना होता है। स्क्रीन शाट लेने का अभिप्राय  यह होता है कि, विचार ज्यों के त्यों  सार्वजनिक हों उनमें कोई मिलावट न हो पाये। अब जब स्वमभू  विद्वान साहब स्क्रीन शाट लेने का विरोध करते हैं तो सिद्ध होता है कि, उनके विचारों में उनके मन में छल - कपट छिपा हुआ था और वह अपनी पोस्ट को संशोधित  कर या हटा सकते थे जो कि, स्क्रीन शाट लेने से उनकी हेराफेरी  को उजागर कर देगा। 
उनके ही शहर  मुंबई  निवासी  गण मान्य  नेता  द्वारा वरिष्ठ पत्रकार रोहिणी सिंह  की फेसबुक पोस्ट का स्क्रीन शाट प्रयोग करना गलत कैसे हो सकता है ? फिर इन झूठेरे  विद्वान को आपत्ति का आशय समझने में किसी को भी गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। : 

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09-10-2017








Sunday, 8 October 2017

वेद जाति,संप्रदाय,देश,काल, लिंग - भेद से परे सम्पूर्ण विश्व के समस्त मानवों के कल्याण की बात करते हैं ------ विजय राजबली माथुर


वेदों मे निहित यह समानता की भावना ही  वस्तुतः साम्यवाद का  भी मूलाधार  है ।   ............... 
जबकि वेदों मे 'नर' और 'नारी' की स्थिति समान है। वैदिक काल मे पुरुषों और स्त्रियॉं दोनों का ही यज्ञोपवीत संस्कार होता था। कालीदास ने महाश्वेता द्वारा 'जनेऊ' धारण करने का उल्लेख किया है।  नर और नारी समान थे। 


https://www.facebook.com/prakash.sinha.942/posts/821903144665645



विदेशी शासकों की चापलूसी मे 'कुरान' की तर्ज पर 'पुराणों' की संरचना करने वाले छली विद्वानों ने 'वैदिक मत'को तोड़-मरोड़ कर तहस-नहस कर डाला है। इनही के प्रेरणा स्त्रोत हैं शंकराचार्य। जबकि वेदों मे 'नर' और 'नारी' की स्थिति समान है। वैदिक काल मे पुरुषों और स्त्रियॉं दोनों का ही यज्ञोपवीत संस्कार होता था। कालीदास ने महाश्वेता द्वारा 'जनेऊ' धारण करने का उल्लेख किया है।  नर और नारी समान थे। पौराणिक हिंदुओं ने नारी-स्त्री-महिला को दोयम दर्जे का नागरिक बना डाला है। अपाला,घोशा,मैत्रेयी,गार्गी आदि अनेकों विदुषी महिलाओं का स्थान वैदिक काल मे पुरुष विद्वानों से  कम न था। अतः वेदों मे नारी की निंदा की बात ढूँढना हिंदुओं के दोषों को ढकना है। वस्तुतः 'हिन्दू' कोई धर्म है ही नही।बौद्धो के विरुद्ध क्रूर हिंसा करने वालों ,उन्हें उजाड़ने वालों,उनके मठों एवं विहारों को जलाने वाले लोगों को 'हिंसा देने' के कारण बौद्धों द्वारा 'हिन्दू' कहा गया था। फिर विदेशी आक्रांताओं ने एक भद्दी तथा गंदी 'गाली' के रूप मे यहाँ के लोगों को 'हिन्दू' कहा।साम्राज्यवादियों के एजेंट खुद को 'गर्व से हिन्दू' कहते हैं। 


' ब्रह्मसूत्रेण पवित्रीकृतकायाम् ' यह लिखा है कादम्बरी में सातवीं शताब्दी में आचार्य बाणभट्ट ने.अर्थात  महाश्वेता ने जनेऊ पहन रखा है, तब तक लड़कियों का भी उपनयन होता था.(अब तो सबका उपहास अवैज्ञानिक कह कर उड़ाया जाता है).श्रावणी पूर्णिमा अर्थात रक्षा बंधन पर उपनयन क़े बाद नया विद्यारम्भ होता था.लेकिन कालांतर में पोंगा-पंडितों ने अपने निजी स्वार्थ में इस रक्षा-सूत्र-बंधन  अर्थात जनेऊ धारण करने के पावन-पर्व को राखी बांधने-बँधवाने तथा बहन-भाई के बीच सीमित कर दिया .
 उपनयन अर्थात जनेऊ के लाभों से साधारण जनता को छल पूर्वक वंचित कर दिया गया है.
 उपनयन अर्थात जनेऊ क़े तीन धागे तीन महत्वपूर्ण बातों क़े द्योतक हैं-
१ .-माता,पिता,तथा गुरु का ऋण उतारने  की प्रेरणा.
२ .-अविद्या,अन्याय ,आभाव दूर करने की जीवन में प्रेरणा.
३ .-हार्ट,हार्निया,हाईड्रोसिल (ह्रदय,आंत्र और अंडकोष -गर्भाशय )संबंधी नसों का नियंत्रण ;इसी हेतु कान पर शौच एवं मूत्र विसर्जन क़े वक्त धागों को लपेटने का विधान था.आज क़े तथा कथित पश्चिम समर्थक विज्ञानी इसे ढोंग, टोटका कहते हैं क्या वाकई ठीक कहते हैं?
विश्वास-सत्य द्वारा परखा  गया तथ्य 
अविश्वास-सत्य को स्वीकार न  करना 
 अंध-विश्वास--विश्वास अथवा अविश्वास पर बिना सोचे कायम रहना 
विज्ञान-किसी भी विषय क़े नियमबद्ध एवं क्रमबद्ध अध्ययन को विज्ञान कहते हैं.
इस प्रकार जो लोग साईंस्दा होने क़े भ्रम में भारतीय वैज्ञानिक तथ्यों को झुठला रहे हैं वे खुद ही घोर अन्धविश्वासी हैं.वे तो प्रयोग शाळा में बीकर आदि में केवल भौतिक पदार्थों क़े सत्यापन को ही विज्ञान मानते हैं.यह संसार स्वंय ही एक प्रयोगशाला है और यहाँ निरन्तर परीक्षाएं चल रहीं हैं.परमात्मा एक निरीक्षक (इन्विजीलेटर)क़े रूप में देखते हुए भी नहीं टोकता,परन्तु एक परीक्षक (एक्जामिनर)क़े रूप में जीवन का मूल्यांकन करके परिणाम देता है.इस तथ्य को विज्ञानी होने का दम्भ भरने वाले नहीं मानते.यही समस्या है.

लगभग सभी बाम-पंथी विद्वान सबसे बड़ी गलती यही करते हैं कि हिन्दू को धर्म मान लेते हैं फिर सीधे-सीधे धर्म की खिलाफत करने लगते हैं। वस्तुतः 'धर्म'=शरीर को धारण करने हेतु जो आवश्यक है जैसे-सत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह,और ब्रह्मचर्य।  इंनका  विरोध करने को आप कह रहे हैं जब आप धर्म का विरोध करते हैं तो।  
अतः 'धर्म' का विरोध न करके  केवल अधार्मिक और मनसा-वाचा- कर्मणा 'हिंसा देने वाले'=हिंदुओं का ही प्रबल विरोध करना चाहिए। 



वेद जाति,संप्रदाय,देश,काल, लिंग - भेद से परे सम्पूर्ण विश्व के समस्त मानवों के कल्याण की बात करते हैं। 
उदाहरण के रूप मे 'ऋग्वेद' के कुछ मंत्रों को देखें -

'संगच्छ्ध्व्म .....उपासते'=
प्रेम से मिल कर चलें बोलें सभी ज्ञानी बनें।
पूर्वजों की भांति हम कर्तव्य के मानी बनें। ।


'समानी मंत्र : ....... हविषा जुहोमी ' =


हों विचार समान सबके चित्त मन सब एक हों।
ज्ञान पाते हैं बराबर भोग्य पा सब नेक हों। ।


'समानी व आकूति....... सुसाहसती'=


हों सभी के दिल तथा संकल्प अविरोधी सदा।
मन भरे हों प्रेम से जिससे बढ़े सुख सम्पदा। ।


'सर्वे भवनतु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पशयन्तु मा कश्चिद दुख भाग भवेत। । '=


सबका भला करो भगवान सब पर दया करो भगवान ।
सब पर कृपा करो भगवान ,सब का सब विधि हो कल्याण। ।
हे ईश सब सुखी हों कोई  न हो दुखारी।
सब हों निरोग भगवनधन-धान्यके भण्डारी। ।
सब भद्रभाव देखें,सन्मार्ग के पथिक हों।
दुखिया न कोई होवे सृष्टि मे प्राण धारी। ।   


ऋग्वेद न केवल अखिल विश्व की मानवता की भलाई चाहता है बल्कि समस्त जीवधारियों/प्रांणधारियों के कल्याण की कामना करता है। वेदों मे निहित यह समानता की भावना ही  वस्तुतः साम्यवाद का  भी मूलाधार  है ।


उर्दू भारतीय भाषा और हिन्दी की पूरक है

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उर्दू  भाषा का जन्म भारत में ही हुआ है और यह यहाँ के जीवन में खूब रस - बस चुकी है। लखनऊ में जन्म होने और नौ वर्ष की उम्र व कक्षा चार तक की पढ़ाई वहीं करने के कारण और घर में जो बोल चाल रही उसके कारण मुझे यह फर्क ही नहीं समझ आया कि, हम लोग जो बोलते हैं वह हिन्दी- उर्दू मिश्रित बोली है। इसका पता लखनऊ छोडने के बीस वर्ष बाद 'करगिल ' में 1981 में तब चला जब होटल मुगल शेरटन, आगरा से डेपुटेशन पर वहाँ ' होटल हाई लैण्ड्स ' गए थे। एक रोज़ मेनेजर साहब समेत सभी साथी सुबह टहलते - टहलते टी बी हास्पिटल तक पहुँच गए थे। वहाँ के सी एम ओ साहब ने हम लोगों से परिचय जानने के लिहाज से बातचीत की। मुझसे परिचय जानने के बाद उनकी प्रतिक्रिया थी कि, आप तो आगरा के लगते नहीं , आप तो लखनऊ के लगते हैं। मैंने उनसे पूछा कि, डॉ साहब मैं हूँ तो लखनऊ का ही लेकिन आपने कैसे पहचाना ? तो श्रीनगर निवासी उन डॉ साहब का कहना था बाकी सबसे अलग आपकी ज़बान में एक श्रीनगी  है जो केवल लखनऊ में ही पाई जाती है। 
अपनी बचपन से सीखी बोलचाल की भाषा के ही कारण लखनऊ छोडने के बीस वर्ष बाद भी लखनवी के रूप में पहचाना गया तो इसका कारण मैनेजर साहब व साथियों की निगाह में कारण मेरे हिन्दी का उर्दू मिश्रित होना था जबकि अन्य की हिन्दी बृज भाषा या पंजाबी मिश्रित थी। अलग से उर्दू लिपि, भाषा या साहित्य न पढ़ने के बावजूद अगर हमारी हिन्दी को उर्दू मिश्रित समझा गया तो मेरे लिए उर्दू अलग भाषा कैसे हो सकती है ? 
अतः नभाटा का उपरोक्त लेख हो या द वायर में नूपुर शर्मा जी के कार्यक्रम हम लोग पसंद के साथ देखते - पढ़ते हैं। प्रस्तुत वीडियो में नूपुर शर्मा जी ने उर्दू भाषा के कलाकार टाम आल्टर   साहब को जो  श्रद्धांजली अर्पित की है उससे काफी कुछ सीखने की प्रेरणा मिलती है। : 






  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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Saturday, 7 October 2017

बी जे पी को विरोध नहीं चाहिए --- शरद यादव / वि​कल्प न होने की बात डिक्टेटरशिप है --- विनोद दुआ

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जहां मोदी समर्थक पत्रकार विपक्ष का नेता न होने की बात कह कर सरकार की खामियों को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं वहीं वास्तविक पत्रकारिता धर्म का निर्वहन करने वाले विनोद दुआ जी का अभिमत है कि, विकल्प हीनता की बात लोकतान्त्रिक नहीं डिक्टेटरशिप की बात है। 




संकलन - विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Friday, 6 October 2017

जनता दीदउ के झांसे में न फंसे ------

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प्रोफेसर बलराज मधोक  ( DAV कालेज , जम्मू )  द्वारा आर एस एस की दीक्षा में दी जाने वाली दक्षिणा को प्रश्नांकित करने के कारण जब  हटाया गया तब पंडित दीन दयाल उपाध्याय को जनसंघ का अध्यक्ष बनाया गया था। विचारधारा के बारे में उपरोक्त वीडियोज़ में विस्तृत चर्चा है। परंतु वह निर्विवाद रूप से एक ईमानदार व सादगी पसंद व्यक्ति थे। लेकिन 1967 में बनी संविद ( ULP ) सरकारों में शामिल जनसंघी मंत्री भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुये थे। उनके संबंध में एक जांच रिपोर्ट लेकर उस पर विचार करने हेतु जब वह 1968 में  रेल यात्रा कर रहे थे ऐसे भ्रष्ट मंत्रियों की योजना के अंतर्गत उनकी हत्या कर मुगल सराय के रेलवे यार्ड में फेंक दिया गया था और  42 वर्षीय अटल बिहारी बाजपेयी को उनके स्थान पर नियुक्त कर दिया गया था। 
अब जब उत्तर प्रदेश और केंद्र दोनों जगह भाजपा ( पूर्ववर्ती जनसंघ ) की  पूर्ण बहुमत की सरकारें हैं उनकी जघन्य हत्याकांड की जांच करके दोषियों को दंड देने के बजाए उनको महिमामंडित करने के सरकारी उपाय किए जा रहे हैं जिसके लिए सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ - साथ सरकारी कोष ( जनता से वसूले गए कर ) का भी दुरुपयोग किया जा रहा है। न ही विपक्षी दल जनता को जागरूक कर रहे हैं और न ही खुद कोई आवाज़ उठा रहे हैं। प्रबुद्ध नागरिकों का कर्तव्य है कि, वे शासन - सत्ता के इस आलोकतांत्रिक दुरुपयोग के विरुद्ध आवाज़ उठाएँ। महिमामंडन करने के बजाए उनकी हत्या की जांच कर आज  50 वर्ष बाद जीवित बचे अपराधियों को कडा दंड दिया जाये। 





  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Thursday, 5 October 2017

वाल्मीकि जयंती पर ------

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महात्मा गांधी जी के जन्मदिवस को  अंतर्राष्ट्रीय जगत में ' अहिंसा दिवस ' के रूप में मनाया जाता  है जो कि, एक आदर्श स्तुत्य कदम है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि, उनके अपने देश में सरकार उसे नहीं मनाती है क्योंकि उसका अहिंसा पर नहीं हिंसा पर विश्वास है इसलिए सरकार ने इसे स्वच्छता दिवस के रूप में घोषित करके गांधी जी के अहिंसा के सिद्धान्त को झाड़ू से बुहार देने की गुहार लगाई है । सरकार की यह झाड़ू यह भी संकेत देती है कि, कमल के मुरझाने पर उसकी जगह झाड़ू वाली पार्टी सत्ता पर काबिज होगी जोकि उसके मंसूबों को बखूबी पूरा करती रहेगी। 
गांधी जी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों में विश्वास रखने वाले देश के प्रबुद्ध लोगों का कर्तव्य है कि वे जनता को जागरूक करके जनतंत्र की रक्षा के लिए आगे आयें ------ आज वाल्मीकि जयंती है । महर्षि वाल्मीकि को सफाई कर्मियों के समुदाय तक सीमित करके रख दिया गया है। 
मोदी की भाजपा सरकार 'स्वच्छ भारत ' अभियान महात्मा गांधी के नाम पर चलाती है परंतु महर्षि वाल्मीकि के नाम पर बनी जाति के सफाई कर्मियों  की दुर्दशा को सुधारने की उसकी कोई इच्छा नहीं है। 
सफाई कर्मियों की सुरक्षा और विकास के बगैर  स्वच्छता अभियान न केवल बेमानी है बल्कि इस समुदाय के लिए प्रताड़णा समान है । विस्तृत एवं सराहनीय परिचर्चा इस वीडियो में देखी जा सकती है : 

   

संकलन- विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Tuesday, 3 October 2017

जर्जर होते जनतंत्र के चौथे स्तम्भ को बचाने की मुहिम

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कभी अकबर इलाहाबादी  ने  कहा था : 
'' खींचो न तीर कमानों को न तलवार निकालो। 
   जब तोप मुक़ाबिल हो  तब अखबार निकालो। । "
रेलवे की रु 50 /- मासिक की नौकरी छोड़ कर इलाहाबाद में 'सरस्वती ' के रु 20/- मासिक पर  संपादक बनने वाले आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी का कथन था कि, साहित्य में वह शक्ति छिपी होती है जो तोप, तलवार और बम के गोलों में भी नहीं पाई जाती । 
अखबारों के संपादक साहित्यकार लोग ही होते थे जो न केवल खबरों को पाठकों तक पहुंचाते थे बल्कि वे जनता को सतत जागरूक भी करते थे और स्वतन्त्रता आंदोलन में सहयोग करने हेतु प्रेरित करते थे। 
समय समय पर विदेशी सत्ता ने अखबारों को नियंत्रित करने के जो प्रयास किए और आज़ादी के बाद भी 'प्रेस ' पर जो हमले हुये उनका विस्तृत वर्णन " भारत में पत्रकारिता पर हमला कोई नई बात नहीं " वीडियो में किया गया है। 
2014 के बाद गठित मोदी नीत भाजपा सरकार के शासन में जन सरोकार रखने वाले पत्रकारों की हत्या, चरित्र हनन, धमकी, मानहानी मुकदमे आदि की बाढ़ आ गई है। गांधी जयंती पर दिल्ली  सहित देश के विभिन्न प्रेस क्लबों पर पत्रकारों ने मानव श्रंखला बना कर विरोध प्रदर्शन किया। पत्रकारों की चर्चा में भी इस समस्या पर विमर्श हुआ । द वायर हिन्दी द्वारा इस दिशा में सराहनीय कार्य सम्पन्न हुये। लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ 'पत्रकारिता ' की स्वतन्त्रता व पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना लोक अर्थात जनता का भी कर्तव्य बनता है अतः उसे आगे आ कर सरकार पर दबाव बनाना चाहिए कि, अपराधी तत्वों को नियंत्रित व दंडित करे। 


 


संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश