Monday, 30 January 2017

बापू जन जन के हृदय में आज भी जीवित हैं ------ रजनीश कुमार श्रीवास्तव









#बापू का पुण्यतिथि पर नमन#
(2 अक्टूबर 1869 जन्म-- 30 जनवरी 1948 देहावसान)
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या पर लार्ड माउंट बेटन की प्रतिक्रिया, " ब्रिटिश हुकूमत अपने काल पर्यन्त कलंक से बच गयी।आपकी(गाँधी) हत्या आपके देश,आपके राज्य,आपके लोगों ने की है।"......"यदि इतिहास आपका निष्पक्ष मूल्यांकन कर सका तो वो आपको ईसा और बुद्ध की कोटि में रखेगा।कोई कौम इतना कृत्ध्न और खुदगर्ज कैसे हो सकती है? जो अपने पिता तुल्य मार्गदर्शक और स्वतन्त्रता के अथक सेनानी की छाती छलनी कर दे।ये तो नृशंस बर्बर नरभक्षी कबीलों में भी नहीं होता है और उस पर निर्लज्जता ये कि हमें इस कृत्य का अफसोस तक नहीं।"
रोमां रोलां का कथन है कि ,"महात्मा गाँधी वो शख्सियत थे, जिन्होंने तीस करोड़ भारतीयों को जगा दिया,कँपा दिया ब्रिटिश साम्राज्य को और आरम्भ किया मानव राजनीति का एक ऐसा सशक्त आन्दोलन,जिसकी तुलना लगभग दो हजार वर्षों के इतिहास में नहीं है।"
मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि,"ईसामसीह ने हमें विचार दिए,लेकिन गाँधी जी ने उन्हें क्रियान्वित करने का मार्ग दिखाया।" 
संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन सेकेट्री ऑफ स्टेट सर जान मार्शल ने कहा था कि,"महात्मा गाँधी सारी मानव जाति की अन्तरात्मा की आवाज थे।"
सर स्टैफर्ड क्रिप्स ने कहा था कि,"मैं किसी काल के और वास्तव में आधुनिक इतिहास के ऐसे किसी दूसरे व्यक्ति को नहीं जानता,जिसने भौतिक वस्तुओं पर आत्मा की शक्ति को इतने जोरदार और विश्वासपूर्ण तरीके से सिद्ध किया हो।"
लार्ड माउन्ट बेटेन ने कहा था कि,"यदि इतिहास महात्मा गाँधी का निष्पक्ष मुल्याँकन कर सका तो वे आपको ईसा और बुद्ध की कोटि में रखेगा।"
जिसे गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने "महात्मा" की उपाधि से विभूषित किया, जिसे लार्ड माउन्ट बेटेन ने "वन मैन आर्मी की उपाधि दी", जिसे सुभाषचंद्र बोस ने "राष्ट्रपिता" की उपाधि से नवाजा, जिसे समूचे भारत की जनता ने प्यार से "बापू" कह कर आत्मीयता दर्शाई, जिसके लिये राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त ने लिखा,"तुम बोल उठे युग बोल उठा", जिसके लिये अल्बर्ट आइन्सटिन ने कहा कि,"आने वाली पीढ़ियाँ ये विश्वास नहीं कर सकेंगी कि ऐसा हाड़ माँस का निःस्वार्थ मानव अंहिसा एवं मानवता का पुजारी इस पृथ्वी पर अवतरित हुआ था।" ऐसे भारत की आजादी के एक सम्पूर्ण महाकाव्य और अथक स्वतंत्रतता सेनानी महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि पर उनका शत शत नमन।
"आप चले गये इस धरती से विचार आपका जीवित है
नफरत की भीषण आँधी में भी विश्वास आपका जीवित है।"
#शरीर मरता है विचारधारा नहीं#
# बापू जन जन के हृदय में आज भी जीवित हैं।#

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Saturday, 21 January 2017

स्त्री और पुरुष के एक दूसरे के पूरक ------ रजनीश कुमार श्रीवास्तव

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Rajanish Kumar Srivastava

#स्त्री- पुरुष सम्बन्धों पर एक विमर्श।(पूरक या प्रतिद्वंद्वी)
मित्रों नारी विमर्श की जो आधुनिक बयार चली है उसमें ये साबित करने की हड़बड़ी दिखाई देती है कि नारी को हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी मिलनी चाहिए क्योंकि वह किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं है।चाहे वस्त्र धारण का मामला हो,फैशन का विषय हो या आचरण का।बराबरी की यह उत्तेजना कब प्रतिद्वंद्विता में परिवर्तित हो जाती है पता ही नहीं चलता।स्वतंत्रता की ये उत्कट चाहत कब स्वछन्दता की दहलीज लाँघ जाती है पता ही नहीं चलता।समाज कैसे विघटन के कगार पर पहुँच जाता है पता ही नहीं चलता।

दरअसल ऐसा सामाजिक बिखराव इस गलत दृष्टिकोण के कारण होता है कि कायनात ने जिस स्त्री और पुरुष को एक दूसरे को पूर्णता प्रदान करने के लिए बनाया है उसमें प्रकृति के विपरीत प्रतिस्पर्धा करा देने से प्रेम,समर्पण और खुशहाली के बजाए प्रतिस्पर्धा जनित घृणा,द्वेष और बिखराव का जन्म हो जाता है।इससे बचा जाना चाहिए। इसीलिए एक खुशहाल समाज के लिए नारी और पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं प्रतिस्पर्धी तो कतई नहीं। लेकिन पुरूष से ज्यादा समर्पण और सामंजस्य बैठा पाने की अद्वितीय क्षमता के कारण आदर्श समाज के निर्माण में प्रकृति ने नारी को पुरुष के मुकाबले ज्यादा बड़ी भूमिका दी है क्योंकि सृष्टि उसके गर्भ में पलती है।इस विशिष्ट भूमिका के वजह से नारी कहीं ज्यादा महान है और विशिष्ट सम्मान की अधिकारिणी भी। इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए पुरुष प्रधान समाज को भी अपने अंहकार से मुक्त होकर नारी को अपने लिए खुद फैसला लेने का अधिकारी बनाना होगा तो दूसरी तरफ नारी को भी बेहतर समाज के निर्माण के लिए प्रकृति ने जो बड़ी भूमिका प्रदान की है उसे कुशलता पूर्वक निभाने के लिए स्वतंत्रता और स्वछन्दता के अन्तर को समझना होगा।इसलिए यह जरूरी है कि प्रतिस्पर्धी और प्रतिद्वंद्वी बनाने वाली विचारधारा का परित्याग कर प्रकृति के अनुकूल स्त्री और पुरुष के एक दूसरे के पूरक होने की अवधारणा के महत्व को समाज समझ सके।क्या आप मेरे इस विश्लेषण से सहमत हैं।
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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Friday, 20 January 2017

ध्रुवीकरण का नया समीकरण ------ नीरजा चौधरी

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Monday, 16 January 2017

चुनाव की अग्नि परीक्षा ------ शशि शेखर

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Sunday, 15 January 2017

‘बहुमत’ की वैधानिकता का उपयोग एकाधिकारवाद के लिए हो रहा है ---------- - मंजुल भारद्वाज

ये लोकतंत्र का त्रासदी काल है जहाँ ‘बहुमत’ की वैधानिकता का उपयोग एकाधिकारवाद के लिए हो रहा है               -    मंजुल भारद्वाज

दुनिया जिस मोड़ पर खड़ी है वहां लूट को व्यापर और लूट के प्रचारक को ब्रांड एम्बेसडर कहा जाता है यानी जो जितना संसाधनों को बेच सकता है वो उतना बड़ा ब्रांड एम्बेसडर जैसे जो जितना बड़ा पोर्न स्टार वो उतना बड़ा कलाकार ... और जो झूठ के बल पर, फ़रेब और ‘लूट’ के गिरोह यानी ‘पूंजीपतियों’ की कठपुतली बनकर उनका एजेंडा चलाये , मीडिया के माध्यम से निरीह जनता को बहकाए , कालेधन को वापस लाकर हरेक के खाते में15 लाख जमा करने का वादा करे , वोट मिलने के बाद उसे चुनावी जुमला बताये .. याद दिलाने पर नोटबंदी कर, पूरे देश की गरीब जनता को कतार में खड़ा कर, उनको सजा दे... उनको मौत के घाट उतारे और ख़ामोशी को, मजबूरी को ‘जन समर्थन’ समझ कर .. एक तरफा रैलियों में अपनी ही बधाई के गीत गाये ..ऐसे ‘सत्ता लोलुप’ और उनके समर्थकों से आप क्या उम्मीद करते हैं की वो ‘गांधी’ को चरखे से नहीं ‘हटा’ सकता .. बहुत नादान है इस देश के बुद्धिजीवी ... और बहुत नादान है इस देश की जनता ...  उनके ‘सबका साथ , सबका विकास’ जुमले पर विश्वास कर बैठी .. परिणाम सबके सामने हैं ..सिर्फ ‘पूंजीपतियों’ का विकास , बाकी सबका सत्यानाश !
बिक्री और बाज़ार जिसका मापदंड हो उससे ‘वैचारिक’ सात्विकता की क्या उम्मीद, वो तो ‘मुनाफाखोरों’ की धुन पर देश की जनता को ‘विकास’ की चक्की में पीसकर लहूलुहान कर रहा है चाहे वो ‘किसान हो , सरहद पर जवान हो या विश्वविधालय का युवा छात्र’ और मीडिया उसकी हाँ में हाँ मिला रहा है ..हाँ भाई धंधा है ना , विरोध किया तो लाइसेंस कैंसिल हो जाने का डर और सरकारी विज्ञापन नहीं मिलने का खतरा ...
एकाधिकारवाद , विषमता , जातिवाद , धर्मान्धता , अलगाववाद जिस संघ का ‘राष्ट्र’ सूत्र हो उसकी शाखाओं से ऐसे ही ‘शोषक’ पैदा होंगें जो अपनी अस्मिता , देश की धरोहर को बेच कर अपनी ‘राजनैतिक’ जमीन तैयार करेंगें . इनके पास ना ‘ विचार है , ना व्यवहार है , ना चेहरा है , ना चाल है , ना चरित्र’ जो है बस वो छद्म है !
इस छद्म के बल पर ‘बहुमत’ हासिल कर लिया पर ‘जनमानस’ में विश्वसनीयता नहीं ला पाए . उस ‘विश्वसनीयता’ को हासिल करने के लिए ये ‘महोदय’ और इनका परिवार अब तक विदेशों में ‘गांधी और बुद्ध’ का नाम लेकर अपने गुनाहों को धो रहे थे . अब देश में ही ..देश के सामने सरे आम बाकायदा सारी धृष्टताओं के साथ ‘गाँधी’ की जगह विराजमान हो गए हैं. और ब्रांड एम्बेसडर बनकर खादी को बेच रहे हैं . क्योंकि इनके लिए ‘खादी’ एक उत्पाद भर है जो सिर्फ बिकने के लिए है , सिर्फ फैशन है . ‘गांधी’ की हत्या करने के बाजूद ‘गांधी’ का वजूद पूरी दुनिया में है. इस देश की आत्मा में है तो ‘गांधी’ के विचारों की हत्या का आगाज़ है यह . इसके बहुत सधे हमले है . ‘गांधी’ को सभी तस्वीरों से गायब करो चाहे वो ‘करंसी हो , कैलंडर हो, डायरी हो या खादी हो , चरखा हो’ सभी जगह से ‘गांधी’ गायब होने वाले हैं . उनके द्वारा आजमाए हर नुस्खे को ये  ब्रांड एम्बेसडर एक ‘उत्पाद’ में तब्दील कर उसको बेचना चाहता है ताकि ‘गांधी’ एक विचार की बजाए एक ‘उत्पाद’ में सिमट जाए. इस भयावह कारनामों को अमली जामा पहनानाने का दुस्साहस है ‘बहुमत’ और गणपति को दुध पिलाने वाली जन मानसिकता  . ये ‘संघ’ और उसके पोषक बस चमत्कारों की बाँट जोहते हैं सरोकारों की नहीं !
इस देश की 40 प्रतिशत आबादी युवा है . क्या ये युवा सिर्फ मूक दर्शक बने रहेगें . इनमें जो आवाज़ उठा रहे हैं उन पर ‘देशद्रोही’ का मुकदमा चलता रहेगा या उनकी हत्या कर दी जायेगी . विश्व विश्वविधालयों में ऐसे लोगों का बोलबाला रहेगा ‘जहाँ’ विमर्श खत्म कर दिया जाएगा . क्योंकि ‘विमर्श’ इनका ‘मूल्य’ नहीं है चाहे वो संसद हो या सड़क..ये एक तरफ़ा प्रवचन के कुसंस्कार से पोषित हैं . ये संसद को मंदिर कहते हैं सिर्फ जनता की भावनाओं को दोहने के लिए, पर उसके ‘भगवान’ ये बनना चाहते हैं !
यह  एकाधिकारवाद का भयानक दौर है . यह लोकतंत्र का त्रासदी काल है जहाँ ‘बहुमत’ की वैधानिकता का उपयोग एकाधिकारवाद के लिए हो रहा है ‘मैं,मेरा और मेरे लिए’ इनका मन्त्र है .
पूंजीपतियों के स्वामित्व वाले मीडिया की चौपालों में भक्त जब अपने भगवान की करतूतों को तर्क की कसौटी पर हारता हुआ देखते हैं तो तर्क देने वालों के वध के लिए तैयार हो जाते हैं . सत्ता का दलाल  एंकर बीच बचाव का नाटक करता है और बेशर्मी से भक्तों की भक्ति करता है . ‘बहुमत’ देने की इतनी बड़ी सज़ा की लोकतंत्र का हर स्तम्भ ‘भक्ति’ मय हो गया है यहाँ तक की सुप्रीम कोर्ट तक की ‘निष्पक्षता’ पर प्रश्नचिन्ह लग गया है उसमें भी ‘बहुमत’ के गुरुर की गुरराहट पर सवाल उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई पड़ रही . वो न्याय देने की बजाए ‘बहुमत’ के सामने क्यों गिडगिडा रहा है ..समझ के परे है?
क्या देश की जनता , किसान , महिला , युवा इस ‘बहुमत’ के गुरुर को सहने के लिए अभिशप्त रहेगें या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के ‘निगहेंबान’ की भूमिका अख्तियार कर, ‘बहुमत’ के गुरुर को धराशायी कर, एक नयी राजनैतिक पीढ़ी को तैयार करेंगें जो ‘लोकतंत्र और देश के संविधान’ को अमलीजामा पहनाये और  ‘गांधी’ के सपनों का भारत और ‘स्वराज’ का निर्माण करे  !

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लेखक  परिचय -

थिएटर ऑफ रेलेवेंस” नाट्य सिद्धांत के सर्जक व प्रयोगकर्त्ता मंजुल भारद्वाज वह थिएटर शख्सियत हैंजो राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करते हैंबल्कि अपने रंग विचार "थिएटर आफ रेलेवेंस" के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं।

एक अभिनेता के रूप में उन्होंने 16000 से ज्यादा बार मंच से पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।लेखक-निर्देशक के तौर पर 28 से अधिक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया है। फेसिलिटेटर के तौर पर इन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थियेटर ऑफ रेलेवेंस सिद्धांत के तहत 1000 से अधिक नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया है। वे रंगकर्म को जीवन की चुनौतियों के खिलाफ लड़ने वाला हथियार मानते हैं। मंजुल मुंबई में रहते हैं। उन्हें 09820391859 पर संपर्क किया जा सकता है।

Wednesday, 11 January 2017

शास्त्री जी की पुण्यतिथी पर ------ रजनीश कुमार श्रीवास्तव


Rajanish Kumar Srivastava
भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथी  पर उनका शत शत नमन।
भारतीय राजनीतिक इतिहास के क्षितिज पर 2 अक्टूबर 1904 ई० को वाराणसी के मुगलसराय में पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एवं माता रामदुलारी देवी के घर सादगी, सौम्यता,ईमानदारी और कर्तव्यपराणयता की प्रतिमूर्ति भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म हुआ था।असहयोग आन्दोलन में जेल यात्रा के साथ स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी की शुरुआत हुई।भारत की आजादी की लड़ाई में 1930 ई० से 1945 ई० के बीच शास्त्री जी ने लगभग 9 वर्ष जेल में व्यतीत किए।स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्यात उ० प्र० के प्रथम मुख्यमंत्री पंड़ित गोविन्द बल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में पहली बार शास्त्री जी ने उ० प्र० के गृहमंत्री के रूप में अपनी प्रशासनिक पहचान बनाई।1951 ई० में शास्त्री जी अखिल भारतीय कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव चुने गये।शास्त्री जी के कुशल नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने पहला आम चुनाव लड़ा और भारी सफलता अर्जित की।1952 ई० में शास्त्री जी राज्यसभा के लिए चुने जाने के उपरान्त केन्द्र सरकार में रेल एवं परिवहन मंत्री बने।जब 1956 ई० में आशीयालूर रेल दुर्घटना हुई तो शास्त्री जी ने नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र देकर नैतिकता,ईमानदारी और उत्तरदायित्व बोध की अद्वितीय मिसाल कायम की।दूसरे आम चुनाव में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद शास्त्री जी ने परिवहन,यातायात,वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालयों का दायित्व कुशलता पूर्वक निभाया।1961 ई० में शास्त्री जी केन्द्र सरकार में गृहमंत्री बनाए गये। 27 मई 1964 में पंडित जवाहरलाल नेहरू जी की मृत्यु के उपरान्त 09 जून 1964 को शास्त्री जी भारतीय गणराज्य के दूसरे प्रधानमंत्री बने।उनके अदम्य साहस और त्वरित निर्णय शक्ति के बूते मात्र बाईस दिनों में भारत ने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान को हर मोर्चे पर पराजित किया।इसी दौरान 19 अक्टूबर 1965 ई० को शास्त्री जी ने "जय जवान जय किसान" का प्रसिद्ध नारा दिया।रूस की मध्यस्तता में पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब के साथ शास्त्री जी ने 10 जनवरी 1966 ई० को ताशकन्द समझौते पर हस्ताक्षर किए और इसी रात यानी 11 जनवरी 1966 को ताशकन्द में ही हृदयाघात से शास्त्री जी का निधन हो गया।दृढ़ इच्छाशक्ति के धनी ईमानदारी और सादगी की प्रतिमूर्ति भारत के इस सच्चे सपूत को मरणोपरांत भारत रत्न के सम्मान से नवाजा गया। ऐसे देशभक्त भारत के लाल लाल बहादुर शास्त्री जी की  पुण्यतिथी  पर उनका शत शत नमन।
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Thursday, 5 January 2017

बैंकों की घटती विश्वसनीयता : गंभीर संकट और कैशलेस डकैती ------ प्रो . हिमांशु / गिरीश मालवीय

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Girish Malviya
05-01-2017
कैशलेस हो जाने के खतरे............... इस लेख का तात्पर्य आपको डराना नहीं है लेकिन पैसो के मामले में कैशलेस हो जाने से जो सामान्य आदमी के मन मे चिंताए उपजति है उसे समझना भी बेहद जरुरी है.....................
सबसे महत्वपूर्ण चिंता है सुरक्षा की, क्या हमारा मेहनत से कमाया पैसा इन कैशलेस उपायों को बिना सोचे समझे अपनाने से सुरक्षित है इसे कुछ इस तरह से समझिए..............
फर्ज कीजिये कि एक सुनसान रात मे आप जरूरी काम से जा रहे है और आपके बटुए मे हजारो रुपये है अचानक आपके पीछे कुछ लुटेरे लग जाते है, आप उन्हें आते हुए देख लेते हो अब आपके पास कम से कम एक ऑप्शन है कि आप पूरा जोर लगाकर दौड़ लगा देते हो और आप बच भी जाते हो................
अब यही परिस्थिति आप साइबर वर्ल्ड की समझे.......... पिछली वाली परिस्थिति मे आप खतरा आसानी से भाप गए थे..और आपने दौड़ लगा दी लेकिन साइबर वर्ल्ड मे आपका पैसा बिलकुल खुले में पड़ा है और कौन सा लुटेरा आप के पैसे पर निगाह डाल कर बैठा है आप नहीं जानते कोई अमेरिका से आपके अकाउंट को हैक कर रहा है कोई चीन मे बैठा आपके ट्रांसिक्शन पर निगाह लगाये है, कोई कलकत्ता से फोन कर आपकी एटीएम कार्ड की डिटेल जानना चाहता है, लेकिन आप इन सब से अंजान है...........
यहाँ आप दौड़ नहीं लगा सकते 
यहाँ चोरी नहीं होगी होगी तो सीधे डकैती होगी............
और हम यह भी नहीं जान पाएंगे कि हम कैसे लुट गए...........
दूसरी चिंता थोड़ी उदारवादी दृष्टिकोण लिए हुए है........
आप सब लोग मॉल तो गए ही होंगे माल में जितनी भी दुकाने होती है उनके पैटर्न पर कभी आप गौर करना जिस सामान की हमारे दैनंदिन जीवन में बेहद अधिक उपयोगिता होती है उसे सबसे अधिक छुपाकर रखा जाता है और जो सामान लग्जरी होता है जिसे बेचने मे दूकान दार का फायदा होता है उसे हमेशा आगे रखा जाता है 
कैशलेस समाज मे इस तरह की मार्केटिंग को और अधिक वरीयता मिलेगी क्योकि आपको अब सब डिजिटल फार्म में करना है आपको दिनरात ऐसी चीजे जचायी जायेगी जो वास्तव मे आपके काम की नहीं है लेकिन उसे भी उपयोगी बताकर बेचा जायेगा जैसा क़ि नापतोल जैसे चैनल आज खुलकर कर रहे है...........
कैशलेस मे लोगो मे बिना सोचे समझे खर्च करने की प्रव्रत्ति को बढ़ावा मिलेगा...........
और भी बहुत से पहलू है इस कैशलेस संस्कृति के कभी फुरसत मे चर्चा की जायेगी...........

    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

एक प्राइवेट कम्पनी जिसका चीन कनेक्शन जग जाहिर है : भारतीय बैंकिंग प्रणाली को जोड़ा जा रहा है.......: गिरीश मालवीय


Girish Malviya

05-01-2017  · 
स्टेट बैंक व्दारा पेटीएम को ब्लॉक करने का असली सच
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आखिरकार स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने पेटीएम और अन्य मोबाइल वॉलेट में नेट बैंकिंग से पैसे डालना प्रतिबंधित कर दिया .................
अब शायद उन अंधे लोगों को समझ मे आये जो अब तक पेटीएम के समर्थन मे ये तर्क देते आये है कि आप कोई अन्य दूसरी ऐप्प क्यों नहीं इस्तेमाल कर लेते और पेटीएम से कोई फर्क नहीं पड़ता................
स्टेट बैंक ने यह कदम उठा कर साबित कर दिया कि पेटीएम अब भारतीय बैंकों के लिए खतरा बन गया है और उसके कारोबारी और सुरक्षा हित बुरी तरह से प्रभावित हो रहे है..............
लेकिन आप यह जानकर आश्चर्य करेंगे क़ि सरकार इस मामले मे पूरी तरह पेटीएम के साथ खड़ी नजर आ रही है सरकार ने पहले तो पेटीएम को पेमेंट बैंक बनाने की अनुमति दे दी और उसकी हर मनमानी पर मुहर लगा दी..................

दरअसल ये जो निर्णय स्टेट बैंक को लेना पड़ा है उसकी एक बेहद खास वजह है जो छुपाई जा रही है ................

वास्तव मे सरकार ने UPI यानि यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस से पेटीएम को जोड़ दिया है, और यह सिस्टम मूलतः नेशनल पेमेंट कार्पोरेशन ऑफ़ इंडिया ने डेवलप किया जो बैंक अकाउंट से मोबाइल बैंकिंग को सरल बनाने के लिए बनाया है, अब किसी प्राइवेट कंपनी को इस सिस्टम से क्यों जोड़ा गया इसके क्या मायने निकाले जाये विद्वान पाठक स्वयं समझ सकते है......................
पेटीएम के वरिष्ठ उपाध्यक्ष नितिन मिश्रा ने कहा, "हमने अपनी भुगतान प्रणाली और यूपीआई के बीच गहरा एकीकरण लागू किया है। इससे सिर्फ उपभोक्ताओं को सिर्फ अपने पेटीएम वॉलेट में पैसे डालने में ही नहीं, बल्कि यह हमारे आगामी बैंक भुगतान के लिए एक मजबूत नींव के रूप में कार्य करेगा।".............
पेटीएम ने यह सिस्टम ऐसा डिज़ाइन किया है कि आपको बस एक बार अकाउंट की जानकारी फीड करनी है और बेहद आसानी से आप उसमे से कितने ही बार पैसा निकाल सकते है, यह कदम स्टेट बैंक को बहुत नागवार गुजरा है..................
मतलब साफ है कि एक प्राइवेट कम्पनी जिसका चीन से कनेक्शन जग जाहिर है उस भारतीय बैंकिंग प्रणाली को जोड़ा जा रहा है....... और आश्चर्य तो उस बीजेपी के मातृ संगठन की खामोशी से हो रहा है जो कुछ दिनों पहले तक चीनी सामानों की होली जलाने मे विश्वास रखता था..................

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Wednesday, 4 January 2017

पेटीएम का असली खेल ------ गिरीश मालवीय


Girish Malviya
04-01-2017 

पेटीएम ने गजब की चाल चली है, जो आप जानकर हैरान रह जायेंगे..........
पेटीएम का पेमेंट बैंक लांच कर दिया है जो अगले महीने से अस्तित्व मे आ जायेगा अब उसका पूरा जोर इस बात पर है कि ज्यादा से ज्यादा लोग बड़ी से बड़ी मात्रा मे बैंक अकाउंट से निकाल कर पेटीएम वॉलेट मे डाल लें, और इसके लिए वह हर खरीद पर कैशबैक ऑफर कर रहा है, और लोग बिना सोचे समझे अपने बैंक अकाउंट से पैसा निकाल कर पेटीएम मे डाल रहे है .........
पेटीएम का सबसे बड़ा कैच यह है कि आप बहुत आसानी से अपना पैसा उसके वॉलेट मे डाल सकते है लेकिन वही पैसा जब आप पेटीएम से निकाल कर अपने खाते मे वापस डालना चाहते है आपको 4% अलग से देना पड़ता है और मिनिमम 5 से 7 दिन लगते है........
पेटीएम ने भी बाजार मे जोरशोर से मार्केटिंग कर के हर छोटे बड़े व्यापारी और स्मार्टफोन के जरिये अपनी पकड़ मजबूत कर ली है
अब असली खेल समझिये..........
पेटीएम यह घोषणा पहले ही कर चुका है कि अगर यूजर ने 21 दिसंबर 2016 तक कंपनी से किसी तरह की कोई बातचीत नहीं की, तो यूजर का मौजूदा पेटीएम वॉलेट, पेटीएम पेमेंट बैंक में बदल दिया जाएया। साथ ही अगर यूजर पेटीएम वॉलेट का ही चुनाव करता है तो उन्हें कंपनी को एक ई-मेल के जरिए इस बात की जानकारी देनी होगी क़ि जो लोग ई मेल नहीं कर पाएंगे उनका पैसा ऑटोमेटिक तरीके से पेमेंट बैंक के पास शिफ्ट हो जायेगा...............
यानी पेटीएम एक झटके मे वह सारा पैसा अपने पेमेंट बैंक मे ट्रांसफर कर लेगा और देश का सबसे बड़ा पेमेंट बैंक बन जायेगा जिस के पास सबसे अधिक पैसा होगा सबसे अधिक उपभोक्ता और सेवा प्रदाताओं का नेटवर्क होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात........ जिसमे चीन की कंपनी one 97 कॉम्युनिकेशन 49 फीसदी की पार्टनर होगी...................

 एक कमाल की जानकारी इसमें बताना रह गयी है कि विजय शेखर शर्मा ने अपने पेटीएम वॉलेट के मात्र 1 प्रतिशत शेयर बेच कर ही, पेटीएम बैंक के 51 प्रतिशत शेयर खरीद लिए है । 
Girish Malviya
https://www.facebook.com/girish.malviya.16/posts/1376388839059427

Monday, 2 January 2017

यह लोकतंत्र की लड़ाई है पिता के सम्पत्ति की नहीं ------ रजनीश कुमार श्रीवास्तव

लेकिन जब शरीर और दिमाग दोनों थक जाएँ लेकिन राजनीतिक वासना पहले से भी ज्यादा लोलुप हो जाए तो परिणाम मुलायम हो ही जाता है।किसी बड़ी मजबूरी के तहत मुलायम सिंह यादव का रिमोट किसी और के पास चला गया है।वो समाजवादी पार्टी का निर्विवादित भूत तो हैं लेकिन वर्तमान और भविष्य कतई नहीं।............................अखिलेश यादव को विष का पान कर महादेव बनने का अवसर मिल गया है।राजनीति में नेता वही है जिसके साथ जनता है।अखिलेश को आसुरी शक्तियों का विनाश करना ही चाहिए।ये आगे बढ़ने का समय है।



Rajanish Kumar Srivastava

समाजवादी पार्टी का संघर्ष वास्तव में एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री और एक भटके एवं भ्रमित पार्टी अध्यक्ष के सही गलत फैसलों से सम्बन्धित है उसे पिता और पुत्र के पारिवारिक संघर्ष के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
दरअसल राजनीति ही एकमात्र ऐसा पेशा है जिसमें रिटायरमेंट की कोई उम्र ही नहीं होती।लेकिन जब शरीर और दिमाग दोनों थक जाएँ लेकिन राजनीतिक वासना पहले से भी ज्यादा लोलुप हो जाए तो परिणाम मुलायम हो ही जाता है।किसी बड़ी मजबूरी के तहत मुलायम सिंह यादव का रिमोट किसी और के पास चला गया है।वो समाजवादी पार्टी का निर्विवादित भूत तो हैं लेकिन वर्तमान और भविष्य कतई नहीं।
सारी दिक्कत दो पृथक मुद्दों को पृथक रूप से नहीं देख पाने के कारण हो रही है।यह भारतीय राजनीति में पहली बार हुआ है कि ठीक चुनाव के पहले एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री को एक पार्टी अध्यक्ष ने पार्टी से निष्कासित कर दिया हो। जबकि हर सर्वे में अखिलेश की लोकप्रियता अपनी पार्टी से लगभग दोगुनी है।यह उसी तरह है कि एक पिता खुद पुत्र का विवाह तय करे और बारात के दिन जिद्द करे कि बारात पुत्र के बिना जाएगी।एक मुख्यमंत्री लगातार गुहार लगा रहा था कि इस चुनाव में चूँकि जनता मेरे कार्यों का मुल्याँकन करने जा रही है इसलिए उत्तरपुस्तिका मुझे लिखने दी जाए।लेकिन निष्ठुर पिता और स्वयं से निर्णय कर पाने में असमर्थ पार्टी अध्यक्ष ने अपने मुख्यमंत्री को बिना उत्तरपुस्तिका दिए ही परीक्षा में बैठाने की जिद्द पकड़ रखी थी।लोकतंत्र में अलग पार्टी वो बनाता है जिसे पार्टी में बहुमत प्राप्त ना हो। यह पूरा मसला लोकतंत्र और राजनीति का है।यह पूरी लड़ाई एक मुख्यमंत्री और एक पार्टी अध्यक्ष के सही गलत फैसलों की है ना कि कोई पारिवारिक विरासत की।लोकतंत्र में बहुमत ही निर्णायक होता है और चुने सांसदों तथा विधायकों तथा पार्टी कार्यकर्ताओं में 90% का बहुमत अखिलेश के पास है।अलग पार्टी मुलायम सिंह यादव को बनानी पड़ेगी।यह लोकतंत्र की लड़ाई है पिता के सम्पत्ति की नहीं।
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क्या मुलायम सिंह यादव का रिमोट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के हाथ में है? सभ्य और शिष्ट तथा विकास के नाम पर चुनाव लड़ने की घोषणा करने और बाहुबलियों को टिकट ना देने की भरपूर कोशिश करने वाले अपने ही लोकप्रिय मुख्यमंत्री को पार्टी से निकालने का दुस्साहस भला कोई यूँ ही कर सकता है।मुलायम सिंह यादव किसी बहुत बड़ी मजबूरी में ऐसा विनाश काले विपरीत बुद्धि वाला निर्णय ले सकते हैं । लेकिन सारे सर्वे यही बताते हैं कि लोकप्रिय युवा मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव को अपनी समाजवादी पार्टी से भी ज्यादा लोकप्रियता हासिल है।यकीन मानिए मुलायम सिंह यादव का रिमोट किसी और के पास है वरना कोई यूँ ही अपने पैर पर कुल्हाडी नहीं मार लेता है।

समुद्र मंथन में पहले विष निकला था बाद में अमृत।अमृत के लिए राक्षस और देवता लड़ मरे थे लेकिन विष का पान कर मानवता को जिसने बचाया था वह गरलकंठ महादेव कहलाए थे।अखिलेश यादव को विष का पान कर महादेव बनने का अवसर मिल गया है।राजनीति में नेता वही है जिसके साथ जनता है।अखिलेश को आसुरी शक्तियों का विनाश करना ही चाहिए।ये आगे बढ़ने का समय है।
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02-01-2016