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आप
जब भी किसी नये कालोनी की प्रचार सामग्री पर गौर करे तो पायेगे। आज कल की
कालोनी का प्रमुख आकर्षण गार्डन और मंदिर होता है। प्रश्न यह है की क्या
भारत में सिर्फ एक धर्म के ही लोग कालोनी पर निवास करते है? ज्यातदातर
सरकारी हाउसिंग बोर्ड कालोनियों में आप मंदिर ही पायेगे। प्राईवेट कालोनी
के विज्ञापन तो मंदिर को सामने रखकर ही दिये जाते है। जबकी सच्चाीई ये है
की कालोनी में सभी धर्म समुदाय के लोग निवास करते है, लेकिन कहीं भी
सर्वधर्म प्रार्थना भवन नही मिलेगा। ये भारत में सामुदायिक सौहार्द के लिए
खतरनाक है। संकलन-विजय माथुर,
फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
Saturday, 30 May 2015
Thursday, 28 May 2015
वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के उदारीवाद की उपज है मोदी सरकार --- विजय राजबली माथुर
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2011 से ही अपने ब्लाग http://krantiswar.blogspot.in/ के माध्यम से स्पष्ट करता रहा हूँ कि हज़ारे/केजरीवाल/रामदेव के कारपोरेट भ्रष्टाचार संरक्षण आंदोलन को कांग्रेस के मनमोहन सिंह गुट/RSS का समान समर्थन रहा है। जब मनमोहन जी को तीसरी बार पी एम बनाने का आश्वासन नहीं मिला तो मोदी को पी एम बनवा दिया गया है और मोदी के विकल्प के रूप में केजरीवाल को तैयार किया जा रहा है। RSS के कांग्रेस मुक्त भारत की परिकल्पना को अमेरिका प्रवास के दौरान जस्टिस काटजू साहब बखूबी संवार रहे हैं महात्मा गांधी,नेताजी सुभाष और जिन्नाह साहब के विरुद्ध विष-वमन करके। मनमोहन जी के विकल्प के रूप में मोदी व मोदी के विकल्प के रूप में केजरीवाल की ताजपोशी की रूप रेखा व्हाईट हाउस में बराक ओबामा के निर्देश पर तैयार की गई थी और निर्वाचन प्राणाली की खामियों तथा ई वी एम के करिश्मे के जरिये उस पर जनता की मोहर लगवा ली गई है। परंतु साम्यवादियों/वामपंथियों का केजरीवाल की परिक्रमा करना आत्मघाती तो है ही बल्कि देश के लिए भी अहितकर है।
http://krantiswar.blogspot.in/2015/03/blog-post_13.html
***
https://www.facebook.com/aquil.ahmed.7927/posts/458395827647852
http://krantiswar.blogspot.in/2015/02/aquil-ahmed.html
****
अभी अभी मनमोहन सरकार के वरिष्ठ मंत्री वीरप्पा मोइली ने खुलासा किया है कि मनमोहन सिंह ने हड़बड़ी मे 'उदारवाद' अर्थात आर्थिक सुधार लागू किए थे जिनसे 'भ्रष्टाचार' मे अपार वृद्धि हुई है।
तो यह वजह है कि मनमोहन सिंह जी ने आर एस एस को ताकत पहुंचाने हेतु अन्ना हज़ारे के आंदोलन को बल प्रदान किया था। सिर्फ और सिर्फ तानाशाही ही भ्रष्टाचार को अनंत काल तक संरक्षण प्रदान कर सकती है और इसी लिए इन आंदोलनकारियों ने लोकतान्त्रिक मूल्यों को नष्ट करने का बीड़ा उठा रखा है। राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति नफरत भर कर ये लोग जनता को लोकतन्त्र से दूर करना चाहते हैं।
http://krantiswar.blogspot.in/2012/03/blog-post.html
**********************
1962 मे चीनी आक्रमण मे भारत की फौजी पराजय के सदमे से नेहरू जी गंभीर रूप से बीमार पड़ गए तब 1963 मे राधाकृष्णन जी की महत्वाकांक्षा जाग्रत हो गई। के कामराज नाडार ,कांग्रेस अध्यक्ष जो उनके प्रांतीय भाषी थे से मिल कर उन्होने नेहरू जी को हटा कर खुद प्रधान मंत्री बनने और कामराज जी को राष्ट्रपति बनवाने की एक गुप्त स्कीम बनाई। परंतु उनका दुर्भाग्य था कि( वह नहीं जानते थे कि उनके एक बाड़ी गार्ड साहब जो तमिल भाषी न होते हुये भी अच्छी तरह तमिल समझते थे ) नेहरू जी तक उनकी पूरी स्कीम पहुँच गई जिसका खुलासा उस सैन्य अधिकारी ने अवकाश ग्रहण करने के पश्चात अपनी जीवनी मे किया है।..........................आज 48 वर्ष बाद कांग्रेस मे उस कहानी को दूसरे ढंग से दोहराया गया है। अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया जी गंभीर बीमारी का इलाज करने जब अमेरिका चली गईं तो उनकी गैर हाजिरी मे उनके द्वारा नियुक्त 4 सदस्यीय कमेटी (राहुल गांधी जिसका महत्वपूर्ण अंग हैं)को नीचा दिखाने और सोनिया जी को चुनौती देने हेतु गैर राजनीतिक और अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जी ने अपने पुराने संपर्कों(I M F एवं WORLD BANK) को भुनाते हुये फोर्ड फाउंडेशन से NGOs को भारी चन्दा दिला कर और बागी इन्कम टैक्स अधिकारी अरविंद केजरीवाल तथा किरण बेदी (असंतुष्ट रही पुलिस अधिकारी) के माध्यम से पूर्व सैनिक 'अन्ना हज़ारे' को मोहरा बना कर 'भ्रष्टाचार' विरोधी सघन आंदोलन खड़ा करवा दिया।
http://krantiswar.blogspot.in/2011/09/blog-post.html
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
2011
से ही ब्लाग-पोस्ट्स के माध्यम से सूचित करता रहा हूँ कि मनमोहन सिंह जी
ने अपने कार्यकाल में सोनिया जी व राहुल जी पर हज़ारे/केजरीवाल/रामदेव/RSS
के सहयोग से भ्रष्टाचार संरक्षण आंदोलन चलवाया था जिसने मोदी साहब को
सत्तासीन किया है। यह भेंट अगली कड़ियों पर अमल करने हेतु थी।
Jeevan Yadav यह निष्कर्ष बहुत सी बातों की प्रतीक्षा करेगा
2011 से ही अपने ब्लाग http://krantiswar.blogspot.in/ के माध्यम से स्पष्ट करता रहा हूँ कि हज़ारे/केजरीवाल/रामदेव के कारपोरेट भ्रष्टाचार संरक्षण आंदोलन को कांग्रेस के मनमोहन सिंह गुट/RSS का समान समर्थन रहा है। जब मनमोहन जी को तीसरी बार पी एम बनाने का आश्वासन नहीं मिला तो मोदी को पी एम बनवा दिया गया है और मोदी के विकल्प के रूप में केजरीवाल को तैयार किया जा रहा है। RSS के कांग्रेस मुक्त भारत की परिकल्पना को अमेरिका प्रवास के दौरान जस्टिस काटजू साहब बखूबी संवार रहे हैं महात्मा गांधी,नेताजी सुभाष और जिन्नाह साहब के विरुद्ध विष-वमन करके। मनमोहन जी के विकल्प के रूप में मोदी व मोदी के विकल्प के रूप में केजरीवाल की ताजपोशी की रूप रेखा व्हाईट हाउस में बराक ओबामा के निर्देश पर तैयार की गई थी और निर्वाचन प्राणाली की खामियों तथा ई वी एम के करिश्मे के जरिये उस पर जनता की मोहर लगवा ली गई है। परंतु साम्यवादियों/वामपंथियों का केजरीवाल की परिक्रमा करना आत्मघाती तो है ही बल्कि देश के लिए भी अहितकर है।
http://krantiswar.blogspot.in/2015/03/blog-post_13.html
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https://www.facebook.com/aquil.ahmed.7927/posts/458395827647852
http://krantiswar.blogspot.in/2015/02/aquil-ahmed.html
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अभी अभी मनमोहन सरकार के वरिष्ठ मंत्री वीरप्पा मोइली ने खुलासा किया है कि मनमोहन सिंह ने हड़बड़ी मे 'उदारवाद' अर्थात आर्थिक सुधार लागू किए थे जिनसे 'भ्रष्टाचार' मे अपार वृद्धि हुई है।
तो यह वजह है कि मनमोहन सिंह जी ने आर एस एस को ताकत पहुंचाने हेतु अन्ना हज़ारे के आंदोलन को बल प्रदान किया था। सिर्फ और सिर्फ तानाशाही ही भ्रष्टाचार को अनंत काल तक संरक्षण प्रदान कर सकती है और इसी लिए इन आंदोलनकारियों ने लोकतान्त्रिक मूल्यों को नष्ट करने का बीड़ा उठा रखा है। राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति नफरत भर कर ये लोग जनता को लोकतन्त्र से दूर करना चाहते हैं।
http://krantiswar.blogspot.in/2012/03/blog-post.html
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1962 मे चीनी आक्रमण मे भारत की फौजी पराजय के सदमे से नेहरू जी गंभीर रूप से बीमार पड़ गए तब 1963 मे राधाकृष्णन जी की महत्वाकांक्षा जाग्रत हो गई। के कामराज नाडार ,कांग्रेस अध्यक्ष जो उनके प्रांतीय भाषी थे से मिल कर उन्होने नेहरू जी को हटा कर खुद प्रधान मंत्री बनने और कामराज जी को राष्ट्रपति बनवाने की एक गुप्त स्कीम बनाई। परंतु उनका दुर्भाग्य था कि( वह नहीं जानते थे कि उनके एक बाड़ी गार्ड साहब जो तमिल भाषी न होते हुये भी अच्छी तरह तमिल समझते थे ) नेहरू जी तक उनकी पूरी स्कीम पहुँच गई जिसका खुलासा उस सैन्य अधिकारी ने अवकाश ग्रहण करने के पश्चात अपनी जीवनी मे किया है।..........................आज 48 वर्ष बाद कांग्रेस मे उस कहानी को दूसरे ढंग से दोहराया गया है। अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया जी गंभीर बीमारी का इलाज करने जब अमेरिका चली गईं तो उनकी गैर हाजिरी मे उनके द्वारा नियुक्त 4 सदस्यीय कमेटी (राहुल गांधी जिसका महत्वपूर्ण अंग हैं)को नीचा दिखाने और सोनिया जी को चुनौती देने हेतु गैर राजनीतिक और अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जी ने अपने पुराने संपर्कों(I M F एवं WORLD BANK) को भुनाते हुये फोर्ड फाउंडेशन से NGOs को भारी चन्दा दिला कर और बागी इन्कम टैक्स अधिकारी अरविंद केजरीवाल तथा किरण बेदी (असंतुष्ट रही पुलिस अधिकारी) के माध्यम से पूर्व सैनिक 'अन्ना हज़ारे' को मोहरा बना कर 'भ्रष्टाचार' विरोधी सघन आंदोलन खड़ा करवा दिया।
http://krantiswar.blogspot.in/2011/09/blog-post.html
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
Wednesday, 27 May 2015
युवा दिलों की धड़कन थे नेहरू --- सौरभ बाजपेयी
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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
http://www.livehindustan.com/news/guestcolumn/article1-story-481337.html |
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
Tuesday, 26 May 2015
इप्टा के स्थापना दिवस पर लखनऊ में 'कर्मकांड पर कटाक्ष '
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कल साँय इप्टा कार्यालय, क़ैसर बाग , लखनऊ में इप्टा के 73वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में एक गोष्ठी सम्पन्न हुई जिसके उपरांत नाटक 'गंगा लाभ ' का मंचन किया गया। इस नाटक के माध्यम से मृत्यु के अवसर का भी पोंगा-पंडितों द्वारा अपनी आजीविका के हित में शोषण हेतु प्रयोग किया जाना बड़े ही मर्म स्पर्शी ढंग से प्रस्तुत किया गया। किस प्रकार गरीब की भूमि का दबंगों द्वारा कब्जा किया जाता है उस पर भी नाटक में प्रकाश डाला गया है।
जब मोदी सरकार की वार्षिकी मनाई जा रही थी तब इस सरकार के भूमि अधिग्रहण संबंधी काले कानून की तलवार भी किसानों पर लटक रही थी अतः इस नाटक के मंचन का समय बिलकुल उचित रहा। लेकिन एक दिन पूर्व गंजिंग के अवसर पर एक लाख लोगों की उपस्थिती के मुक़ाबले इस नाटक के दर्शकों की उपस्थिति नगण्य थी। आमंत्रित विद्वत जनो के अतिरिक्त कलाकार और पार्टी सदस्य ही दर्शक व श्रोता थे। साधारण जनता की भागीदारी नहीं थी जबकि नाटक जन सरोकारों से संबन्धित था। कार्यालय प्रांगण के स्थान पर सार्वजनिक स्थान पर इस नाटक का मंचन जनता को आकर्षित कर सकता था। जन नाट्य संघ (IPTA) के स्थापना दिवस पर जन (People ) का न होना चिंताजनक परिस्थितियों का परिचायक है। नब्बे के दशक में आगरा -IPTA द्वारा सार्वजनिक चौराहों, पार्कों, मंदिरों के निकट इस प्रकार के नाटक आयोजित किए जाते थे जिनमें पूर्व सूचना के बिना भी जनता की भागीदारी हो जाती थी। किन्तु आज के उदारीकरण और विकास के युग में बिना प्रचार और कड़ी मशक्कत के बगैर ऐसा हो पाना संभव भी नहीं है। अगले माह जून में लखनऊ में ही IPTA का राष्ट्रीय सम्मेलन भी होने जा रहा है जिससे साधारण जनता को भी सम्बद्ध किया जाना चाहिए।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
कल साँय इप्टा कार्यालय, क़ैसर बाग , लखनऊ में इप्टा के 73वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में एक गोष्ठी सम्पन्न हुई जिसके उपरांत नाटक 'गंगा लाभ ' का मंचन किया गया। इस नाटक के माध्यम से मृत्यु के अवसर का भी पोंगा-पंडितों द्वारा अपनी आजीविका के हित में शोषण हेतु प्रयोग किया जाना बड़े ही मर्म स्पर्शी ढंग से प्रस्तुत किया गया। किस प्रकार गरीब की भूमि का दबंगों द्वारा कब्जा किया जाता है उस पर भी नाटक में प्रकाश डाला गया है।
जब मोदी सरकार की वार्षिकी मनाई जा रही थी तब इस सरकार के भूमि अधिग्रहण संबंधी काले कानून की तलवार भी किसानों पर लटक रही थी अतः इस नाटक के मंचन का समय बिलकुल उचित रहा। लेकिन एक दिन पूर्व गंजिंग के अवसर पर एक लाख लोगों की उपस्थिती के मुक़ाबले इस नाटक के दर्शकों की उपस्थिति नगण्य थी। आमंत्रित विद्वत जनो के अतिरिक्त कलाकार और पार्टी सदस्य ही दर्शक व श्रोता थे। साधारण जनता की भागीदारी नहीं थी जबकि नाटक जन सरोकारों से संबन्धित था। कार्यालय प्रांगण के स्थान पर सार्वजनिक स्थान पर इस नाटक का मंचन जनता को आकर्षित कर सकता था। जन नाट्य संघ (IPTA) के स्थापना दिवस पर जन (People ) का न होना चिंताजनक परिस्थितियों का परिचायक है। नब्बे के दशक में आगरा -IPTA द्वारा सार्वजनिक चौराहों, पार्कों, मंदिरों के निकट इस प्रकार के नाटक आयोजित किए जाते थे जिनमें पूर्व सूचना के बिना भी जनता की भागीदारी हो जाती थी। किन्तु आज के उदारीकरण और विकास के युग में बिना प्रचार और कड़ी मशक्कत के बगैर ऐसा हो पाना संभव भी नहीं है। अगले माह जून में लखनऊ में ही IPTA का राष्ट्रीय सम्मेलन भी होने जा रहा है जिससे साधारण जनता को भी सम्बद्ध किया जाना चाहिए।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
'ज्योतिष' विरोधियों एवं एथीस्टों द्वारा ढोंग-पाखंड को बढ़ावा --- विजय राजबली माथुर
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ढ़ोंगी पोंगापंथी और एथीस्ट एक समान
http://communistvijai.blogspot.in/2015/01/blog-post_30.html
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
ढ़ोंगी पोंगापंथी और एथीस्ट एक समान
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
Monday, 25 May 2015
खबरों पर दबाव : पुरानी खबर
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·(02-06-2014)
आज
जब हत्या और बलात्कार को लेकर मीडिया और राजनेताओं ने 'पीपली लाईव' का
दृश्य पुनर्प्रस्तुत कर दिया है तब बीते दिनों की एक घटना याद आ गयी.बात
अगस्त 2007 के शुरुवाती दिनों की है .कथाकार मित्र शिवमूर्ति का फोन आया
कि उनके एक सहकर्मी अधिकारी मित्र के प्रतापगढ़ (उ.प्र) जिले के गाँव के
नज़दीक एक होनहार दलित युवक, जिसका इलाहाबाद में बी टेक की पढ़ाई के लिए
चयन हो गया था, की गाँव के ही दो ब्राह्मण युवकों द्वारा जघन्य ढंग से
हत्या कर दी गयी है . और बसपा के ब्राह्मण एम् एल ए एवं अन्य प्रभावशाली
लोगों की मदद से मामले को दबाया जा रहा है .संभव हो तो इसे मीडिया में
लाने की कोशिश की जानी चाहिए. उन दिनों प्रदेश में मायावती की सरकार थी
और 'ब्राह्मण शंख बजायेगा ...' का नारा तेजी से चल रहा था .मैंने एनडीटीवी
के अपने रिपोर्टर मित्र कमाल खान को इस बाबत बताया और आग्रह किया कि संभव
हो तो इसे कवर करें .उन्होंने अपने स्रोतों द्वारा इस सम्बन्ध में पूछताछ
की और तीन चार दिन बाद मुझे बताया कि उन्हें जो सूचना प्रतापगढ़ के
स्रोतों द्वारा मिली उसके अनुसार वह दलित युवक चोर था और कुछ प्रेमप्रसंग
भी था . मैंने कमाल खान को दो टूक लहजे में बताया कि भले ही आप स्टोरी न
कवर करें लेकिन अपने उन स्रोतों पर कतई विश्वास न करें जो इस बेगुनाह युवक
को चोर बता रहे हैं . खैर कमाल खान ने तुरंत प्रतापगढ़ जाने का निर्णय लिया
और अगले दिन इसकी अच्छी कवरेज अखिल भारतीय स्तर पर की . फिर स्टार टीवी के
उन दिनों के रिपोर्टर पंकज श्रीवास्तव ने भी इसे विस्तृत रूप से कवर किया .
लेकिन यह सब महज एक दो दिन का किस्सा होकर रह गया . अंत में हुआ यह कि
असली अपराधी जमानत करा कर बाहर हो गए औरगाँव के ही कुछ दलित इस अपराध के
मुलजिम के रूप में जेल की चहारदीवारी के पीछे आज भी कैद हैं . उनका 'पीपली
लाईव' होने से रह गया . Tehelka ने 22 अगस्त 2007 के अंक में इस बाबत
शिवम् बिज ने जो विस्तृत खबर लिखी वह यहाँ संग्लन है .
- Jitendra Raghuvanshi, Anil Kumar Yadav, Desh Nirmohi and 42 others like this.
- Sujit Ghosh घटना अगस्त के शुरु की है । हत्या पासिओं के वस्ति मे हुआ था । पाँच पासिओ के नाम FIR दर्ज हुआ था दो ब्रह्मण छूट्टा घुम रहा था । स्थानिय संगठन और लोग भागा दौड़ी करते रहे पर उन्हे गिरफ्तार नही किया गया । स्थानीय विघायक ब्रह्मण था,बासापा का था । फिर प्लान बना १४ अगस्त को गाँव मे काला झंडा फहराया गया । तबस्सुम इंडियन एक्सप्रेस से गई थी । १५ के सुबह एक्सप्रेस के मुख्य पेज पर खबर छपी । तहलका मच गया शाम को दोनो गिरफ्तार किया गया । दो साल जेल मे रहा फिर जमानत हुई । पिछले साल अदालत की राय मे पाँचो पासिओं को सजा हो गई, दोनो ब्रह्मण सुबुत के अभाव मे छुट गया । अभी फिर अपिल हुआ है । इस प्रकरण में परिवार ने जिस हिम्मत के साथ लड़ा और अन्ततः ब्रह्मणो को नैतिक रुप से हराया और डराया प्रंशसनीय और हिम्मत देने वाली है
Saturday, 23 May 2015
अखबारी कतरनें
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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
Friday, 22 May 2015
प्रमुख अखबारी कतरनें
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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
Thursday, 21 May 2015
साजिश और परिवार : विद्वजन के विचार
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( परिवार नागरिकता की प्रथम पाठशाला होते हैं अतः रंजना कुमारी जी द्वारा समाज सुधार हेतु परिवार की पहल पर जो ध्यानाकर्षण किया है उस पर गंभीरता से विचार कर अनुपालन करने की ज़रूरत है। --- विजय राजबली माथुर )
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
( परिवार नागरिकता की प्रथम पाठशाला होते हैं अतः रंजना कुमारी जी द्वारा समाज सुधार हेतु परिवार की पहल पर जो ध्यानाकर्षण किया है उस पर गंभीरता से विचार कर अनुपालन करने की ज़रूरत है। --- विजय राजबली माथुर )
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
Tuesday, 19 May 2015
अंध श्रद्धा और अंध आलोचना के शिकंजे में भारतीय फलित विद्याएँ /मंगली दोष-ऐश्वर्या राय
*निश्चय ही 'चंद्रमा' का मानव-जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है लेकिन केवल महिला वर्ग पर ही उसे क्यूँ लागू किया जाता है?
*चूंकि चंद्रमा सूर्यास्त के बाद ही प्रभावी हो पाता है अतः सूर्यास्त के बाद 'जल' का सेवन कम किया जाना चाहिए। लेकिन पोंगापंथी ढोंगवादचंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद भोजन करने का गलत विधान पेश करता है।
*वस्तुतः कोई भी उपवास शाम के वक्त ही किया जाना चाहिए न कि दिन के समय। भोजन के बाद प्यास अधिक लगती है और जल अधिक लेना पड़ता है अतः गलत निष्कर्षों को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने के कारण ठुकराया जाना चाहिए और 'करवा-चौथ' जैसे शोषणकारी ढोंगों को समाप्त किया जाना चाहिए।
(विजय राजबली माथुर )
Sanjiv Verma 'salil'
अंध श्रद्धा और अंध आलोचना के शिकंजे में भारतीय फलित विद्याएँ:
भारतीय फलित विद्याओं (ज्योतषशास्त्र, सामुद्रिकी, हस्तरेखा विज्ञान, अंक ज्योतिष आदि) तथा धार्मिक अनुष्ठानों (व्रत, कथा, हवन, जाप, यज्ञ आदि) के औचित्य, उपादेयता तथा प्रामाणिकता पर प्रायः प्रश्नचिन्ह लगाये जाते हैं. इनपर अंधश्रद्धा रखनेवाले और इनकी अंध आलोचना रखनेवाले दोनों हीं विषयों के व्यवस्थित अध्ययन, अन्वेषणों तथा उन्नयन में बाधक हैं. शासन और प्रशासन में भी इन दो वर्गों के ही लोग हैं. फलतः इन विषयों के प्रति तटस्थ-संतुलित दृष्टि रखकर शोध को प्रोत्साहित न किये जाने के कारण इनका भविष्य खतरे में है.
हमारे साथ दुहरी विडम्बना है:
१. हमारे ग्रंथागार और विद्वान सदियों तक नष्ट किये गए. बचे हुए कभी एक साथ मिल कर खोये को दुबारा पाने की कोशिश न कर सके. बचे ग्रंथों को जन्मना ब्राम्हण होने के कारण जिन्होंने पढ़ा वे विद्वान न होने के कारण वर्णित के वैज्ञानिक आधार नहीं समझ सके और उसे ईश्वरीय चमत्कार बताकर पेट पालते रहे. उन्होंने ग्रन्थ तो बचाये पर विद्या के प्रति अन्धविश्वास को बढ़ाया। फलतः अंधविरोध पैदा हुआ जो अब भी विषयों के व्यवस्थित अध्ययन में बाधक है.
२. हमारे ग्रंथों को विदेशों में ले जाकर उनके अनुवाद कर उन्हें समझ गया और उस आधार पर लगातार प्रयोग कर विज्ञान का विकास कर पूरा श्रेय विदेशी ले गये. अब पश्चिमी शिक्षा प्रणाली से पढ़े और उस का अनुसरण कर रहे हमारे देशवासियों को पश्चिम का सब सही और पूर्व का सब गलत लगता है. लार्ड मैकाले ने ब्रिटेन की संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन पर हुई बहस में जो अपन लक्ष्य बताया था, वह पूर्ण हुआ है.
इन दोनों विडम्बनाओं के बीच भारतीय पद्धति से किसी भी विषय का अध्ययन, उसमें परिवर्तन, परिणामों की जाँच और परिवर्धन असीम धैर्य, समय, धन लगाने से ही संभव है.
अब आवश्यक है दृष्टि सिर्फ अपने विषय पर केंद्रित रहे, न प्रशंसा से फूलकर कुप्पा हों, न अंध आलोचना से घबरा या क्रुद्ध होकर उत्तर दें. इनमें शक्ति का अपव्यय करने के स्थान पर सिर्फ और सिर्फ विषय पर केंद्रित हों.
संभव हो तो राष्ट्रीय महत्व के बिन्दुओं जैसे घुसपैठ, सुरक्षा, प्राकृतिक आपदा (भूकंप, तूफान. अकाल, महत्वपूर्ण प्रयोगों की सफलता-असफलता) आदि पर पर्याप्त समयपूर्व अनुमान दें तो उनके सत्य प्रमाणित होने पर आशंकाओं का समाधान होगा। ऐसे अनुमान और उनकी सत्यता पर शीर्ष नेताओं, अधिकारियों-वैज्ञानिकों-विद्वानों को व्यक्तिगत रूप से अवगत करायें तो इस विद्या के विधिवत अध्ययन हेतु व्यवस्था की मांग की जा सकेगी।
साभार :
https://www.facebook.com/sanjiv.salil/posts/10203046678030084
१. हमारे ग्रंथागार और विद्वान सदियों तक नष्ट किये गए. बचे हुए कभी एक साथ मिल कर खोये को दुबारा पाने की कोशिश न कर सके. बचे ग्रंथों को जन्मना ब्राम्हण होने के कारण जिन्होंने पढ़ा वे विद्वान न होने के कारण वर्णित के वैज्ञानिक आधार नहीं समझ सके और उसे ईश्वरीय चमत्कार बताकर पेट पालते रहे. उन्होंने ग्रन्थ तो बचाये पर विद्या के प्रति अन्धविश्वास को बढ़ाया। फलतः अंधविरोध पैदा हुआ जो अब भी विषयों के व्यवस्थित अध्ययन में बाधक है.
२. हमारे ग्रंथों को विदेशों में ले जाकर उनके अनुवाद कर उन्हें समझ गया और उस आधार पर लगातार प्रयोग कर विज्ञान का विकास कर पूरा श्रेय विदेशी ले गये. अब पश्चिमी शिक्षा प्रणाली से पढ़े और उस का अनुसरण कर रहे हमारे देशवासियों को पश्चिम का सब सही और पूर्व का सब गलत लगता है. लार्ड मैकाले ने ब्रिटेन की संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन पर हुई बहस में जो अपन लक्ष्य बताया था, वह पूर्ण हुआ है.
इन दोनों विडम्बनाओं के बीच भारतीय पद्धति से किसी भी विषय का अध्ययन, उसमें परिवर्तन, परिणामों की जाँच और परिवर्धन असीम धैर्य, समय, धन लगाने से ही संभव है.
अब आवश्यक है दृष्टि सिर्फ अपने विषय पर केंद्रित रहे, न प्रशंसा से फूलकर कुप्पा हों, न अंध आलोचना से घबरा या क्रुद्ध होकर उत्तर दें. इनमें शक्ति का अपव्यय करने के स्थान पर सिर्फ और सिर्फ विषय पर केंद्रित हों.
संभव हो तो राष्ट्रीय महत्व के बिन्दुओं जैसे घुसपैठ, सुरक्षा, प्राकृतिक आपदा (भूकंप, तूफान. अकाल, महत्वपूर्ण प्रयोगों की सफलता-असफलता) आदि पर पर्याप्त समयपूर्व अनुमान दें तो उनके सत्य प्रमाणित होने पर आशंकाओं का समाधान होगा। ऐसे अनुमान और उनकी सत्यता पर शीर्ष नेताओं, अधिकारियों-वैज्ञानिकों-विद्वानों को व्यक्तिगत रूप से अवगत करायें तो इस विद्या के विधिवत अध्ययन हेतु व्यवस्था की मांग की जा सकेगी।
साभार :
https://www.facebook.com/sanjiv.salil/posts/10203046678030084
मंगली दोष-ऐश्वर्या राय :
*ढ़ोंगी पंडितों के परामर्श पर अमिताभ बच्चन,अनिल अंबानी व अमर सिंह ने 50-50-50 लाख रुपए एक मंदिर में दान दिये थे और मान लिया था कि 'मंगली दोष' समाप्त हो गया है। यदि ऐसा हुआ तब 20 अप्रैल 2014 के हिंदुस्तान में 'मतभेद' की खबरें कैसे छ्प गईं?
*वस्तुतः 'मंगली दोष' का निवारण मंदिरों में दान देने से नहीं होता है वह तो महज़ एक पाखंड के सिवा कुछ नहीं है। इसके लिए 'वर' और 'कन्या' दोनों के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति के अनुसार 'मंगली योग' होने चाहिए। तब संतुलन बना रहता है। जन्मकालीन ग्रहों को पुजारी या मंदिर में दान देने से नहीं बदला जा सकता है।
* 'मंगल' एवं सूर्य',शनि,राहू,केतू में कोई एक भी यदि किसी जन्म-कुंडली में लग्न, चतुर्थ, अष्टम व द्वादश भाव में स्थित हो तो कुंडली 'मंगली दोष' वाली है उसके समाधान के लिए वैसे योगों से युक्त कुंडली से ही 'गुणों' का मिलान किया जाना चाहिए।
धनाढ्य लोग खुद तो गलत करते ही हैं साथ ही साथ गलत लोगों को प्रोत्साहित भी करते हैं जिससे साधारण जनता का अहित होता है और प्रतिक्रिया स्वरूप 'ज्योतिष विरोध' भी।
(विजय राजबली माथुर )
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
Sunday, 17 May 2015
सांसद निधि के काम : भ्रष्टाचार आम
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सांसद निधि की शुरुआत राजीव गांधी द्वारा अपने कार्यकाल 1984-89 में की गई थी । उनका उद्देश्य चाहे जो रहा हो परंतु यह भ्रष्टाचार वृद्धि का ही हेतु बन कर रह गई है।
;संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
सांसद निधि की शुरुआत राजीव गांधी द्वारा अपने कार्यकाल 1984-89 में की गई थी । उनका उद्देश्य चाहे जो रहा हो परंतु यह भ्रष्टाचार वृद्धि का ही हेतु बन कर रह गई है।
;संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
Monday, 11 May 2015
यह इन्टरनेट की ताकत ही है----- अरविंद विद्रोही
इन्टरनेट यानि अंतर्जाल पर बने मित्रो के रिश्तो पर मेरा अनुभव
https://www.facebook.com/notes/arvind-vidrohi/%
पड़ोसिओ,पारिवारिक
रिश्तो अर्थात तथाकथित वास्तविक दुनिया के रिश्तो से बेहतर भावनाओ की समझ
रखने वाले,समझने वाले और समझाने वाले ,हर ख़ुशी-गम आपस में मिल बटने वाले
लोग मुझे तो इस तथाकथित आभाशी -काल्पनिक दुनिया में मिले है| अनतर्जाल पर
पता नहीं कितने प्रकार के जाल होंगे लेकिन मैं तो अपने अंतर्जाल के इन
मित्रो के स्नेह,ममत्व,अपनत्व के जाल में बहुत ही सुकून महसूस करता हूँ |
मेरे अपने जीवन के उस
मोड़ पर जब करीबी लगभग सभी रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया था
,राजनीतिक-सामाजिक लाभ ले चुके लोगो ने भी किनारा कस लिया था तो उस अकेलेपन
के दौर से गुजरने में चन्द रिश्तो की डोर ने मुझे ताकत दिया,जीवन संघर्ष
को आगे बढ़ाने के लिए मजबूर किया| यह चन्द रिश्ते ना होते तो शायद यह जीवन
भी ना होता| अकेलेपन की दुनिया से निकलने और स्वार्थी लोगो से एक दुरी
बनाये रखने के लिए इन्टरनेट का प्रयोग शुरु किया | आज यह गर्व से कह सकता
हूँ की यह इन्टरनेट की ताकत ही है कि तमाम अनजाने लोगो से मेरी जान-पहचान
हुई और उनके स्नेह ने मुझे दिनों दिन हौसला ही दिया | आज तमाम पुराने जानने
वाले स्वार्थी रिश्तेदारों से मुझे निजात मिल चुका है,अब मेरी स्थिति सभी
स्नेही जनों के आशीर्वाद से अच्छी है | उन लोगो से मिलने ,बात करने में
मेरी तनिक भी रूचि नहीं रहती जिन्होंने मेरा साथ मेरे बुरे वक़्त में नहीं
दिया | आज मैं इन्टरनेट के ही माध्यम से एक बड़े और नए रिश्तो को हशी-ख़ुशी
जी रहा हूँ,खून से बड़े स्नेह रखने वाले लोग यहाँ मुझे मिले है|फेसबुक के
सभी मित्र आज मुझे अपने परिवार के ही लगते है| मेरा अनुभव तो यही है इस
अंतर्जाल के सन्दर्भ में ......
Sunday, 10 May 2015
उन फुटपाथियों का क्या, जिनका खून बहा? --- शशि शेखर
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livehindustan.com |
‘रोटी नहीं है तो क्या हुआ, केक खा लें।’ फ्रांस की महारानी मेरी
अंत्वानेत ने 1789 की एक दोपहर अपनी प्रजा के लिए जैसे ही यह कहा, वैसे
ही विश्व इतिहास की एक बड़ी घटना ने आकार ग्रहण करना शुरू कर दिया। राजा को
ईश्वर का अवतार मानने वाले निरीह फ्रेंच नागरिक बस्ताइल के राजभवन में इस
उम्मीद के साथ पहुंचे थे कि प्रभु का अवतार राजा उनकी भूख मिटाने का इंतजाम
करेगा। हुआ उल्टा। महारानी की सलाह ने उनके उदर में जल रही भूख की
ज्वालाओं को क्रांति की लपटों में तब्दील कर दिया। फ्रांस की राज्य क्रांति
ने सदियों पुराने उस सिद्धांत को जमींदोज कर दिया, जो लोगों के दिमाग पर
यह कहकर ताला लगा देता था कि राजा ईश्वर का अवतार होता है। उसके बारे में
बुरा सोचना, कहना और सुनना पाप है। चर्च और श्री-सत्ता संपन्न लोग इस
सिद्धांत को पोसते आए थे। मेरी के इस तथाकथित जुमले ने न केवल लुई खानदान
को मौत के गर्त में पहुंचा दिया, बल्कि पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक
व्यवस्था सदा-सर्वदा के लिए स्थापित की। इस क्रांति का शाश्वत सबक है-
‘गरीब की हाय और हया से मत खेलो, भस्म हो जाओगे।’ पिछले चार दिन से सलमान
खान की सजा को लेकर जिस तरह का तमाशा रचा जा रहा है, उसने न केवल यह कहानी
याद दिला दी, बल्कि दशकों से मेरे मन में पुराने नासूर की तरह काबिज गुत्थी
को भी सुलझा दिया।
इतिहासकारों का एक तबका कहता आया है कि इस बात के पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं कि महारानी मेरी ने कभी ‘रोटी-केक’ का जुमला बोला था या नहीं। सलमान को सजा के तत्काल बाद अपनी सिताराई आभा खो चुके पाश्र्व गायक अभिजीत के निंदनीय ट्वीट पर गौर फरमाएं- ‘कुत्ता रोड पर सोएगा, तो कुत्ते की मौत ही मरेगा। सड़क गरीब के बाप की नहीं है..।’ इसे पढ़ने के बाद मुझे यह यकीन हो चला है कि महारानी नहीं, तो किसी दरबारी ने जरूर ‘रोटी नहीं तो केक..’ जैसी उक्ति के जरिये निर्धनों की भूख का मजाक उड़ाया होगा। इन दिनों सलमान खान को बेहद परोपकारी इंसान के तौर पर दर्शाने की कोशिश की जा रही है। क्या वह हमेशा से ऐसे हैं? जरा पीछे लौटते हैं। 2006 में जोधपुर की जेल से निकलने के बाद सलमान का करियर डगमगा गया था, फिल्में पिट रही थीं और निजी जिंदगी में उनका उदंडता भरा रवैया उन्हें ‘खलनायक’ साबित कर रहा था। सिनेमाई नायकों से लोग असल जीवन में भी नायकत्व की उम्मीद करते हैं। यही वजह है कि कभी बेहद अकड़ रहे अमिताभ बच्चन ने बरसों पहले शालीनता का लबादा ओढ़ लिया था।
इसीलिए आमिर खान समाज सुधारक के तौर पर पेश आते हैं और शाहरुख हर समय खिलंदड़े नौजवान की भूमिका निभाते दिखते हैं। सलमान ने भी ‘बीइंग ह्यूमन’ की स्थापना कर अपनी छवि चमकाने की कोशिश की। इस अभियान में समूचा खान खानदान उनके साथ था। फिल्म नगरी के कुछ स्थापित घरानों से खुन्नस खाने वाले लोगों को उनके साथ में खुद का लाभ दिखाई दिया। नतीजतन, रह-रहकर ऐसी खबरें आने लगीं, जिनमें कोई सलमान को परम दयालु साबित करने में जुटा था, तो किसी कैंसर पीड़ित को उनमें रब बसता दिखाई पड़ रहा था। मैं यह कतई नहीं कह रहा कि वह लोगों की मदद नहीं कर रहे, या उन्हें भला बनने और दिखने का हक नहीं, पर सच है कि उनकी शख्सियत का यह पहलू जेल यात्राओं से पहले तक लोगों की नजरों से ओझल था। वह उन दिनों बिगड़ैल शख्स के तौर पर जाने जाते थे।
आप याद करें। दिसंबर 2001 में ऐश्वर्या राय के पिता ने उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप था कि वह पूर्व विश्व सुंदरी को तरह-तरह से प्रताड़ित कर रहे हैं। बाद में हिन्दुस्तान टाइम्स ने उन दोनों के टेलीफोन टेप के हवाले से एक खबर प्रकाशित की थी। उस वार्तालाप के दौरान वह ऐश्वर्या को धमका रहे थे। उनके मुंह से निकलने वाले कुछ शब्द ऐसे थे, जिनका यहां इस्तेमाल नामुमकिन है। यही नहीं, अपनी गर्लफ्रेंड सोमी अली को उन्होंने सार्वजनिक तौर पर ऐसा अपमानित किया कि उसका दिल ही टूट गया। उसने ‘माया लोक’ और मुंबई, दोनों से विदा ले ली। संगीता बिजलानी के साथ भी उन्होंने ऐसा ही सुलूक किया था। कैटरीना कैफ तक उनके रौद्र रूप का शिकार बनीं।
इंग्लैंड से आई इस सलोनी बाला ने मीडिया के सामने अपने दुख का इजहार नहीं किया, पर यह सच है कि उनकी मानसिक यातना का सिलसिला लंबा खिंचा। कहते हैं कि एक था टाइगर के सेट पर भी सलमान ने उनके साथ बदसलूकी कर दी थी। फिल्मी दुनिया में मोहब्बतों और वफादारियों का सिलसिला अक्सर लंबा नहीं चलता, पर सलमान अकेले ऐसे हैं, जिनके जीवन में आई महिलाएं खुद को तरह-तरह की यंत्रणाओं के बाद ही मुक्त कर पाईं।
ऐसा नहीं है कि वह अपनी जिंदगी में आने वाली युवतियों से ही दुर्व्यवहार करते हैं। आमिर खान ने उनके साथ अंदाज अपना-अपना फिल्म की थी। उसके बाद उन्होंने लिखा कि मेरे लिए सलमान के साथ काम करना संताप भरा अनुभव रहा। कैटरीना की जन्मदिन पार्टी पर सलमान अपने पुराने दोस्त शाहरुख से लड़ बैठे। और तो और, बहुत थोड़े से लमहे के लिए ऐश्वर्या के मित्र बने विवेक ओबेरॉय से भी उन्होंने पंगा ले लिया था।
जवाब में विवेक ने समाचार चैनलों के जरिए उन्हें खुले मुकाबले की चुनौती दे डाली। खान परिवार ने उन्हें इसके लिए आज तक क्षमा नहीं किया है। ऐश्वर्या राय ने जब अभिषेक बच्चन से शादी कर ली, तब भी सार्वजनिक मंचों से सलमान ने उनका मजाक उड़ाया। वह ऐश्वर्या राय के बाद ‘बच्चन’ शब्द पर बेहद जोर देते हुए ऐसी भंगिमा बनाते कि लोग हंसने लग जाते। महिलाओं का मजाक उड़ाना हमारे समाज में अच्छा नहीं समझा जाता, पर सलमान ने अच्छे-बुरे का फर्क कहां सीखा है? इसीलिए प्रेस को ऊटपटांग जवाब देने और बिग बॉस के दौरान प्रतिभागियों के साथ क्रूर मजाक करने में उन्होंने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी।
अब मौजूदा मुकदमे पर आते हैं। 2002 में जब वह पहली बार इस केस के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए थे, तो कुछ ही घंटों में उनकी जमानत हो गई थी। इस बार भी मुंबई हाईकोर्ट ने 13 साल बाद मिली सजा के कुछ ही घंटे के अंदर उन्हें दो दिन की अंतरिम जमानत दे दी। बाद में, उच्च न्यायालय ने गए शुक्रवार को निचली अदालत से मिली सजा को भी निलंबित कर दिया। मतलब साफ है। वह तब तक जेल नहीं जाएंगे, जब तक माननीय उच्च न्यायालय उन्हें दोषी नहीं पाता। निचली अदालत को निर्णय तक पहुंचने में 13 साल लग गए। यह देखना दिलचस्प होगा कि हाईकोर्ट में यह न्याय यात्रा कितने समय में मुकाम तक पहुंचेगी? चलने से पहले फ्रांसीसी राजनीति की ओर लौटता हूं। उसके बाद से राज परिवारों का वक्त लद जरूर गया, पर गरीब और गरीबी कायम है। सलमान के मामले को ही लें। हर ओर चर्चा में वह या उनके साथी सितारे हैं। उन फुटपाथियों का क्या, जिनका खून बहा? पहले उन्हें फिल्म स्टार की गाड़ी ने कुचला, अब किस्मत रौंद रही है। इन अभिशप्तों पर भी तो कोई नजर डाले!
@shekharkahin
shashi.shekhar@livehindustan.com
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इसीलिए आमिर खान समाज सुधारक के तौर पर पेश आते हैं और शाहरुख हर समय खिलंदड़े नौजवान की भूमिका निभाते दिखते हैं। सलमान ने भी ‘बीइंग ह्यूमन’ की स्थापना कर अपनी छवि चमकाने की कोशिश की। इस अभियान में समूचा खान खानदान उनके साथ था। फिल्म नगरी के कुछ स्थापित घरानों से खुन्नस खाने वाले लोगों को उनके साथ में खुद का लाभ दिखाई दिया। नतीजतन, रह-रहकर ऐसी खबरें आने लगीं, जिनमें कोई सलमान को परम दयालु साबित करने में जुटा था, तो किसी कैंसर पीड़ित को उनमें रब बसता दिखाई पड़ रहा था। मैं यह कतई नहीं कह रहा कि वह लोगों की मदद नहीं कर रहे, या उन्हें भला बनने और दिखने का हक नहीं, पर सच है कि उनकी शख्सियत का यह पहलू जेल यात्राओं से पहले तक लोगों की नजरों से ओझल था। वह उन दिनों बिगड़ैल शख्स के तौर पर जाने जाते थे।
आप याद करें। दिसंबर 2001 में ऐश्वर्या राय के पिता ने उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप था कि वह पूर्व विश्व सुंदरी को तरह-तरह से प्रताड़ित कर रहे हैं। बाद में हिन्दुस्तान टाइम्स ने उन दोनों के टेलीफोन टेप के हवाले से एक खबर प्रकाशित की थी। उस वार्तालाप के दौरान वह ऐश्वर्या को धमका रहे थे। उनके मुंह से निकलने वाले कुछ शब्द ऐसे थे, जिनका यहां इस्तेमाल नामुमकिन है। यही नहीं, अपनी गर्लफ्रेंड सोमी अली को उन्होंने सार्वजनिक तौर पर ऐसा अपमानित किया कि उसका दिल ही टूट गया। उसने ‘माया लोक’ और मुंबई, दोनों से विदा ले ली। संगीता बिजलानी के साथ भी उन्होंने ऐसा ही सुलूक किया था। कैटरीना कैफ तक उनके रौद्र रूप का शिकार बनीं।
इंग्लैंड से आई इस सलोनी बाला ने मीडिया के सामने अपने दुख का इजहार नहीं किया, पर यह सच है कि उनकी मानसिक यातना का सिलसिला लंबा खिंचा। कहते हैं कि एक था टाइगर के सेट पर भी सलमान ने उनके साथ बदसलूकी कर दी थी। फिल्मी दुनिया में मोहब्बतों और वफादारियों का सिलसिला अक्सर लंबा नहीं चलता, पर सलमान अकेले ऐसे हैं, जिनके जीवन में आई महिलाएं खुद को तरह-तरह की यंत्रणाओं के बाद ही मुक्त कर पाईं।
ऐसा नहीं है कि वह अपनी जिंदगी में आने वाली युवतियों से ही दुर्व्यवहार करते हैं। आमिर खान ने उनके साथ अंदाज अपना-अपना फिल्म की थी। उसके बाद उन्होंने लिखा कि मेरे लिए सलमान के साथ काम करना संताप भरा अनुभव रहा। कैटरीना की जन्मदिन पार्टी पर सलमान अपने पुराने दोस्त शाहरुख से लड़ बैठे। और तो और, बहुत थोड़े से लमहे के लिए ऐश्वर्या के मित्र बने विवेक ओबेरॉय से भी उन्होंने पंगा ले लिया था।
जवाब में विवेक ने समाचार चैनलों के जरिए उन्हें खुले मुकाबले की चुनौती दे डाली। खान परिवार ने उन्हें इसके लिए आज तक क्षमा नहीं किया है। ऐश्वर्या राय ने जब अभिषेक बच्चन से शादी कर ली, तब भी सार्वजनिक मंचों से सलमान ने उनका मजाक उड़ाया। वह ऐश्वर्या राय के बाद ‘बच्चन’ शब्द पर बेहद जोर देते हुए ऐसी भंगिमा बनाते कि लोग हंसने लग जाते। महिलाओं का मजाक उड़ाना हमारे समाज में अच्छा नहीं समझा जाता, पर सलमान ने अच्छे-बुरे का फर्क कहां सीखा है? इसीलिए प्रेस को ऊटपटांग जवाब देने और बिग बॉस के दौरान प्रतिभागियों के साथ क्रूर मजाक करने में उन्होंने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी।
अब मौजूदा मुकदमे पर आते हैं। 2002 में जब वह पहली बार इस केस के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए थे, तो कुछ ही घंटों में उनकी जमानत हो गई थी। इस बार भी मुंबई हाईकोर्ट ने 13 साल बाद मिली सजा के कुछ ही घंटे के अंदर उन्हें दो दिन की अंतरिम जमानत दे दी। बाद में, उच्च न्यायालय ने गए शुक्रवार को निचली अदालत से मिली सजा को भी निलंबित कर दिया। मतलब साफ है। वह तब तक जेल नहीं जाएंगे, जब तक माननीय उच्च न्यायालय उन्हें दोषी नहीं पाता। निचली अदालत को निर्णय तक पहुंचने में 13 साल लग गए। यह देखना दिलचस्प होगा कि हाईकोर्ट में यह न्याय यात्रा कितने समय में मुकाम तक पहुंचेगी? चलने से पहले फ्रांसीसी राजनीति की ओर लौटता हूं। उसके बाद से राज परिवारों का वक्त लद जरूर गया, पर गरीब और गरीबी कायम है। सलमान के मामले को ही लें। हर ओर चर्चा में वह या उनके साथी सितारे हैं। उन फुटपाथियों का क्या, जिनका खून बहा? पहले उन्हें फिल्म स्टार की गाड़ी ने कुचला, अब किस्मत रौंद रही है। इन अभिशप्तों पर भी तो कोई नजर डाले!
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Saturday, 9 May 2015
जनता और जन-विचारक अपराधी के विरुद्ध : समर्थक कौन?
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साधारण जनता और उससे सरोकार रखने वाले बुद्धिजीवी विचारक जहां एक अपराधी को न्यायिक-अव्यवस्था से मिली छूट के विरुद्ध आवाज़ उठा रहे हैं वहीं जनता से कटे हुये (जनाधार विहीन) अमीर नेता गण एवं खुद अपने में ही मद-मस्त रहने वाले स्वार्थी स्वभाव के लोग अपराधी का महिमा-मंडन करके गरीबों के साथ भद्दा और क्रूर मज़ाक कर रहे हैं। यही कारण है कि भारत में कम्युनिस्ट कर्णधारों की अदूरदर्शिता के कारण कम्यूनिज़्म सफल नहीं हो पा रहा है।
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